ट्रंप ने यूरोपीय संघ 1 जून से भारी टैरिफ लागू करने की चेतावनी दी थी
ट्रंप ने शुक्रवार को यूरोपीय संघ पर नाराज़गी जताते हुए 1 जून से भारी टैरिफ लागू करने की चेतावनी दी थी। उन्होंने कहा था कि EU के साथ वार्ता “पर्याप्त तेज़ी से आगे नहीं बढ़ रही।” उनकी इस धमकी ने वैश्विक वित्तीय बाजारों में हलचल मचा दी थी, जिससे अमेरिका और उसके सहयोगियों के बीच व्यापार तनाव और गहरा गया।
अब 9 जुलाई तक किसी समाधान तक पहुंचने की कोशिश की जाएगी
हालांकि रविवार को ट्रंप ने नरम रुख अपनाते हुए संवाददाताओं से कहा, “हमारी बातचीत बहुत अच्छी रही और मैं बातचीत को आगे बढ़ाने के लिए तैयार हूं।” उन्होंने कहा कि अब 9 जुलाई तक किसी समाधान तक पहुंचने की कोशिश की जाएगी।
ट्रंप के साथ उनकी अच्छी बातचीत हुई :वॉन डेर लेयेन
EU की प्रमुख वॉन डेर लेयेन ने एक्स पर पोस्ट कर पुष्टि की कि ट्रंप के साथ उनकी “अच्छी बातचीत” हुई और यूरोप वार्ता को “तेज़ी और निर्णायक रूप से” आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है।
ट्रंप चीन और ब्रिटेन जैसे देशों के साथ भी टैरिफ पर तीखे रुख अपना चुके
ट्रंप की यह टैरिफ रणनीति उनके “अमेरिका पहले” एजेंडे की एक और मिसाल मानी जा रही है। इससे पहले वे चीन और ब्रिटेन जैसे देशों के साथ भी टैरिफ पर तीखे रुख अपना चुके हैं, हालांकि कुछ मामलों में बातचीत के जरिए समाधान निकाला गया है। यूरोपीय संघ के साथ समझौता न हो पाने की स्थिति में जुलाई के बाद फिर से टैरिफ लागू होने की आशंका बनी रहेगी।
टैरिफ पर बाज़ारों की प्रतिक्रिया,येन और स्विस फ्रैंक – थोड़ा कमजोर पड़ीं
समय सीमा बढ़ने की खबर से डॉलर और यूरो में मजबूती आई, जबकि सुरक्षित मानी जाने वाली मुद्राएं -येन और स्विस फ्रैंक – थोड़ा कमजोर पड़ीं। विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर 9 जुलाई तक समझौता नहीं होता है, तो व्यापारिक अस्थिरता फिर से सिर उठा सकती है।
रिएक्शन: कूटनीति का पलड़ा भारी, बाजार को राहत
ट्रंप के अचानक नरम रुख और टैरिफ की धमकी को टालने के फैसले ने न सिर्फ वैश्विक बाजारों को राहत दी, बल्कि यह भी दिखाया कि यूरोपीय कूटनीति अब भी अमेरिका की आक्रामक व्यापार नीति को संतुलित कर सकती है। विशेषज्ञ मान रहे हैं कि यह कदम सिर्फ अमेरिका-यूरोप व्यापार संबंधों को बचाने का नहीं, बल्कि 2024 के राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनज़र ट्रंप की रणनीति का भी हिस्सा है-वे व्यापारिक कठोरता और लचीलेपन, दोनों का मिला-जुला चेहरा दिखा रहे हैं।
फॉलोअप: क्या 9 जुलाई को बनेगा नया ट्रांजाटलांटिक ट्रेड फॉर्मूला ?
अब सबकी नजरें 9 जुलाई पर टिकी हुई हैं-क्या अमेरिका और यूरोपीय संघ कोई व्यापक समझौता कर पाएंगे या टैरिफ की तलवार फिर लटकेगी ? विश्लेषकों के मुताबिक, अगर कोई डील होती है, तो वह डिजिटल टैक्स, ग्रीन टेक्नोलॉजी और ऑटोमोबाइल पर शुल्क जैसे मुद्दों को भी छू सकती है। वहीं, अगर बातचीत विफल होती है, तो यह न केवल यूरोपीय अर्थव्यवस्था, बल्कि वैश्विक सप्लाई चेन पर असर डाल सकता है।
साइड एंगल: ट्रंप का ‘अमेरिका फर्स्ट’ बनाम NATO में यूरोपीय निर्भरता
विश्लेषकों के अनुसार यह सिर्फ व्यापार नहीं, रणनीतिक संतुलन की लड़ाई भी है। ट्रंप बार-बार यह कह चुके हैं कि यूरोप अमेरिका की सैन्य और आर्थिक मदद पर बहुत अधिक निर्भर है, लेकिन जब अमेरिका को व्यापारिक लाभ की बात आती है, तो वही देश उसे चुनौती देते हैं। इस टैरिफ प्रकरण को ट्रंप की लंबे समय से चली आ रही उस शिकायत से जोड़ कर देखा जा रहा है, जिसमें वे NATO और EU पर ‘अनुचित व्यवहार’ का आरोप लगाते हैं। क्या अमेरिका-यूरोप रिश्ता अब आर्थिक सहयोग से आगे कड़वाहट की ओर बढ़ रहा है ?
EU के भीतर ट्रंप की टैरिफ रणनीति को लेकर गंभीर चिंता
ट्रंप ने एक इंटरव्यू में कहा, “EU के भीतर ट्रंप की टैरिफ रणनीति को लेकर गंभीर चिंता है, लेकिन अब भी एक मजबूत वर्ग है जो मानता है कि अमेरिका को आर्थिक रूप से टक्कर देना असंभव है, इसलिए समझौता ही एकमात्र रास्ता है।”उनके अनुसार, “EU बातचीत को लटकाना नहीं चाहता, लेकिन उसके अंदर भी सदस्य देशों के बीच टकराव है कि अमेरिका के साथ कितनी रियायतें दी जाएं।” यह टैरिफ टकराव अमेरिका और यूरोप के बीच सिर्फ व्यापार की नहीं, भरोसे की परीक्षा है। (
इनपुट क्रेडिट: वाशिंगटन पोस्ट व ब्रुसेल्स स्थित वरिष्ठ व्यापार विश्लेषक ‘लिया ग्रीनवुड’ वेबस्टाइल।)
ये भी पढ़ें: बांग्लादेश में सियासी भूचाल:शेख हसीना का यूनुस पर बड़ा हमला, कहा-आतंकवादियों से गठजोड़ है !