उन्होंने कहा कि स्त्री केवल शरीर नहीं है। उसमें वह गुण है कि वह पशु योनि से आए जीव को भी गर्भ में मनुष्य की आकृति देकर उसे संस्कारित कर उसके भविष्य निर्माण का जिम्मा संभालती है। अपने पूरे जीवन में कभी अपने लिए नहीं जीती। फल देने के लिए वृक्ष की तरह वह भी पुत्र तो कभी पति के लिए अपने अस्तित्व को भूल जाती है। ऐसे में सृष्टि निर्माण में स्त्री व पुरुष के मूल स्वरूप को पहचान कर शिक्षा को भी आज उसी दिशा में मोड़ने की आवश्यकता है।
शिक्षा में विषय, संवेदना खत्म
गुलाब कोठारी ने कहा कि आज की शिक्षा में केवल विषय पढ़ाए जा रहे हैं। उनमें तथ्यों पर तो ध्यान है, लेकिन व्यक्ति की सबसे बड़ी ताकत संवेदनाओं पर नहीं। इससे मानवता का स्तर गिर रहा है। उन्होंने कहा, आज की शिक्षा बुद्धिमान तो बना रही है, लेकिन विवेकशील व समझदार नहीं। कार्यक्रम में सीकर, झुंझुनूं व चूरू जिले की महिलाओं और छात्राओं ने भौतिक और आध्यात्मिक जीवन से जुड़ी जिज्ञासाएं भी सवालों के जरिये शांत की। कार्यक्रम की शुरुआत में प्रिंस एनडीए अकादमी के निदेशक जोगेन्द्र सुण्डा व डॉ. पीयष सुण्डा ने कोठारी का स्वागत किया।
स्त्री त्रिकालदर्शी और तपस्विनी
कोठारी ने कहा कि स्त्री त्रिकालदर्शी होती है। कर्मफल सिद्धांत के अनुसार उसे गर्भ में आ रहे जीव के अतीत का अनुभव हो जाता है। उसके वर्तमान स्वरूप के साथ उसे परिवार के हिसाब से उसके भविष्य की जानकारी होती है। जीव के शरीर निर्माण के समय कई तरह के अन्न का त्याग कर संयम पूर्वक जीने का तप करती है।