भारत ने पाकिस्तान के आरोपों को लगातार खारिज किया
भारत ने बलूचिस्तान में अपनी संलिप्तता के बारे में पाकिस्तान के आरोपों को लगातार खारिज किया है और कहा है कि इस्लामाबाद को अपने भीतर झांकना चाहिए और बेबुनियाद आरोप लगाने के बजाय आतंकवाद को समर्थन देना बंद करना चाहिए।
इसमें केवल पाकिस्तान में हुई घटनाओं का उल्लेख था
रक्षा मंत्रालय के एक सूत्र ने कहा, “भारत संयुक्त दस्तावेज की भाषा से संतुष्ट नहीं है। इसमें पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले का कोई उल्लेख नहीं था, इसमें पाकिस्तान में हुई घटनाओं का उल्लेख था, इसलिए भारत ने संयुक्त घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया और कोई संयुक्त विज्ञप्ति भी नहीं है।”
क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मुद्दों पर चर्चा
सिंह वर्तमान में एससीओ रक्षा मंत्रियों की बैठक में भाग लेने के लिए चीन के क़िंगदाओ में हैं। शिखर सम्मेलन में क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करने के लिए रूस, पाकिस्तान और चीन सहित सदस्य देश भाग ले रहे हैं। ध्यान रहे कि 2001 में स्थापित, एससीओ का उद्देश्य सहयोग के माध्यम से क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देना है। वर्तमान में इस समूह में 10 सदस्य देश हैं – बेलारूस, चीन, भारत, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान।
आतंकवाद खत्म करने के लिए एकजुट होने का आह्वान किया
रक्षा मंत्री ने शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए एससीओ सदस्यों से सामूहिक सुरक्षा और संरक्षा के लिए आतंकवाद खत्म करने के लिए एकजुट होने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र के सामने सबसे बड़ी चुनौतियां शांति, सुरक्षा और विश्वास की कमी से जुड़ी हैं, कट्टरपंथ, उग्रवाद और आतंकवाद इन समस्याओं का मूल कारण हैं।
इन चुनौतियों से निपटने के लिए निर्णायक कार्रवाई की आवश्यकता
सिंह ने कहा, “शांति और समृद्धि आतंकवाद और गैर-राज्यीय अभिनेताओं और आतंकवादी समूहों के हाथों में सामूहिक विनाश के हथियारों के प्रसार के साथ-साथ नहीं रह सकती। इन चुनौतियों से निपटने के लिए निर्णायक कार्रवाई की आवश्यकता है। यह जरूरी है कि जो लोग अपने संकीर्ण और स्वार्थी उद्देश्यों के लिए आतंकवाद को प्रायोजित, पोषित और उपयोग करते हैं, उन्हें इसके परिणाम भुगतने होंगे।
ऐसे दोहरे मानदंडों के लिए कोई जगह नहीं
उन्होंने पाकिस्तान पर परोक्ष रूप से कटाक्ष किया, कुछ देश सीमा पार आतंकवाद को नीति के साधन के रूप में इस्तेमाल करते हैं और आतंकवादियों को आश्रय देते हैं। ऐसे दोहरे मानदंडों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। एससीओ को ऐसे देशों की आलोचना करने में संकोच नहीं करना चाहिए।”
भारत ने हमले रोकने के अपने अधिकार का इस्तेमाल किया
सिंह ने पहलगाम आतंकी हमले का जिक्र करते हुए कहा कि भारत ने आतंकवाद से बचाव करने और सीमा पार से होने वाले हमले रोकने के अपने अधिकार का इस्तेमाल किया है। उन्होंने कहा, “पहलगाम आतंकी हमले के दौरान, पीड़ितों को उनकी धार्मिक पहचान के आधार पर गोली मार दी गई थी। संयुक्त राष्ट्र की ओर से नामित आतंकी समूह लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के एक प्रतिनिधि द रेजिस्टेंस फ्रंट ने हमले की जिम्मेदारी ली है। पहलगाम हमले का पैटर्न भारत में एलईटी के पिछले आतंकी हमलों से मेल खाता है।
हमने दिखाया है कि आतंकवाद के केंद्र अब सुरक्षित नहीं हैं: भारत
आतंकवाद के प्रति भारत की शून्य सहिष्णुता उसके कार्यों के माध्यम से प्रदर्शित हुई। इसमें आतंकवाद के खिलाफ खुद की रक्षा करने का हमारा अधिकार भी शामिल है। हमने दिखाया है कि आतंकवाद के केंद्र अब सुरक्षित नहीं हैं और हम उन्हें निशाना बनाने में संकोच नहीं करेंगे।”
एससीओ सदस्यों को इस बुराई की स्पष्ट रूप से निंदा करनी चाहिए : भारत
उन्होंने आतंकवाद के अपराधियों, आयोजकों, वित्त पोषकों और प्रायोजकों को पकड़ने और उन्हें न्याय के कठघरे में लाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने आतंकवाद के हर कृत्य को आपराधिक और अनुचित करार दिया। उन्होंने कहा कि एससीओ सदस्यों को इस बुराई की स्पष्ट रूप से निंदा करनी चाहिए।
भारत के फैसले पर कूटनीतिक हलकों में चर्चा तेज
भारत के इस सख्त रुख को अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक और रक्षा विशेषज्ञों ने “साहसिक और सटीक कदम” बताया है। विश्लेषकों का कहना है कि भारत अब अपने राष्ट्रीय सुरक्षा हितों से कोई समझौता नहीं कर रहा है। कई रक्षा विश्लेषकों ने यह भी कहा कि यह कदम चीन और पाकिस्तान के बढ़ते दबदबे को सीधे चुनौती देता है।
क्या एससीओ के भीतर भारत की स्थिति बदलेगी ?
भारत के इस रुख के बाद अब यह देखना अहम होगा कि एससीओ के अन्य सदस्य — विशेषकर रूस, ईरान और मध्य एशियाई देश -भारत के साथ खड़े होते हैं या नहीं। साथ ही, आने वाले सम्मेलनों में भारत की भागीदारी और रुख कैसा रहता है, यह एससीओ की दिशा तय कर सकता है। यह मुद्दा भविष्य में G20 और ब्रिक्स जैसे मंचों पर भी उठ सकता है।
दस्तावेज़ से पहलगाम को क्यों हटाया गया ?
इस पूरे विवाद में एक बड़ा सवाल यह है कि दस्तावेज़ में पहलगाम आतंकी हमले को क्यों नजरअंदाज किया गया, जबकि बलूचिस्तान का उल्लेख कर भारत को घेरने की कोशिश की गई। सूत्रों का मानना है कि यह चीन और पाकिस्तान की आपसी रणनीति का हिस्सा हो सकता है। दस्तावेज़ को अंतिम रूप देने में चीनी प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई दिया, जिससे भारत की आपत्तियां अनसुनी कर दी गईं।
हस्ताक्षर से इनकार, आतंकवाद के खिलाफ भारत का सख्त रुख दिखाता है
बहरहाल रक्षा मंत्री की ओर से संयुक्त वक्तव्य पर हस्ताक्षर करने से इनकार करना आतंकवाद के खिलाफ भारत का सख्त रुख दर्शाता है और ऑपरेशन सिंदूर के बाद वैश्विक संदेश के अनुरूप है। आतंकवाद पर नई दिल्ली के रुख और भविष्य में इससे निपटने की योजना को स्पष्ट करने के लिए आठ प्रतिनिधिमंडल विदेश भेजे गए थे।