कस्बे के चौपड़ बाजार स्थित मंदिर पर शाम को जगन्नाथजी के रथ का पूजन परम्परागत तरीके से किया। संध्या आरती के बाद भगवान जगन्नाथजी को ऐतिहासिक गरूड़रूपी रथ पर वैदिक मंत्रोच्चार के साथ विराजमान किया गया। इसके बाद हरे राम हरे कृष्णा सत्संग मण्डल की ओर से भजन-सत्संग, भजन मण्डलियां, बैण्डबाजों की अगुवाई में रथ को श्रद्धालु खींचकर आगे बढ़ाते रहे।पुलिस ने दी सलामी
रथयात्रा शुरू होने से पहले पुलिस बल की टुकड़ी ने भगवान जगन्नाथजी को सशस्त्र सलामी दी। श्रद्धालुओं ने रथ के नीचे से निकल कर मन्नत मांगी। मार्ग में जगह-जगह श्रद्धालुओं के लिए शीतल जल, ठंडाई, शरबत व मीठे पानी की प्याऊ की व्यवस्था की। रथयात्रा में जानकी मैया और भगवान जगन्नाथजी के जयकारे लगाते श्रद्धालु चलते रहे। रथयात्रा कांकवाड़ी बाजार, गोल सर्किल, सराय बाजार, उपखण्ड कार्यालय, बांदीकुई चौराहा होकर देर रात गंगाबाग पहुंची। रथयात्रा के आगे भगवान मदनमोहनजी की बग्गी में सजी आकर्षक झांकी तथा राधा-कृष्ण, राम दरबार की नयनाभिराम झांकी आकर्षक रही। इससे पहले सुबह 9.15 बजे वैवाहिक रस्म के तहत दूल्हे बने भगवान जगन्नाथजी का गोलक पूजन व कंगन-डोरा बांधने का कार्यक्रम हुआ। भगवान जगन्नाथ को हल्दी की रस्म अदा की गई। इस मौके पर मेला कमेटी अध्यक्ष एडवोकेट महेन्द्र प्रसाद तिवाड़ी, सचिव हरिओम गुप्ता, उपाध्यक्ष कान्हाराम लखेरा, गायत्री देवी, पण्डित रोहित शर्मा सहित मेला कमेटी के अन्य सदस्य मौजूद रहे।
पोशाक रही आकर्षकमहन्त पूरणदास एवं पण्डित मदनमोहन शास्त्री ने बताया कि इस बार दूल्हे बने भगवान जगन्नाथजी को मथुरा की शाही पोशाक धारण कराई गई। इसके अलावा जगन्नाथजी को विशेष रूप से सऊदी अरब से आई इत्र, खाटू दरबार व कोलकाता के इत्र से महकाया गया। जयपुर के मोगरे की माला से भगवान जगन्नाथजी को सजाया गया। दूल्हे बने जगन्नाथजी की एक झलक पाने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती रही। सड़क के दोनों ओर व मकानों की छतों से श्रद्धालुओं ने भगवान जगन्नाथजी के दर्शन किए। रथयात्रा के आगे भक्तों की टोली जय जगदीश हरे के भजनों को गाते हुए चल रही थी।पट्टेबाजी का किया प्रदर्शन
वाल्मीकि बस्ती के शक्तिदल के संयोजक जगदीश सारसर के नेतृत्व में रथयात्रा के दौरान तलवार, लाठी, पट्टेबाजी, चक्र के हैरतंगेज करतब दिखाए गए। करतब देखने के लिए लोगों की भीड़ लगी रही। रथयात्रा के दौरान भक्त मनोकामना पूर्ण करने की मन्नोती मांगते हुए बड़ी संख्या में कस्बे के चौपड़ बाजार स्थित मंदिर से कनक दंडवत देते देर रात्रि गंगाबाग पहुंचे। रथयात्रा के दौरान सड़क के मध्य पड़ने वाले मन्दिरों पर घण्टा व घड़ियाल के साथ जगन्नाथजी की आरती की गई। गंगाबाग पहुंचने पर पुष्प वर्षा से स्वागत किया। वधू पक्ष की ओर से दादूपंथी ठिकाना गंगाबाग के महन्त प्रकाशदास की ओर से भगवान जगन्नाथजी पर गुलाब के फूलों से पुष्प वर्षा कर अगवानी की। वैदिक मंत्रोच्चार के साथ आरती की गई। रथयात्रा के गंगाबाग पहुंचने पर पुलिस ने सशस्त्र सलामी दी। पूजा आरती के साथ गरूड़रूपी विमान से जगन्नाथजी की प्रतिमा को मंदिर में विराजित कराया गया। साथ ही आठ दिवसीय मेला शुरू हो गया। चाट, पकौड़ी, ठंडा पेय, कुल्फी आदि का लोगों ने आनंद लिया। बच्चों ने झूलों का लुत्फ लिया। खिलौनों की खरीदारी की। प्रसाद श्रद्धालुओं को वितरित किया गया। रथ यात्रा के दौरान संदिग्धों पर पुलिस की नजर रही। मेला स्थल गंगाबाग में पुलिस की अस्थाई चौकी भी बनाई गई है।
भगवान जगन्नाथ की प्रथम रथयात्रा ऐसे निकाली थीराजगढ़ में जगन्नाथजी की प्रथम रथयात्रा 1855 में निकाली गई। जगदीशजी की रथयात्रा में बैण्डबाजे, हरि कीर्तन मण्डली, हाथी, घोडे़ आदि के साथ प्राचीन कुण्ड की परिक्रमा कर गोविन्ददेवजी मंदिर के सामने विराजमान होकर कांकवाड़ी बाजार होते हुए वापस चौपड़ बाजार स्थित मंदिर पहुंची। दो वर्ष तक रथयात्रा की यही व्यवस्था रही। इसके बाद भगवान की रथयात्रा सजधज कर कस्बे के गंगाबाग पहुंचने लगी तथा सात दिवसीय मेले का आयोजन होने लगा। पूर्व महाराज शिवदानसिंह ने गंगाबाग की बारहदरी जगन्नाथजी का मेला भरने के लिए अर्पण कर दी। अलवर के पूर्व नरेश सवाई मंगल सिंह ने बारहदरी के चारों ओर टीनशेड व सारवान लगवा दिया। सन् 1855 से लगातार गंगाबाग में भगवान जगन्नाथजी का 171 वर्षों से मेला निरन्तर भरता आ रहा हैं।