धरने में महिलाओं और बच्चों की भागीदारी: “हमारे शव हमें लौटा दो”
शवों को न लौटाने के विरोध में, महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों सहित सैकड़ों लोगों ने मुख्य राजमार्ग पर शांतिपूर्ण धरना दिया। वे इस्लामी और बलूच परंपराओं के अनुसार अंतिम संस्कार की अनुमति की मांग कर रहे थे। फिर भी, अधिकारियों ने शव लौटाने से इनकार कर दिया-जिससे परिवारों को अनुपस्थित जनाज़ा पढ़ने पर मजबूर होना पड़ा।
रिएक्शन : मानवाधिकार संगठनों ने पाकिस्तानी सेना पर उठाए गंभीर सवाल
अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाओं ने इस घटना को “गंभीर धार्मिक और सांस्कृतिक उल्लंघन” करार दिया है। ह्यूमन राइट्स वॉच और एमनेस्टी इंटरनेशनल ने पाकिस्तान से जवाबदेही और जांच करवाने की मांग की है। बलूच सामाजिक कार्यकर्ता गुल नाज बलोच ने कहा, “हमसे सिर्फ जीवन नहीं, अब मृतकों की शांति भी छीनी जा रही है।”
फॉलोअप: क्या न्याय मिलेगा या फिर एक और ‘अनकही कहानी’ …
पाकिस्तान सरकार ने अब तक कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण नहीं दिया है। न तो सेना की ओर से बयान आया है, न ही स्थानीय प्रशासन ने जांच की घोषणा की है। यह मामला बलूचिस्तान में पहले से जारी “जबरन गायबियों” की कड़ी में एक और दुखद अध्याय बनता जा रहा है।
साइड एंगल: बलूचिस्तान में कब्रिस्तान बनते जा रहे हैं ‘राजनीतिक हथियार’
बलूच विश्लेषकों का कहना है कि अब कब्रिस्तान भी एक राजनीतिक हथियार बन चुके हैं — जहां दफन न करना, गुप्त दफन करना, या कब्र पर कोई पहचान न देना, सब कुछ एक संदेश है: “तुम्हारा कोई अस्तित्व नहीं बचा।” इससे सांस्कृतिक और सामाजिक टिशू पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है, और बलूच समुदाय में राज्य संस्थाओं के प्रति विश्वास लगभग शून्य हो चुका है।
आस्था, पहचान, और आत्मसम्मान के साथ सीधा टकराव है
बहरहाल बलूचियों का कहना है कि यह घटना सिर्फ एक दफ़नाने की नहीं है-यह आस्था, पहचान, और आत्मसम्मान के साथ सीधा टकराव है। और जब किसी समाज को उसके मृतकों तक से वंचित किया जाए, तो यह केवल मानवाधिकार नहीं, बल्कि सभ्यता के मौलिक सिद्धांतों पर हमला बन जाता है।