दो जून की रोटी कमाने की मशक्कत
चिलचिलाती धूप में हाड़तोड़ मेहनत करने के बाद भी दो जून की रोटी का जुगाड़ करना गंभीर समस्या बन गई है। पेट की क्षुधा शांत करने को काम मिल गया तो घर में चूल्हा जलेगा अन्यथा भूखे पेट ही रात को आसमान के तारे गिनने को मजबूर होना पड़ता है। बढ़ती महंगाई ने तो मजदूर की जैसे कमर ही तोड़ दी है।
बढ़ रहा है श्रमिकों का शोषण
भूखे पेट धनाढ्य परिवारों के घरों, होटलों, रेस्तराओं, ढाबों, कारखानों, चाय की दुकानों, खेतों में पसीना बहाकर पर्याप्त मेहनताना नसीब नहीं होने से श्रमिकों का शोषण बढ़ रहा है। जबकि श्रमिकों के हितों के लिए कार्य करने वाले संबंधित विभाग शोषण के खिलाफ शिकायत मिलने का इंतजार ही करते हैं।
नहीं बना पाते अपना आशियाना
सेहत दे या न दे, लेकिन हाडतोड़ मेहनत करते-करते जिंदगी बीत जाती है। अधिकांश श्रमिकों के अपने लिए आशियाना बनाने के सपने उनके अधूरे ही रह जाते हैं। मजदूरी का यह सिलसिला एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक मानों चलता ही रहता है। हालांकि अब मजदूरों के बच्चों में शिक्षा को लेकर बढ़ रही जागरूकता से समाज में बड़ा बदलाव होने की उम्मीद है।