पिपरहवा रत्नों का ऐतिहासिक महत्व
पिपरहवा, जिसे प्राचीन कपिलवस्तु का हिस्सा माना जाता है, बौद्ध धर्म के लिए एक पवित्र तीर्थ स्थल है। 1898 में ब्रिटिश इंजीनियर विलियम क्लैक्सटन पेप्पे ने इस स्तूप की खुदाई के दौरान लगभग 1,800 मोती, माणिक, नीलम, पुखराज, गार्नेट, मूंगा, नीलमणि, चट्टान क्रिस्टल, शंख और सोने के आभूषणों सहित हड्डी के टुकड़ों और एक शिलालेखित कलश को खोजा था, जो बुद्ध के अवशेषों की पुष्टि करता है। शिलालेख के अनुसार, ये अवशेष बुद्ध के शाक्य कबीले द्वारा जमा किए गए थे। इन रत्नों को 240-200 ईसा पूर्व में बुद्ध के अवशेषों के साथ एक भेंट के रूप में दफन किया गया था।
नीलामी और विवाद
सोथबीज़ हॉन्ग कॉन्ग द्वारा आयोजित इस नीलामी में रत्नों की अनुमानित कीमत करीब 100 मिलियन हॉन्ग कॉन्ग डॉलर (लगभग 107 करोड़ रुपये) आंकी गई है। ये रत्न पिछले सवा सौ साल से पेप्पे के वंशजों के पास थे, जो अब इन्हें बेच रहे हैं। क्रिस पेप्पे, विलियम के परपोते, ने नीलामी को “बौद्धों के हाथों में रत्नों को हस्तांतरित करने का सबसे पारदर्शी तरीका” बताया है। हालांकि, बौद्ध नेताओं और विद्वानों ने इसे “सांस्कृतिक और धार्मिक अपमान” करार दिया है। लंदन के ब्रिटिश महाबोधि सोसाइटी के अमाल अभयवर्धने ने कहा, “बुद्ध ने हमें दूसरों की संपत्ति बिना अनुमति के नहीं लेने की शिक्षा दी। ऐतिहासिक रिकॉर्ड बताते हैं कि ये अवशेष शाक्य कबीले की इच्छा के अनुसार हमेशा पूजनीय रहने चाहिए, न कि नीलाम किए जाने चाहिए।” दिल्ली के कला इतिहासकार नमन आहूजा ने सवाल उठाया, “क्या रत्नों के संरक्षक होने का मतलब उन्हें बेचने का अधिकार देता है?”
भारत सरकार का हस्तक्षेप
भारत सरकार ने इस नीलामी को रोकने के लिए कदम उठाए हैं। संस्कृति मंत्रालय ने सोथबीज़ हॉन्ग कॉन्ग और क्रिस पेप्पे को कानूनी नोटिस जारी कर नीलामी तुरंत रोकने और रत्नों को भारत वापस करने की मांग की है। मंत्रालय ने कहा कि ये रत्न भारतीय कानून के तहत ‘एए’ पुरावशेष हैं, जिनकी बिक्री या निकासी प्रतिबंधित है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने भी हॉन्ग कॉन्ग के अधिकारियों से नीलामी रद्द करने का अनुरोध किया है। मंत्रालय ने वित्तीय जांच इकाई (एफआईयू) को हॉन्ग कॉन्ग के समकक्ष के साथ समन्वय करने और अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन रेखांकित करने का निर्देश दिया है।
सामाजिक और धार्मिक प्रतिक्रिया
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर बौद्ध और बहुजन समुदायों ने नीलामी को “सभ्यता का अपमान” और “बौद्ध आस्था पर हमला” बताया है। वंचित बहुजन अघाड़ी के नेता प्रकाश आंबेडकर ने इसे “आधुनिक युग की सबसे आश्चर्यजनक पुरातात्विक खोजों में से एक” की बिक्री करार देते हुए भारत सरकार से तत्काल कार्रवाई की मांग की है। कई बौद्ध संगठनों ने नीलामी को औपनिवेशिक लूट की निरंतरता के रूप में देखा है।
इतिहास पर खड़े हुए सवाल
यह नीलामी न केवल बुद्ध की विरासत, बल्कि सांस्कृतिक विरासत की वापसी और औपनिवेशिक इतिहास के सवालों को भी उठाती है। जहां सोथबीज़ और पेप्पे परिवार ने नीलामी की वैधता और पारदर्शिता का दावा किया है, वहीं बौद्ध समुदाय और भारत सरकार इसे धार्मिक और सांस्कृतिक अपराध मानते हैं। यह देखना बाकी है कि क्या भारत सरकार इन रत्नों को वापस लाने में सफल होगी या ये रत्न नीलामी के बाद किसी निजी संग्रह का हिस्सा बन जाएंगे।