विवाद का केंद्र
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि महिला-पुरुष समानता की मांग इस्लामी मूल्यों और पारंपरिक सामाजिक ढांचे के खिलाफ है। कुछ कट्टरपंथी समूहों ने सड़कों पर उतरकर एक
महिला के पुतले को साड़ी पहनाकर जलाया और महिलाओं को “घर में रहने और बच्चे पैदा करने” का संदेश दिया। इस घटना ने देश में लैंगिक समानता और महिला अधिकारों पर चल रही बहस को और गर्म कर दिया है।
महिलाओं की स्थिति
बांग्लादेश में 1971 में आजादी के बाद से महिलाओं ने राजनीतिक सशक्तिकरण, शिक्षा, और नौकरी के अवसरों में उल्लेखनीय प्रगति की है। हालांकि, पितृसत्तात्मक सामाजिक मानदंड और कमजोर कानूनी अमल के कारण महिलाएं अभी भी कई क्षेत्रों में पुरुषों के बराबर दर्जा हासिल करने के लिए संघर्ष कर रही हैं। साक्षरता दर में भी लैंगिक असमानता बनी हुई है, जहां पुरुषों की साक्षरता दर 62.5% है, जबकि महिलाओं की 55.1%।
सरकार और समाज का रुख
प्रधानमंत्री शेख हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश ने महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता के क्षेत्र में कई नीतिगत कदम उठाए हैं, जिन्हें वैश्विक स्तर पर सराहा गया है। फिर भी, हाल की घटनाओं से साफ है कि सामाजिक और धार्मिक रूढ़ियां अभी भी बड़े पैमाने पर बदलाव में बाधा बन रही हैं। कुछ संगठनों का दावा है कि समानता की मांग “प्राकृतिक और धार्मिक व्यवस्था” के खिलाफ है।
तालिबानी मानसिकता का दिया करार
महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने इन विरोध प्रदर्शनों की निंदा की है और सरकार से कठोर कार्रवाई की मांग की है। सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे ने जोर पकड़ा है, जहां कई लोग इन कट्टरपंथी कदमों को “तालिबानी मानसिकता” करार दे रहे हैं। दूसरी ओर, सरकार ने अभी तक इस मामले पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है, लेकिन माना जा रहा है कि वह स्थिति को नियंत्रित करने के लिए कदम उठाएगी।