scriptपीछा नहीं छोड़ रहा पोस्ट कोविड इफेक्ट, पांच गुना बढ़े एंग्जाइटी के शिकार… जानें इसके लक्षण व उपाय | The number of people suffering from anxiety has increased 5 times due to the post covid effect | Patrika News
रायपुर

पीछा नहीं छोड़ रहा पोस्ट कोविड इफेक्ट, पांच गुना बढ़े एंग्जाइटी के शिकार… जानें इसके लक्षण व उपाय

Raipur News: कोरोना महामारी में बमुश्किल बचने के बाद दोबारा सामान्य जिंदगी जीने वाले हजारों लोग अब एंग्जाइटी व पैनिक एंग्जाइटी से पीड़ित हो गए हैं। दरअसल वे ऐसे लोग हैं, जो कोरोना से तो बच गए हैं, लेकिन बार-बार मौत का ख्याल उनके दिमाग में आता है।

रायपुरAug 30, 2025 / 01:14 pm

Khyati Parihar

पांच गुना बढ़े एंग्जाइटी के शिकार (फोटो सोर्स- Getty Images/iStockphoto)

पांच गुना बढ़े एंग्जाइटी के शिकार (फोटो सोर्स- Getty Images/iStockphoto)

CG News: कोरोना महामारी में बमुश्किल बचने के बाद दोबारा सामान्य जिंदगी जीने वाले हजारों लोग अब एंग्जाइटी व पैनिक एंग्जाइटी से पीड़ित हो गए हैं। दरअसल वे ऐसे लोग हैं, जो कोरोना से तो बच गए हैं, लेकिन बार-बार मौत का ख्याल उनके दिमाग में आता है। वे सोचते हैं कि कहीं वे फिर से बीमार तो नहीं पड़ जाएंगे। दोनों ऐसी बीमारी है, जिसमें मरीज में घबराहट, बेचैनी बढ़ जाती है। यही नहीं मौत व विनाश का डर भी सताने लगता है। कोरोनाकाल के बाद ऐसे मरीजों की संख्या 5 गुना तक बढ़ गई है।
एम्स, आंबेडकर व निजी अस्पतालों के मनोरोग विभाग की ओपीडी में एंग्जाइटी व पैनिक एंग्जाइटी के रोजाना 45 से 50 मरीज आ रहे हैं। कोरोनाकाल के पहले ऐसे मरीजों की संख्या महज 10 के आसपास थी। एम्स में रोजाना 12 से 15, आंबेडकर अस्पताल में 10 से 12 व निजी अस्पतालों में 23 एंग्जाइटी मरीजों का इलाज किया जा रहा है।
दरअसल मरीजों से सबसे पहले यह पूछा जाता है कि कोरोना से पीड़ित तो नहीं हुए। हिस्ट्री में कोरोना पॉजिटिव आने के बाद डॉक्टरों की स्टडी में इस बात की पुष्टि हुई कि एंग्जाइटी व पैनिक एंग्जाइटी के लिए कोरोना भी काफी जिम्मेदार है। कुछ मरीज आत्महत्या तक का प्रयास कर चुके हैं। ऐसे मरीजों का इलाज भी किया जा रहा है।
केस- 1. 47 वर्षीय राजेश (बदला हुआ नाम) अप्रैल 2020 में कोरोना पॉजिटिव आए थे। वह 20 दिनों तक आईसीयू में भर्ती रहे। इलाज के बाद वे ठीक हो गए। दिसंबर 2020 से वे पैनिक एंग्जाइटी से पीड़ित हो गए। इससे न केवल वे, बल्कि परिजन भी परेशान हैं। वे 4 साल से नियमित दवाएं ले रहे हैं।
केस- 2. 29 वर्षीय महेंद्र (बदला हुआ नाम) जुलाई 2020 में कोरोना से संक्रमित हुए। वे एक सप्ताह तक वेंटिलेटर पर भी रहे। मुश्किल से जान बची तो वे इसी बीमारी के बारे में बार-बार सोचते रहे। नतीजतन वे भी एंग्जाइटी का शिकार हो गए। यही नहीं पिछले 5 साल से केवल 4 से 5 घंटे सो पाते हैं।

एम्स, आंबेडकर अस्पताल व निजी अस्पतालों में ऐसे मरीजों की भीड़

12 से 15 मरीज रोजाना एम्स में
10 से 1२ आंबेडकर अस्पताल में
23 मरीज निजी अस्पतालों में

मोबाइल की लत ने घटाया नींद का समय

कोरोनाकाल व इसके बाद लोगों की नींद भी उड़ी हुई है। डॉक्टरों के अनुसार स्वस्थ रहने के लिए रोजाना 7 से 8 घंटे नींद जरूरी है। लेकिन कई लोग 4 से 5 घंटे ही सो पा रहे हैं। कोरोना का नींद से सीधा संबंध तो नहीं है, लेकिन लॉकडाउन के समय लगी मोबाइल की लत अब तक नहीं छूटी है। इसमें बच्चों से लेकर सभी उम्र के लोग शामिल हैं। लोग अभी भी घंटों मोबाइल फोन पर गुजार रहे हैं। इस कारण लोगों की नींद हराम है। बदलती जीवनशैली व बढ़ते तनाव ने भी नींद के घंटे घटाए हैं। लोग अस्पतालों में जाकर इलाज करवा रहे हैं।

डॉ. मनोज साहू, एचओडी मनोरोग आंबेडकर अस्पताल

कोरोना के बाद से अनिद्रा संबंधी बीमारी के काफी मरीज भी काफी आ रहे हैं। उनकी काउंसिलिंग कर इलाज किया जा रहा है। अच्छा होगा कि सभी सोने के पहले मोबाइल फोन से दूर रहें। सिरहाने रखकर कभी न सोएं। संतुलित भोजन के साथ फिजिकल एक्सरसाइज भी करें। तनाव न लें। इससे अच्छी नींद आएगी और स्वास्थ्य ठीक रहेगा।

डॉ. लोकेश सिंह

कोरोना से संक्रमित होने के बाद स्वस्थ हुए लोगों में एंग्जाइटी व पैनिक एंग्जाइटी बीमारी बढ़ी है। कोरोनाकाल के बाद ऐसे मरीजों की संख्या 5 गुना तक बढ़ गई है। ओपीडी में ऐसे मरीजों की संख्या काफी रहती है। लोगों को लगातार इलाज कराने की जरूरत है। परिवार के सदस्य भी मरीजों का सपोर्ट करें। इससे उन्हें स्वस्थ होने में मदद मिलेगी।

एंग्जाइटी के लक्षण

  • 5-10 मिनट में अचानक घबराहट व बेचैनी बढ़ जाना।
  • हाथ व पैरों में कंपन, सीने में दर्द।
  • दिल की धड़कन बढ़ जाना व हार्ट अटैक आने का डर।
  • आंखों के सामने अंधेरा छा जाना।
  • सांस लेने में तकलीफ, पसीना आना।
  • लगातार मृत्यु या विनाश का भय।
  • लगातार चिंता या डर की भावना।

कुछ प्रभावी उपाय

  • पर्याप्त नींद लें और संतुलित आहार अपनाएं
  • नियमित योग और ध्यान करें।
  • मोबाइल व सोशल मीडिया का सीमित उपयोग करें।
  • भरोसेमंदों से भावनाएं साझा करें।
  • सकारात्मक गतिविधियों में समय दें, नकारात्मकता से बचें।
  • मनोचिकित्सक/काउंसलर से परामर्श लें।

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