मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस में प्रवेश लेने वाले 80 से 90 फीसदी छात्र सीबीएसई कोर्स वाले होते हैं। इनमें कुछ छात्र आईसीएसई बोर्ड वाले होते हैं। 10 फीसदी छात्र हिंदी माध्यम वाले होते हैं, जो सीजी बोर्ड की पढ़ाई करते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार सरकार की पहल अच्छी थी, लेकिन छात्रों को रास नहीं आया। नीट का सिलेबस सीबीएसई पैटर्न वालों के लिए काफी मददगार होता है। सीजी बोर्ड के छात्र भी सीबीएसई की किताब या कोचिंग कर नीट यूजी की तैयारी करते हैं।
हिंदी माध्यम वाले छात्र एमबीबीएस की पढ़ाई बेहतर ढंग से कर सके इसलिए पिछले साल हिंदी दिवस 14 सितंबर को राज्य सरकार ने हिंदी माध्यम में एमबीबीएस की पढ़ाई कराने की घोषणा की गई थी। नए सेशन 2025-26 के लिए 29 जुलाई से ऑनलाइन काउंसलिंग शुरू होने वाली है। घोषणा को 10 माह से ज्यादा हो गए, लेकिन किसी छात्र ने हिंदी माध्यम से पढ़ाई को तवज्जो नहीं दिया। पत्रिका की पड़ताल में पता चला है कि कई कॉलेजों में हिंदी में पढ़ाने वाली फैकल्टी भी नहीं है। ऐसे में वे छात्रों को हिंदी में कैसे पढ़ा पाएंगे, ये बड़ा सवाल है। लाइब्रेरी में कुछ बुक रखवाए गए हैं। क्लस में छात्रों को हिंदी में भी एक्सप्लेन करते हैं। किसी ने हिंदी का विकल्प नहीं दिया है।
डॉ. पीएम लूका, डीन मेडिकल कॉलेज राजनांदगांव एक भी छात्र ने एमबीबीएस के लिए हिंदी माध्यम का विकल्प नहीं चुना है। छात्रों की सुविधा के लिए हिंग्लिश में पढ़ा रहे है। डॉ. केके सहारे, डीन मेडिकल कॉलेज कोरबा
कोई आदेश नहीं- हिंदी में पढ़ाई हो
सरकार ने हिंदी में एमबीबीएस की पढ़ाई की घोषणा तो कर दी, पर किसी कॉलेज में इस संबंध में चिकित्सा शिक्षा विभाग ने कोई आदेश ही जारी नहीं किया है। मेडिकल कॉलेजों के डीन ने इसकी पुष्टि भी की है। ये जरूर है कि नेहरू मेडिकल कॉलेज रायपुर समेत कुछ अन्य कॉलेजों में 2 से 3 छात्रों ने हिंदी माध्यम में पढ़ाई करने की रूचि दिखाई थी। , लेकिन इतने कम छात्रों के लिए अलग क्लास लगाना संभव नहीं दिखा। इसलिए सभी कॉलेजों में कहीं भी हिंदी माध्यम की क्लास नहीं लग रही है।
डीन ने ये कहा…
हिंदी माध्यम में एमबीबीएस की पढ़ाई नहीं हो रही है। गिनती के छात्रों ने रूचि दिखाई। ऐसे में अलग क्लास नहीं लगा सकते।-डॉ. विवेक चौधरी, डीन नेहरू मेडिकल कॉलेज रायपुर किसी भी छात्र ने अगस्त-सितंबर में होने वाली वार्षिक परीक्षा के लिए हिंदी माध्यम नहीं लिखा है। क्लास भी नहीं लग रही है। -डॉ. प्रदीप बेक, डीन मेडिकल कॉलेज जगदलपुर