क्यों लिया गया फैसला?
पिछले छह सालों से मोरक्को भीषण सूखे का सामना कर रहा है, जिसके कारण पशुओं की संख्या में भारी कमी आई है। विशेष रूप से भेड़ों की संख्या पिछले दशक में 38% तक कम हो गई है, और इस साल बारिश औसत से 53% कम रही। इससे चरागाहों की स्थिति खराब हुई, जिसके चलते पशुओं के लिए चारा और पानी की कमी हो गई। मांस उत्पादन में भी गिरावट दर्ज की गई है, जिसने देश की अर्थव्यवस्था और खाद्य आपूर्ति पर असर डाला है। राजा मोहम्मद VI ने इस स्थिति को देखते हुए लोगों से अपील की है कि वे बकरीद पर कुर्बानी के बजाय इबादत और दान के माध्यम से त्योहार मनाएं।
सरकारी कदम और जनता की प्रतिक्रिया
मोरक्को सरकार ने कुर्बानी रोकने के लिए सख्त कदम उठाए हैं। जानवरों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, और कई शहरों में सुरक्षा बलों ने चोरी-छिपे कुर्बानी के लिए लाए गए जानवरों, खासकर भेड़ों, को जब्त करना शुरू कर दिया है। इस कार्रवाई ने जनता में आक्रोश पैदा किया है, और कई जगह लोग सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियोज में पुलिस को घरों में घुसकर भेड़ें जब्त करते देखा जा सकता है, जिसे कई लोगों ने धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप बताया है।
लोगों में मिली जुली प्रतिक्रिया
कुछ लोग इस फैसले को धार्मिक रीति-रिवाजों पर सरकारी दखल मान रहे हैं, जबकि अन्य ने इसे आर्थिक और पर्यावरणीय संकट के संदर्भ में उचित ठहराया है। इस्लाम में बकरीद पर कुर्बानी का महत्व पैगंबर इब्राहिम की अल्लाह के प्रति निष्ठा और बलिदान की याद में है, लेकिन मोरक्को का यह कदम एक नई बहस छेड़ रहा है कि क्या सरकार को धार्मिक अनुष्ठानों में हस्तक्षेप का अधिकार है।
आर्थिक संकट और आयात का सहारा
सूखे और पशुओं की कमी ने मांस की कीमतों में भारी वृद्धि की है, जिससे कई परिवारों के लिए कुर्बानी के लिए जानवर खरीदना मुश्किल हो गया है। सरकार ने मांस की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए ऑस्ट्रेलिया से 1 लाख भेड़ों के आयात का समझौता किया है और मवेशियों, भेड़ों, और ऊंटों पर आयात शुल्क व वैट हटा दिया है। फिर भी, यह कदम कुर्बानी की परंपरा को पूरी तरह प्रतिस्थापित नहीं कर सका है।
पहले भी हो चुकी है ऐसी अपील
यह पहली बार नहीं है जब मोरक्को में कुर्बानी पर रोक की अपील की गई है। साल 1966 में किंग हसन II ने भी सूखे और खाद्य संकट के कारण ऐसी ही अपील की थी। विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय आर्थिक और सामाजिक संतुलन बनाए रखने के लिए जरूरी है, लेकिन यह धार्मिक भावनाओं को आहत करने का जोखिम भी उठाता है।
मुस्लिमों में बहस
मोरक्को के इस फैसले ने मुस्लिम दुनिया में एक नई बहस छेड़ दी है। कुछ लोग इसे पर्यावरण और पशु संरक्षण की दृष्टि से सकारात्मक मान रहे हैं, जबकि अन्य इसे इस्लाम की परंपराओं पर हमला बता रहे हैं। भारत जैसे देशों में, जहां बकरीद पर कुर्बानी को लेकर पहले से ही विवाद होता है, मोरक्को का यह कदम चर्चा का विषय बन गया है।