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जलवायु परिवर्तन से भू-चुंबकीय तूफानों का असर और बढ़ सकता है

वैज्ञानिकों का कहना है कि आने वाले दशकों से यह उम्मीद थी कि ऊपरी वायुमंडल पतला होगा। अब सवाल यह है कि जब शक्तिशाली तूफान आएंगे, तो वे इस पतले वायुमंडल को कैसे ऊपर उठाएंगे।

जयपुरAug 16, 2025 / 06:44 pm

Shalini Agarwal

जयपुर। धरती के ऊपर कार्बन डाइऑक्साइड की बढ़ती मात्रा यह तय करेगी कि भू-चुंबकीय तूफान (Geomagnetic Storms) ऊपरी वायुमंडल को किस तरह प्रभावित करेंगे। वैज्ञानिकों का कहना है कि भविष्य में ऐसे तूफानों के समय वायुमंडल की घनत्व (density) आज की तुलना में कम हो सकती है, लेकिन शांति से तूफान तक का उतार-चढ़ाव और अधिक तेज़ हो सकता है। यह बदलाव उपग्रहों पर खिंचाव (satellite drag), उनकी कक्षा (orbit) की उम्र, और स्पेस वेदर की योजना बनाने के तरीके को प्रभावित करेगा। अमरीका की नेशनल साइंस फाउंडेशन (NSF) के नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक रिसर्च (NCAR) और जापान की क्यूशू यूनिवर्सिटी की टीम ने मिलकर इस पर अध्ययन किया। इसमें दिखाया गया कि कैसे लंबे समय तक वायुमंडल का ठंडा और पतला होना भविष्य के भू-चुंबकीय तूफानों की प्रकृति बदल देगा।

अंतरिक्ष तक पहुंचा जलवायु परिवर्तन

धरती के निचले वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड गर्मी को फंसा लेती है। लेकिन ऊपरी परतों में, जहां हवा बहुत कम होती है, वहीं यह गैस गर्मी को अंतरिक्ष में भेज देती है। इससे ऊपरी वायुमंडल ठंडा और कम घनत्व वाला हो जाता है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि आने वाले दशकों से यह उम्मीद थी कि ऊपरी वायुमंडल पतला होगा। अब सवाल यह है कि जब शक्तिशाली तूफान आएंगे, तो वे इस पतले वायुमंडल को कैसे ऊपर उठाएंगे।
एनएसएफ एनसीएआर के वैज्ञानिक निकोलस पेडाटेला ने कहा—
“सूरज से आने वाली ऊर्जा भविष्य में वायुमंडल पर अलग असर डालेगी, क्योंकि पृष्ठभूमि में वायुमंडल की घनत्व बदल रही है। यह उपग्रह उद्योग के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि उन्हें खास परिस्थितियों के हिसाब से डिज़ाइन करना होता है।”
दशकों में भू-चुंबकीय तूफान

टीम ने मई 2024 में आए बड़े भू-चुंबकीय तूफान को उदाहरण बनाकर अध्ययन किया। उन्होंने जांचा कि यही तूफान अगर 2016 में आता तो क्या असर होता, और भविष्य के सौर न्यूनतम (solar minima) काल 2040, 2061 और 2084 में क्या हालात होंगे।
इसके लिए उन्होंने “कम्युनिटी अर्थ सिस्टम मॉडल” का उपयोग किया, जिसमें थर्मोस्फीयर और आयनोस्फीयर तक का विस्तार शामिल था। यह धरती की सतह से लेकर लगभग 500 से 700 किलोमीटर ऊंचाई तक जाता है—यानी वही क्षेत्र जहां उपग्रह उड़ते हैं। सभी सिमुलेशन एनएसएफ एनसीएआर–वायोमिंग सुपरकंप्यूटिंग सेंटर के डेरचो सुपरकंप्यूटर पर किए गए।
भविष्य में तूफान और तीखे होंगे

अध्ययन में पाया गया कि इस सदी के अंत तक मई 2024 जैसे तूफान के समय वायुमंडल की घनत्व 20% से 50% तक कम होगी। यानी, बिल्कुल संख्या के हिसाब से यह कम घना होगा। लेकिन तुलना करने पर यह बदलाव उलटा दिखाई देगा क्योंकि सामान्य स्थिति में वायुमंडल पहले से ही पतला होगा, इसलिए वही तूफान और ज्यादा प्रतिशत वृद्धि दिखाएगा। आज कोई तूफान घनत्व को दोगुना कर देता है, तो भविष्य में वही तूफान इसे लगभग तीन गुना तक बढ़ा सकता है।
उपग्रहों के लिए चुनौती

वायुमंडल की घनत्व और गति दोनों पर निर्भर करता है कि उपग्रह पर कितना खिंचाव पड़ेगा। पतले वायुमंडल में उपग्रह ज्यादा समय तक टिकते हैं। लेकिन बड़े तूफानों के दौरान कई दिनों तक अचानक खिंचाव बढ़ने से उपग्रह की कक्षा बिगड़ सकती है, वे जल्दी गिर सकते हैं या टकराव का खतरा बढ़ सकता है। इसलिए उपग्रह डिजाइनरों और ऑपरेटरों को अब ऐसी दुनिया के लिए तैयार रहना होगा जहां सामान्य स्थिति ज्यादा शांत होगी, लेकिन तूफानी झटके और अचानक होंगे।
क्यों है यह अहम?

नेविगेशन, संचार, पृथ्वी का अवलोकन और राष्ट्रीय सुरक्षा—सभी उपग्रहों पर निर्भर करते हैं। जब उपग्रहों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, तो खिंचाव के आंकड़ों में छोटे-छोटे बदलाव भी बड़े असर डाल सकते हैं। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि भविष्य में स्पेस वेदर (अंतरिक्ष मौसम) की भविष्यवाणी करने के लिए और अध्ययन जरूरी हैं, ताकि उपग्रह उद्योग पहले से तैयारी कर सके। यह अध्ययन जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

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