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आज की पीढ़ी साधु-संतों व धर्म से दूर, इसलिए नकारात्मकता ज्यादा _जैन संत विज्ञानंद महाराज

सवा लाख किमी पैदल चल चुके हैं संत विज्ञानंद अलवर. जिस उम्र में युवा कॅरियर और सुख-सुविधाओं के पीछे भागते हैं, उस उम्र में जैन संत विज्ञानंद जी महाराज ने मोह-माया को छोड़ कर संत बनने की दीक्षा ली और समाज को धर्म के मार्ग पर चलाने का निर्णय लिया। वे चौबीस घंटे में सिर्फ […]

अलवरJul 18, 2025 / 12:10 pm

Jyoti Sharma

सवा लाख किमी पैदल चल चुके हैं संत विज्ञानंद

अलवर. जिस उम्र में युवा कॅरियर और सुख-सुविधाओं के पीछे भागते हैं, उस उम्र में जैन संत विज्ञानंद जी महाराज ने मोह-माया को छोड़ कर संत बनने की दीक्षा ली और समाज को धर्म के मार्ग पर चलाने का निर्णय लिया। वे चौबीस घंटे में सिर्फ एक बार अन्न-जल ग्रहण करते हैं। पानी हमेशा हमेशा खडे़ होकर पीते हैं। वे कहते हैं कि जब तक संत के पैरों में जान है, तब तक पानी बैठकर नहीं पीना चाहिए। जैन संत विज्ञानंद जी अभी तक अपने जीवन में सवा लाख किमी पैदल चल चुके हैं। प्रतिदिन करीब 18 से 20 किमी पैदल चलते हैं। अलवर में इस बार जैन उपाध्याय विज्ञानंद मुनि का चातुर्मास होने जा रहा है। 20 जुलाई को चातुर्मास प्रारंभ होगा। इससे पहले वर्ष 2017 में वे पहली बार अलवर आए थे। उस दौरान णमोकार मंत्र की उपासना करवाई थी। राजस्थान पत्रिका ने उनसे लबी वार्ता की। पेश है प्रमुख अंश:-Q युवा पीढ़ी मोबाइल, वेब सीरीज व नशे की ओर जा रही है, कैसे बचाएं?A ये बच्चों के पारिवारिक संस्कार होते हैं। माता-पिता यदि संस्कारी नहीं हैं, तो बच्चों में संस्कार कहां से आएंगे। आज माता-पिता बच्चों को पढ़ाई के लिए तो प्रेरित करते हैं, लेकिन धर्म से जोड़ने के लिए कोई प्रयास नहीं किया जा रहा। बौद्धिक ज्ञान बढ़ाने पर ध्यान है, लेकिन पारलौकिक ज्ञान की चिंता नहीं है। इसलिए बच्चों में धर्म के संस्कार कम हो गए हैं।
Q आप कहां के रहने वाले हैं और संत बनने की शिक्षा कहां से मिली?A मेरा जन्म मध्यप्रदेश के के शिवपुरी जिले में बडी बांबोर कला स्थान पर हुआ। मेरे परिवार में चार भाई-बहने हैं। मैं सबसे छोटा हूं। मेरी हायर सेकंडरी तक शिक्षा ग्रहण की। संसार की विषमताओं को देखकर संत बनने की राह चुनी। जब मैं लगभग 22 साल का था, तब मैंने दीक्षा ली। मैं जैन आचार्य गुरुदेव वसुनंदी जी का पहला शिष्य हूं। मुझे उपाध्याय की पदवी मिली हुई है। उपाध्याय वो है, जो संत-महात्माओं को धर्म और ज्ञान की शिक्षा देते हैं। मेरी माता धार्मिक महिला हैं। परिवार में धार्मिक माहौल था। परिवार में मुझसे पहले कभी कोई जैन संत नहीं बना।
Q प्रवचनों में सबसे ज्यादा किस विषय पर बताया जाता है?A जीवन में अनुशासन का बड़ा महत्व है, इसलिए अनुशासन का पाठ पढ़ाता हूं। गृहस्थ जीवन को कैसे सफल बनाएं। श्रावक-श्राविकाएं कैसे धर्म के क्षेत्र में आगे बढे़ं। आगे के भव को कैसे सुधारें। बच्चों में अच्छे संस्कार कैसे आएं, इसके बारे में ज्यादा बताता हूं।
Q जैन धर्म में चातुर्मास का क्या महत्व है?A दिगंबर जैन संत के लिए चातुर्मास का विशेष महत्व है। चातुर्मास वर्षाकाल के दौरान आता है। वर्षा के चलते बहुत से जीव पैदा हो जाते हैं, उनकी रक्षा के लिए चार महिनों में जैन संत एक ही स्थान पर रहकर स्वास्थ्य व संयम की दृष्टि से नियमों की पालना करते हैं।
Q बच्चों में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ रही है, इसे कैसे रोकें?A आज की पीढ़ी साधु-संतों व धर्म से दूर है, इसलिए उनमें नकारात्मकता आती है। धैर्य भी कम हो गया है। यदि वे साधु-संतों की संगत में आएं, तो जीवन के प्रति नकारात्मक भाव खत्म हो जाएंगे।
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