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वाराणसी

मोहर्रमः वाराणासी में 8 तालों में बंद 350 साल पुराना मोटे शाबान का ताजिया निकाला गया बाहर

हर साल की तरह इस साल भी इस साढ़े तीन सौ साल पुराने ऐतिहासिक ताजिए को पूरे अहतियात के साथ भाहर निकाला गया है। करीब चार दशक पुराने इस ताजिए को साल 1981 से 6 मोहर्रम यानी मोहर्रम महीने की 6 तारीख को मस्जिद में बने हुजरे से पुलिस और प्रशासन की मौजूदगी में बाहर निकाला जाता है। 

वाराणसीJul 02, 2025 / 04:59 pm

Krishna Rai

मोटे शाबान का ताजिया निकाला गया बाहर

350 साल पुराना मोटे शाबान का ताजिया निकाला गया बाहर

मोहर्रम के पवित्र महीने में वाराणसी के दोषीपुरा के बारादरी इमामबाड़े का चर्चित मोटे शाबान का ताजिया बाहर निकाला गया है। मोहर्रम के जुलूस में शामिल किए जाने के बाद इस ताजिए को बारादारी के हुजरे में आठ तालों में बंद कर दिया जाता है। हर साल की तरह इस साल भी इस साढ़े तीन सौ साल पुराने ऐतिहासिक ताजिए को पूरे अहतियात के साथ भाहर निकाला गया है। करीब चार दशक पुराने इस ताजिए को साल 1981 से 6 मोहर्रम यानी मोहर्रम महीने की 6 तारीख को मस्जिद में बने हुजरे से पुलिस और प्रशासन की मौजूदगी में बाहर निकाला जाता है। 

हाई कोर्ट का ताजिया

इसके लिए 8 तालों की सील को लोगों की मौजूदगी में हटाया जाता है। जब इस ताजिए को बाहर निकाला गया तब मस्जिद के बाहर और भीतर भारी भीड़ मौजूद थी। इस ताजिए को 42 हिस्सों में अलग-अलग करके मस्जिद के हुजरे में रखा जाता है। बाहर निकाले जाने के बाद इसे फिर से जोड़ दिया जाता है। शिया मुसलमानों के लिए इस ताजिए का महत्व सिर्फ धार्मिक ही नहीं बल्कि ऐतिहासिक भी है। इस ताजिए को पिछले साल 12 मोहर्रम को आठ ताले लगाने के बाद सीलबंद किया गया था। इसे हाई कोर्ट का ताजिया भी कहते हैं। इसके तालों पर मस्जिद के मुतवल्ली के अलावा जैतपुर थाने की मुहर भी लगी होती है। 42 पार्ट में अलग-अलग करके रखें जाने वाले इस ताजिया को बारादरी में बैठाया जाता है। 

350 साल पुराना है ताजिया

बिठाने से पहले मस्जिद समिति के लोग इसके अलग-अलग हिस्सों की साफ-सफाई करते हैं। बाद में इसे सजाकर बारादरी में बिठा दिया जाता है जहां अकीदतमंद इसका दर्शन करते हैं। मस्जिद के मुतवल्ली गुलजार अली के मुताबिक यह ताजिया 350 साल पुराना है। इस ताजिये को ईरानी और मुग़ल संस्कृति के डिजाइन से तैयार किया गया था। इसे बनाने में साखू और सागवान के साथ ही साथ शीशम की लकड़ी का इस्तेमाल हुआ है।

इस पर ईरानी संस्कृति से प्रभावित नक्काशी है और सोने और चांदी के पत्तर भी लगे हुए हैं। मोहर्रम के जुलूस में शामिल होने के बाद ये ताजिया फिर से 12 मुहर्रम को हुजरे में बंद कर दिया जाएगा। इस ताजिए का नाम मोटे शाबान के नाम पर है जिनका 1857 में इंतकाल हुआ था। इसके बाद से इसे मोटे शाबान का ताजिया कहा जाने लगा। हालांकि ये ताजिया उससे पहले से था। मोटे शाबान तत्कालीन काशी नरेश के खास लोगों में शामिल थे और वाराणासी के शिया समुदाय का चर्चित नाम थे।

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