scriptशहादत को मिला 30 साल बाद सम्मान, पत्नी और भाई ने लड़ी लड़ाई, ऐसे लापता हुए थे प्रेम सिंह | Martyrdom got respect after 30 years, wife and brother fought the battle, this is how Prem Singh went missing | Patrika News
देहरादून

शहादत को मिला 30 साल बाद सम्मान, पत्नी और भाई ने लड़ी लड़ाई, ऐसे लापता हुए थे प्रेम सिंह

अगस्त 1994 में बांग्लादेशी तस्करों का पीछा करते हुए लापता हुए प्रेम सिंह को यह सम्मान दिलाने के लिए उनकी पत्नी गुड्डी देवी और भाई धनसिंह ने 30 साल तक ऐसी लड़ाई लड़ी, जिसमें न वर्दी थी और न ही हथियार। सिर्फ हौसला और उम्मीद थी।

देहरादूनMay 28, 2025 / 05:39 pm

Avaneesh Kumar Mishra

परिजनों को प्रमाणपत्र सौंपते हुए कमांडेंट, PC – Twitter

हल्द्वानी: देश की सीमाओं पर खून बहाकर मातृभूमि की रक्षा करने वाले कई जवान गुमनामी में खो जाते हैं, परंतु कभी-कभी उम्मीद की लौ अंधेरे को चीरकर उजाला कर जाती है। ऐसा ही हुआ उत्तराखंड के सपूत लांस नायक प्रेम सिंह रावत के साथ, जिनकी शहादत को तीस वर्षों बाद आखिरकार ‘बलिदानी’ का दर्जा मिल गया। यह सिर्फ एक प्रमाणपत्र नहीं, बल्कि संघर्ष, पीड़ा, और धैर्य की लंबी कहानी का प्रतीक है।

तस्करों का पीछा करते समय गई थी जान

रिकोशा गांव (ताड़ीखेत ब्लॉक) के निवासी प्रेम सिंह बीएसएफ की 57वीं बटालियन में सामान्य ड्यूटी पर थे। पश्चिम बंगाल के जलांगी, रोशनबाग सीमा चौकी पर तैनात इस वीर जवान को, अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बांग्लादेशी तस्करों की घुसपैठ रोकने के लिए दो अन्य जवानों के साथ भेजा गया था। मुठभेड़ के दौरान तस्करों की नौका का साहसपूर्वक पीछा करते हुए प्रेम सिंह ने दुश्मनों का डटकर सामना किया, मगर वीरगति को प्राप्त हो गए।

नदी में मिला था पार्थिव शरीर

तत्कालीन सर्च ऑपरेशन में अगले दिन पद्मा नदी से उनका पार्थिव शरीर बरामद हुआ, लेकिन उनकी शहादत को औपचारिक मान्यता नहीं मिल सकी। पत्नी गुड्डी देवी रावत और भाई धन सिंह रावत ने वर्षों तक उम्मीद का दामन थामे रखा। अंततः डीजी बीएसएफ और बल के प्रयासों से इस जांबाज सपूत को वह सम्मान मिला, जिसके वह हकदार थे।

घर जाकर सौंपा गया प्रमाणपत्र

कमांडेंट ऑफिसर दिनेश सिंह ने सशस्त्र सीमा बल की ओर से हल्द्वानी स्थित प्रेम सिंह के घर जाकर वीरांगना और परिवार को ‘ऑपरेशनल कैजुअल्टी प्रमाणपत्र’ सौंपा। इस अवसर पर उनका बेटा सूर्यप्रताप सिंह रावत और भाई भी मौजूद रहे। पूरे गांव में गर्व और श्रद्धा का भाव व्याप्त हो गया, और अनेक की आंखें भीग गईं।
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बीएसएफ ने प्रेम सिंह के बलिदान को ससम्मान याद करते हुए परिवार को हरसंभव सहयोग का भरोसा दिया। यह प्रमाणपत्र सिर्फ शहीद को श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि राष्ट्र की ओर से यह स्वीकार करना भी है कि जो मिट जाते हैं वतन की खातिर, उनका कर्ज कभी चुकाया नहीं जा सकता।

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