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ज़रदारी ने की होशियारी, चली शतरंजी चाल ! ऐसे हथियाया राष्ट्रपति पद, जानिए पूरी इनसाइड स्टोरी

Zardari Musharraf resignation 2008: आसिफ अली ज़रदारी साल 2008 में न सिर्फ जनरल मुशर्रफ को सत्ता छोड़ने पर मजबूर कर खुद राष्ट्रपति बने थे।

भारतMay 27, 2025 / 05:14 pm

M I Zahir

Asif Ali Zardari Inside Story

पाकिस्तान के मौजूदा राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी। (फोटो:प​त्रिका।)

Zardari Musharraf resignation 2008: पाकिस्तान के मौजूदा राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी ने सेना की अंदरूनी हामी और राजनीतिक चालाकी की बदौलत अपना पहला कार्यकाल बहुत चतुराई से संभाला और अगस्त 2008 में तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल परवेज़ मुशर्रफ को इस्तीफा (Zardari Musharraf resignation) देने पर मजबूर कर दिया था। ज़रदारी ने मुशर्रफ को महाभियोग (Musharraf 2008 impeachment) चलाने की धमकी दे कर चालाकी से सत्ता से किनारे कर दिया था। ज़रदारी के पूर्व प्रवक्ता फ़रहतुल्लाह बाबर ने अपनी किताब “द ज़रदारी प्रेसीडेंसी” (Zardari presidency Pakistan) में यह खुलासा किया है। उन्होंने बताया कि ज़रदारी ने दोहरे मोर्चे पर कामयाबी हासिल की, पहले, मुशर्रफ की ओर से चुने गए नए सेनाध्यक्ष जनरल अश्फ़ाक परवेज़ कयानी को अपनी तरफ किया और फिर अपने गठबंधन सहयोगी नवाज़ शरीफ़ को रणनीतिक रूप से पछाड़ दिया।

ज़रदारी ने कयानी से व्यक्तिगत बातचीत में इस योजना पर चर्चा की

ध्यान रहे कि सन 2008 के फरवरी आम चुनावों में जीत के बाद ज़रदारी की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) और नवाज़ शरीफ़ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज़ (PML-N) दोनों मुशर्रफ के खिलाफ महाभियोग लाने के पक्ष में थीं, लेकिन असली मोड़ तब आया जब ज़रदारी ने सेना प्रमुख कयानी से व्यक्तिगत बातचीत में इस योजना पर चर्चा की।

उन्होंने नवंबर में मुशर्रफ के सेना प्रमुख पद छोड़ने के बाद पद भार संभाला

बाबर लिखते हैं कि कयानी को अक्टूबर 2007 में उप-सेनाध्यक्ष नियुक्त किया गया था और उन्होंने नवंबर में मुशर्रफ के सेना प्रमुख पद छोड़ने के बाद पद भार संभाला, इस प्रस्ताव पर सहमत थे। कयानी ने यहां तक सुझाव दिया कि पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी PPP के नेता और पूर्व रक्षा मंत्री आफ़ताब शबान मिरानी को अगला राष्ट्रपति बनाया जाए। हालांकि, ज़रदारी की पैनी निगाहें खुद राष्ट्रपति बनने पर थीं।

सैन्य समर्थन मिलने के बाद ज़रदारी ने क्या किया ?

बाबर के अनुसार, सेना की अनौपचारिक सहमति मिलते ही ज़रदारी ने अपनी पार्टी के भरोसेमंद नेताओं को प्रांतीय विधानसभाओं में मुशर्रफ के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने का निर्देश दिया। साथ ही, रिटायर्ड मेजर जनरल महमूद अली दुर्रानी के माध्यम से मुशर्रफ को संदेश भेजा गया -या तो इस्तीफा दो, या महाभियोग का सामना करो। मुशर्रफ ने पहले इस अल्टीमेटम को खारिज किया, लेकिन बढ़ते दबाव और राजनीतिक अलगाव के चलते उन्होंने अगस्त 2008 के मध्य में इस्तीफा दे दिया था।

नवाज़ शरीफ़ की महत्वाकांक्षा और ज़रदारी की चतुराई (Nawaz vs Zardari power struggle)

बाबर का दावा है कि नवाज़ शरीफ़ भी खुद राष्ट्रपति बनना चाहते थे। एक अनौपचारिक बातचीत में उन्होंने ज़रदारी से कहा, “मेरी पार्टी चाहती है कि मैं राष्ट्रपति बनूं।” ज़रदारी ने हँसते हुए जवाब दिया, “मेरी पार्टी भी चाहती है कि मैं राष्ट्रपति बनूं।” इसके बाद यह चर्चा वहीं खत्म हो गई। इसके बाद सितंबर 2008 में ज़रदारी निर्वाचित होकर राष्ट्रपति बने।

जस्टिस इफ्तिखार चौधरी पर दबाव और ज़रदारी की रणनीति

बाबर की किताब में यह भी जिक्र है कि कैसे पूर्व मुख्य न्यायाधीश इफ्तिखार चौधरी की बहाली के लिए ज़रदारी पर भारी राजनीतिक और सैन्य दबाव डाला गया था।

जब ज़रदारी ने चौधरी को तत्काल बहाल नहीं किया

लाहौर से इस्लामाबाद तक हुए “लॉन्ग मार्च” के दौरान ज़रदारी ने अपने मंत्रियों और प्रधानमंत्री यूसुफ रज़ा गिलानी के दबाव के बावजूद चौधरी को तत्काल बहाल नहीं किया था।

ट्रिपल वन ब्रिगेड की “सांकेतिक तैनाती” (Pakistani political history 2008)

इस दौरान राष्ट्रपति भवन के अंदर ट्रिपल वन ब्रिगेड की “सांकेतिक तैनाती” भी हुई — जो पाकिस्तान की लगभग हर सैन्य तख्तापलट में शामिल रही है। बाबर के अनुसार, यह तख्तापलट नहीं, बल्कि दबाव बनाने की रणनीति थी।

मैं उसे अंदर तक जानता हूं, तुम नहीं

ज़रदारी ने अपने करीबी सलाहकारों से कहा था, “मैं उसे अंदर तक जानता हूं, तुम नहीं। उसे सिर्फ बहाली की गारंटी चाहिए, बाकी सब दिखावा है। उसने मेरे पास संदेश भेजे हैं।”

चौधरी ने ज़रदारी को इस्तीफा पत्र तक देने की पेशकश की थी

बाबर का दावा है कि चौधरी ने ज़रदारी को एक हस्ताक्षरित इस्तीफा पत्र तक देने की पेशकश की थी, ताकि बहाली के बाद अगर वो वादे से पीछे हटें तो इस्तीफा दिया जा सके।

सियासी रिएक्शन और एक्सपर्ट कमेंट

राजनीतिक विश्लेषक हसन आसिफ (लाहौर) कहते हैं: “ज़रदारी ने सिर्फ मुशर्रफ को हटाया नहीं, बल्कि पाकिस्तान की सत्ता के पावर बैलेंस को ही बदल दिया। ये बिना खून-खराबा किए एक ‘सिविलियन स्ट्राइक’थी।”

फौज की शह पर आया राष्ट्रपति

पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) ने तंज कसते हुए कहा: “फौज की शह पर आया राष्ट्रपति, फिर कैसे कहें ये असली लोकतंत्र है?”

नवाज़ शरीफ समर्थक खेमे में नाराज़गी

“हमने तो पार्टनरशिप की थी, लेकिन ज़रदारी ने पूरा का पूरा फल अकेले खा लिया।”

पाकिस्तान की सियासत से जुड़े सुलगते सवाल

*क्या 2025 में भी सेना की ‘मूक भूमिका’ सियासत की दिशा तय करेगी ?

*क्या 2025 में भी सेना की ‘मूक भूमिका’ सियासत की दिशा तय करेगी ?
*यह केस एक मिसाल है, अब देखा जाएगा कि क्या आने वाले चुनावों या बदलावों में भी सेना इसी तरह पर्दे के पीछे रहेगी या सामने आएगी?
*क्या नवाज़ शरीफ़ और ज़रदारी के रिश्तों में इस घटना का अब भी असर है?
*राजनीतिक गठबंधन और विश्वास की डोर तब कमजोर पड़ी थी-क्या अब भी उसका असर दिखता है?
*क्या यह मामला पाकिस्तानी इतिहास में लोकतंत्र की ‘सबसे सफेद तख्तापलट’ कहलाएगा?
*क्या आने वाले चुनावों या बदलावों में भी सेना इसी तरह पर्दे के पीछे रहेगी या सामने आएगी?
*क्या नवाज़ शरीफ़ और ज़रदारी के रिश्तों में इस घटना का अब भी असर है?
*राजनीतिक गठबंधन और विश्वास की डोर तब कमजोर पड़ी थी—क्या अब भी उसका असर दिखता है?
*क्या यह मामला पाकिस्तानी इतिहास में लोकतंत्र की ‘सबसे सफेद तख्तापलट’ कहलाएगा?
*जनरल कयानी की चुप सहमति का मतलब क्या था? उन्होंने खुलेआम तो कुछ नहीं कहा, लेकिन जरदारी के समर्थन में चुप रहना खुद एक बड़ा बयान था।

इफ्तिखार चौधरी की बहाली की असली डील क्या थी?

चौधरी का “पहले से लिखा इस्तीफा” और ज़रदारी को गुपचुप संदेश भेजना–क्या यह न्यायिक सौदेबाज़ी का संकेत नहीं था?
*ट्रिपल वन ब्रिगेड की ‘दिखावटी तैनाती’: सिविल-मिलिट्री रिश्तों का प्रतीक या धोखे की चाल थी?

और फिर खुद सत्ता की बागडोर संभाल ली

बहरहाल यह घटनाक्रम दर्शाता है कि कैसे ज़रदारी ने रणनीतिक सोच, फौज के साथ रिश्तों और राजनीतिक चतुराई के सहारे पाकिस्तान के इतिहास में एक सैन्य शासक को लोकतांत्रिक तरीके से सत्ता से बाहर किया, और फिर खुद सत्ता की बागडोर संभाल ली।
एक्सक्लूसिव इनपुट क्रेडिट : ज़रदारी के तत्कालीन प्रवक्ता फरहतुल्लाह बाबर की किताब “The Zardari Presidency” से मुख्य तथ्य और IANS रिपोर्ट (27 मई, 2025)

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