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औसतन 2 बच्चे भी पैदा नहीं कर पा रही हैं भारतीय महिलाएं, UN की रिपोर्ट ने बढ़ाई भारत की चिंता

India Population 2025 UN Report: संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट में जनसंख्या संरचना, प्रजनन क्षमता और जीवन प्रत्याशा में महत्वपूर्ण बदलावों का खुलासा किया गया है, जो एक बड़े जनसांख्यिकीय परिवर्तन का संकेत है।

भारतJun 11, 2025 / 08:58 pm

M I Zahir

India Population 2025 UN Report

संयुक्त राष्ट्र ने जनसंख्या के मामले में एक चौं​काने वाली रिपोर्ट पेश की है। (फोटो: वाशिंगटन पोस्ट)

India Population 2025 UN Report: संयुक्त राष्ट्र की एक नई जनसांख्यिकी रिपोर्ट के अनुसार, भारत की जनसंख्या 2025 के अंत तक (India population 2025) 1.46 अरब तक पहुंचने का अनुमान है, जो दुनिया में (UN population report India) सबसे अधिक होगी। साथ ही, रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया है कि देश की कुल प्रजनन दर, प्रतिस्थापन दर से भी नीचे आ गई है। यूएनएफपीए की 2025 विश्व जनसंख्या स्थिति (SOWP) रिपोर्ट वास्तविक प्रजनन संकट (Fertility rate in India), घटती प्रजनन क्षमता से घबराने के बजाय अपूर्ण प्रजनन लक्ष्यों पर ध्यान देने का आह्वान करती है। इसमें कहा गया है कि लाखों लोग अपने वास्तविक प्रजनन लक्ष्य प्राप्त करने में सक्षम नहीं हैं।

प्रजनन क्षमता और जीवन प्रत्याशा में महत्वपूर्ण बदलावों का भी खुलासा

यह वास्तविक संकट है, न कि अल्प जनसंख्या या अति जनसंख्या, और इसका उत्तर अधिक प्रजनन क्षमता में निहित है – एक व्यक्ति की सेक्स, गर्भनिरोधक और परिवार शुरू करने के बारे में 150 प्रतिशत स्वतंत्र और सूचित निर्णय लेने की क्षमता, ऐसा इसमें कहा गया है। रिपोर्ट में जनसंख्या संरचना, प्रजनन क्षमता और जीवन प्रत्याशा में महत्वपूर्ण बदलावों का भी खुलासा किया गया है, जो एक बड़े जनसांख्यिकीय परिवर्तन का संकेत है।

प्रजनन दर में गिरावट, आवश्यक संख्या से कम बच्चे पैदा कर रही हैं

रिपोर्ट में पाया गया है कि भारत की कुल प्रजनन दर घट कर प्रति महिला 1.9 जन्म रह गई है, जो प्रतिस्थापन स्तर 2.1 से नीचे है। इसका अर्थ यह है कि औसतन भारतीय महिलाएं, बिना प्रवास के, एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक जनसंख्या का आकार बनाए रखने के लिए आवश्यक संख्या से कम बच्चे पैदा कर रही हैं।

भारत की युवा जनसंख्या अभी भी महत्वपूर्ण

जन्म दर में कमी के बावजूद भारत की युवा जनसंख्या अभी भी महत्वपूर्ण बनी हुई है, जिसमें 0-14 आयु वर्ग में 24 प्रतिशत, 10-19 आयु वर्ग में 17 प्रतिशत तथा 10-24 आयु वर्ग में 26 प्रतिशत युवा हैं। देश की 68 प्रतिशत जनसंख्या कार्यशील आयु (15-64) की है, जो पर्याप्त रोजगार और नीतिगत समर्थन के साथ, संभावित जनसांख्यिकीय लाभांश प्रदान करेगी।

यह आँकड़ा आगामी दशकों में जीवन प्रत्याशा में सुधार की उम्मीद

वर्तमान में बुज़ुर्ग आबादी (65 वर्ष और उससे अधिक) सात प्रतिशत है, यह आँकड़ा आने वाले दशकों में जीवन प्रत्याशा में सुधार के साथ बढ़ने की उम्मीद है। सन 2025 तक, जन्म के समय जीवन प्रत्याशा पुरुषों के लिए 71 वर्ष और महिलाओं के लिए 74 वर्ष होने का अनुमान है।

भारत विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश

संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के अनुसार, भारत की जनसंख्या वर्तमान में 146 करोड़ 39 लाख है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत अब विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है, जिसकी जनसंख्या लगभग 1.5 अरब है – यह संख्या बढ़कर लगभग 1.7 अरब हो जाने की संभावना है, उसके बाद लगभग40 वर्षों में इसमें गिरावट आना शुरू हो जाएगी।

महिलाओं के पास इस बारे में बहुत कम विकल्प थे कि वे गर्भवती होंगी या नहीं

रिपोर्ट में कहा गया है कि इन आंकड़ों के पीछे उन लाखों दंपतियों की कहानियां हैं जिन्होंने अपना परिवार शुरू करने या बढ़ाने का निर्णय लिया, साथ ही उन महिलाओं की कहानियां भी हैं जिनके पास इस बारे में बहुत कम विकल्प थे कि वे गर्भवती होंगी या नहीं, कब होंगी या कितनी बार गर्भवती होंगी। सन 1960 में जब भारत की जनसंख्या लगभग 436 मिलियन थी, तब औसत महिला के लगभग छह बच्चे होते थे।

महिलाओं का अपने शरीर और जीवन पर नियंत्रण कम था

उस समय, महिलाओं का अपने शरीर और जीवन पर आज की तुलना में कम नियंत्रण था। रिपोर्ट में कहा गया है कि 4 में से 1 से भी कम महिलाएँ किसी न किसी तरह के गर्भनिरोधक का इस्तेमाल करती थीं और 2 में से 1 से भी कम महिलाएँ प्राथमिक विद्यालय जाती थीं (विश्व बैंक डेटा, 2020),लेकिन आने वाले दशकों में, शिक्षा प्राप्ति में वृद्धि हुई, प्रजनन स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच में सुधार हुआ, और अधिक महिलाओं को अपने जीवन को प्रभावित करने वाले निर्णयों में आवाज़ उठाने का मौका मिला। भारत में अब औसत महिला के लगभग दो बच्चे हैं।

महिलाओं को अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है

हालांकि भारत और अन्य सभी देशों में महिलाओं को आज अपनी माताओं या दादियों की तुलना में अधिक अधिकार और विकल्प प्राप्त हैं, फिर भी उन्हें अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है, इससे पहले कि वे अपनी इच्छानुसार संख्या में बच्चे पैदा करने के लिए सशक्त हो सकें, यदि कोई हो, और जब वे चाहें।

जनसांख्यिकीय परिवर्तन और निरंतर असमानताएं

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में भारत को मध्यम आय वाले देशों के समूह में रखा गया है, जो तेजी से जनसांख्यिकीय परिवर्तन से गुजर रहे हैं, जहां जनसंख्या दोगुनी होने में अब 79 वर्ष का समय लगने का अनुमान है। यूएनएफपीए की भारत प्रतिनिधि एंड्रिया एम वोज्नर ने कहा, “भारत ने प्रजनन दर कम करने में महत्वपूर्ण प्रगति की है – सन 1970 में प्रति महिला लगभग पांच बच्चों से लेकर आज लगभग दो तक, बेहतर शिक्षा और प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच के कारण ऐसा हुआ है।”
मातृ मृत्यु दर में बड़ी कमी आई है

मातृ मृत्यु दर में बड़ी कमी आई

उन्होंने कहा, “इससे मातृ मृत्यु दर में बड़ी कमी आई है, जिसका मतलब है कि आज लाखों और माताएँ जीवित हैं, बच्चों की परवरिश कर रही हैं और समुदायों का निर्माण कर रही हैं। फिर भी, राज्यों, जातियों और आय समूहों में गहरी असमानताएँ बनी हुई हैं। वास्तविक जनसांख्यिकीय लाभांश तब मिलता है जब सभी को सूचित प्रजनन विकल्प चुनने की स्वतंत्रता और साधन मिलते हैं। भारत के पास यह दिखाने का एक अनूठा अवसर है कि प्रजनन अधिकार और आर्थिक समृद्धि एक साथ कैसे आगे बढ़ सकते हैं।”

रिएक्शन : जनता और विशेषज्ञों की प्रतिक्रियाएं

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के बाद विभिन्न वर्गों में मिली-जुली प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं।

जनसंख्या विशेषज्ञ प्रो. अरुण मिश्रा ने कहा, “भारत में जनसंख्या की गति अब स्थिरता की ओर है, लेकिन यह कोई खतरे का संकेत नहीं, बल्कि अवसर है—अगर नीति और योजना सही हो।”
महिला अधिकार कार्यकर्ता सुषमा वर्मा ने कहा, “रिपोर्ट यह दिखाती है कि महिलाओं की प्रजनन स्वतंत्रता आज भी अधूरी है। बच्चों की संख्या नहीं, बल्कि निर्णय लेने की आजादी अहम है।”

सोशल मीडिया पर लोगों ने लिखा, “इतनी बड़ी जनसंख्या के बाद भी अगर महिलाएं अब तक खुद तय नहीं कर पा रहीं कि उन्हें कब और कितने बच्चे चाहिए, तो यह असली चिंता का विषय है।”

फॉलोअप : आगे की दिशा क्या होनी चाहिए ?

नीतिगत बदलाव: प्रजनन अधिकारों को स्वास्थ्य नीति का हिस्सा बनाना जरूरी है।

जागरूकता अभियान: ग्रामीण इलाकों और पिछड़े वर्गों में महिलाओं को अधिकारों के प्रति जागरूक करना अनिवार्य है।
शहरी बनाम ग्रामीण अंतर: सरकारी योजनाओं को अधिक संतुलित तरीके से लागू करना होगा ताकि हर महिला तक प्रजनन स्वास्थ्य सेवाएं पहुंच सकें।

संभावना है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारें आने वाले बजट और नीतियों में इस रिपोर्ट के आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए परिवार कल्याण से जुड़ी योजनाओं में बदलाव करें।

साइड एंगल : जनसंख्या स्थिर, लेकिन चुनौतियां अभी बाकी हैं

कार्यशील जनसंख्या का दबाव: भारत की 68% आबादी कार्यशील आयु वर्ग में है, लेकिन रोज़गार, कौशल और आर्थिक अवसरों की कमी है। अगर इसका सही उपयोग न हुआ, तो यह अवसर एक बोझ बन सकता है।
बुजुर्गों की बढ़ती संख्या: अगले दशकों में बुजुर्गों की आबादी तेजी से बढ़ेगी, जिसके लिए स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक सुरक्षा तंत्र को मजबूत करना होगा।

शहरीकरण और संसाधनों पर दबाव: जैसे-जैसे जनसंख्या का चरित्र बदल रहा है, वैसे-वैसे शहरों में भीड़, पर्यावरणीय संकट और बुनियादी सेवाओं पर बोझ बढ़ रहा है।
महिलाओं की भागीदारी का सवाल: केवल प्रजनन दर घटाना ही लक्ष्य नहीं होना चाहिए, बल्कि महिलाओं की शिक्षा, आर्थिक भागीदारी और निर्णय लेने की क्षमता बढ़ाना भी उतना ही जरूरी है।

भारत की जनसंख्या अब तेजी से नहीं बढ़ रही है

बहरहाल भारत की जनसंख्या अब तेजी से नहीं बढ़ रही है, लेकिन असमानता, अधिकारों की कमी और नीति में लचीलापन जैसे मुद्दे सामने आ रहे हैं। यह समय है कि भारत संख्या से आगे बढ़ कर गुणवत्ता, समानता और स्वतंत्रता की दिशा में कदम बढ़ाए।

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