कम से कम 30 साल की हो सकती है रिटायरमेंट लाइफ
जबकि हकीकत यह है कि लोग 60 की उम्र में रिटायर होकर 90 साल तक जी सकते हैं। यानी कम से कम 30 साल का रिटायरमेंट जीवन हो सकता है। यह समय सिर्फ लंबी छुट्टी जैसा नहीं होता, बल्कि एक अलग आर्थिक दौर होता है, जिसके लिए अलग से आमदनी, सोच-समझ और मानसिक मजबूती की जरूरत होती है। इसलिए अब सवाल सिर्फ यह नहीं होना चाहिए कि मुझे कब रिटायर होना चाहिए, बल्कि यह होना चाहिए कि मेरे पास जो पैसा है, वह कितने साल तक चलेगा।
70% बुजुर्ग आर्थिक रूप से दूसरों पर निर्भर
देश की लगभग 70% बुजुर्ग आबादी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं है। कई लोग सेवानिवृत्ति के बाद भी जीवनयापन के लिए काम करना जारी रखते हैं। लॉन्गिट्यूडनल एजिंग स्टडी (LASI) के रिटायरमेंट के लिए निवेश करने में निष्कर्षो पर आधारित ‘भारत में वृद्धावस्था: चुनौतियां और अवसर’ रिपोर्ट में कहा गया कि बेहतर जीवन प्रत्याशा के बावजूद अधितकर भारतीय बुजुर्ग आर्थिक और स्वास्थ्य संबंधी असुरक्षाओं के साथ जी रहे हैं। लगभग 6.4% बुजुर्गों ने अपने भोजन की मात्रा कम कर दी है। 5.6% लोग कई दिन तक भूखे रहे। इस रिपोर्ट को संकल्प फाउंडेशन ने नीति आयोग, सामाजिक न्याय मंत्रालय और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के साथ साझेदारी में जारी किया है।कहां हो जाती है गलती?
औसत उम्र के हिसाब से प्लान ज्यादातर रिटायरमेंट प्लान 75 से 80 साल की औसत उम्र के आधार पर बनाए जाते हैं। अगर आप सेहतमंद हैं और आर्थिक रूप से मजबूत हैं, तो 50% संभावना है कि आप इससे ज्यादा जिएंगे। असली समस्या जल्दी मौत नहीं, बल्कि लंबी उम्र जीने पर पैसों की कमी होना है। इसलिए 90 की उम्र ध्यान में रख योजना बनाएं।
रिटायरमेंट की नई सोच : 30 साल की प्लानिंग
अब पारंपरिक तरीकों से काम नहीं चलेगा। जैसे कि सारा पैसा फिक्स्ड इनकम स्कीमों, सरकारी बॉन्ड या एन्युइटी में लगाना, केवल ईपीएफ या पेंशन पर निर्भर रहना या पूरा रिटायरमेंट फंड निकालकर एफडी में डाल देना। ये उपाय बढ़ती महंगाई और लंबी उम्र के हिसाब से काफी नहीं हैं। इसलिए जरूरी है कि आप ऐसा रिटायरमेंट प्लान तैयार करें जो सुरक्षा भी दे, आपकी पूंजी को बढ़ाए भी और समय-समय पर नियमित आमदनी भी देता रहे। लंबी अवधि के लिए कुछ निवेश इक्विटी में भी कर सकते हैं।अब थ्री- बकेट अप्रोच अपनाएं
शॉर्ट टर्म जरूरतें: 0 से 5 साल तक का खर्च रिटायरमेंट के बाद पहले पांच साल के भीतर जो खर्चे होंगे (जैसे राशन, बिजली-पानी, किराया ईएमआइ, हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम, कोई इमरजेंसी) उन्हें शॉर्ट टर्म बकेट में डालें। इस पैसे की जरूरत तुरंत पड़ने वाली होती है, इसलिए इसमें सुरक्षा और पैसे की तुरंत उपलब्धता सबसे अहम है, न कि ज्यादा रिटर्न इसलिए इस पैसे को ऐसे विकल्पों में लगाना बेहतर होता है, जो कम जोखिम वाले हों और जिन्हें कभी भी निकाला जा सके।शॉर्ट टर्म फिक्स्ड डिपॉजिट
लिक्विड या अल्ट्रा-शॉर्ट ड्यूरेशन म्यूचुअल फंड्स
मध्यम अवधि : रिटायरमेंट के 5 से 15 साल
यह फेज ऐसा होता है जब आप अपना जीवन स्तर बनाए रखना चाहते हैं, बढ़ते खर्चों का सामना कर रहे होते हैं। जैसे नई गाड़ी खरीदना या पुरानी की मरम्मत, घर की मेंटेनेंस, इलाज आदि। इस बकेट में थोड़ा बहुत ग्रोथ का नजरिया रखा जा सकता है, लेकिन जोखिम से भी पूरी तरह बचाव जरूरी होता है। यानी पैसा धीरे-धीरे बढ़ता भी रहे और जरूरत पड़ने पर आसानी से उपलब्ध भी हो। इस बकेट के लिए आप कुछ ऐसे निवेश विकल्प चुन सकते हैं जो संतुलित हों।बैलेंस्ड हाइब्रिड म्यूचुअल फंड्स
कंजरवेटिव एसेट एलोकेशन प्लान्स
लंबी अवधि: 15 साल से अधिक के लिए
तीसरा बकेट रिटायरमेंट के 15 साल बाद की जरूरतों को पूरा के लिए बनाया जाता है। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना होता है कि रिटायरमेंट के दौरान पैसे की कमी न हो। चूंकि इस फंड की जरूरत अगले 10-15 साल तक नहीं पड़ेगी, इसलिए इसे उन विकल्पों में लगाया जा सकता है जो लंबी अवधि में अच्छा रिटर्न देते हैं। लंबी अवधि होने की वजह से इस बकेट का फंड बाजार के उतार-चढ़ाव को झेल सकता है और कंपाउंडिंग का लाभ उठा सकता है। 30 से 35 साल की उम्र से ही निवेश शुरू करने पर कंपाउंडिंग का भी फायदा मिलेगा। निवेश शुरू करने से पहले इमरजेंसी फंड बनाना और हेल्थ व टर्म इंश्योरेंस कराना भी बेहद जरूरी है।इंडेक्स फंड्स या ईटीएफ इक्विटी लिंक्ड पेंशन प्लान्स