आज से ठीक 7 साल और 10 महीने पहले मध्यप्रदेश की राजनीति में ऐसा पल आया था, जब कांग्रेस ने 15 साल बाद सत्ता में वापसी की थी। 17 दिसंबर 2018 को कांग्रेस ने सपा, बसपा और निर्दलियों के समर्थन से कमलनाथ के नेतृत्व में सरकार बनी थी, लेकिन डेढ़ साल बाद ही अचानक ज्योदिरादित्य सिंधिया और उनके 22 विधायकों ने इस्तीफा देकर कमलनाथ सरकार को अल्पमत में ला दिया था। कमलनाथ को 20 मार्च 2020 में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ गया था।
हाल ही में एक मीडिया हाउस के पॉडकास्ट में दिग्विजय सिंह ने सवाल किया गया कि कहा जाता है आपका क्लेश था, आपने ही कमलनाथ को एडवाइज किया था कि कुछ नहीं होगा सरकार को, आप चिंता मत करो?
इस पर दिग्विजय सिंह ने जवाब दिया कि आपके पास गलत खबर है…ये प्रचारित किया गया। मैंने वॉर्न किया था कि ये घटना हो सकती हैं। मैं नाम नहीं लेना चाहता एक ऐसी शख्सियत हैं, अच्छे उद्योगपति हैं, अच्छे परिवार से हैं, उन दोनों से अच्छे संबंध हैं। मैं उनके पास गया और कहा कि इन दोनों की लड़ाई में हमारी सरकार गिर जाएगी। आप जरा संभालिए, क्योंकि आप दोनों के अच्छे संबंध हैं। उन्होंने जवाब दिया कि ठीक है…”
आगे दिग्विजय सिंह ने बताया कि उसके बाद उनके घर में खाना रखा गया। उसमें मैं भी मौजूद था। मैंने बहुत कोशिश की, कि मामला निपट जाए, लेकिन जो वहां काम करने के लिए इश्यूज थे, जो तय हुआ था, उसका पालन नहीं हुआ। ये बात सही है और मेरे सतत प्रयासों के बाद भी नहीं हो पाया। पॉडकास्टर ने सवाल पूछा कि क्या बात का पालन नहीं हुआ? इस पर दिग्विजय सिंह ने कहा कि छोटी मोटी बातें ये करना चाहिए, ये होना चाहिए। तो ये हुआ था कि ग्वालियर-चंबल संभाग में जैसा हम दोनों कहेंगे वैसा वो कर देंगे। हम दोनों ने दूसरे दिन अपनी विश लिस्ट जॉइंटली बनाकर दे दी। मैंने भी दस्तखत किए, उन्होंने भी दस्तखत किए। उस विश लिस्ट का पालन नहीं हुआ। फिर दिग्विजय से पूछा गया कि तो कहीं न कहीं कमलनाथ और सिंधिया जी का क्लेश सरकार गिरने का कारण बना? जिस पर दिग्विजय सिंह ने कहा- जी…।
कमलनाथ ने कहा – पुरानी बातें उखाड़ने से कोई फायदा नहीं
दिग्विजय सिंह के बयान पर पूर्व सीएम कमलनाथ ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा कि मध्य प्रदेश में 2020 में मेरे नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार गिरने को लेकर हाल ही में कुछ बयानबाजी की गई है। मैं सिर्फ़ इतना कहना चाहता हूँ कि पुरानी बातें उखाड़ने से कोई फ़ायदा नहीं। लेकिन यह सच है कि व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के अलावा श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को यह लगता था कि सरकार श्री दिग्विजय सिंह चला रहे हैं। इसी नाराज़गी में उन्होंने कांग्रेस के विधायकों को तोड़ा और हमारी सरकार गिरायी।
जीतू पटवारी बोले- दोनों में 45 साल का प्रेम
पीसीसी चीफ जीतू पटवारी ने दिग्विजय और कमलनाथ के ट्वीट पर कहा कि दोनों में 45 साल का प्रेम है। दोनों छोटे-बड़े भाई हैं। पुरानी बातों चर्चा करने का औचित्य नहीं है। दोनों की अपनी केमेस्ट्री है। हमें अब भविष्य देखना है। हमारी सरकार कैसे बने यह देखना है।जानें ‘ऑपरेशन लोटस’ की पूरी कहानी
कमलनाथ की सरकार गिराने की बिसात 2-3 मार्च की रात से ही शुरु हो गई थी। गुरुग्राम के मानसेर में स्थित आईटीसी ग्रैंड होटल में मध्य प्रदेश की नंबर प्लेट वाली गाड़ियां एक के बाद एक पहुंचने लगती हैं। इन गाड़ियों से बसपा के संजीव सिंह कुशवाह, कांग्रेस के ऐंदल सिंह कंसाना, कमलेश जाटव, रघुराज कंसाना, हरदीप सिंह, रणवीर जाटव, बिसाहूलाल सिंह, निर्दलीय सुरेंद्र सिंह शेरा, सपा के राजेश शुक्ला पहुंचते हैं। होटल के अंदर पहले से ही अरविंद भदौरिया, नरोत्तम मिश्रा और रामपाल सिंह मौजूद थे। इधर, बसपा से निष्कासित विधायक राम बाई को भूपेंद्र सिंह चार्टर्ड प्लेन से लेकर दिल्ली पहुंचते हैं। इसी दौरान कहीं से खबर फैलती है कि मध्य प्रदेश के कुछ निर्दलीय और कांग्रेसी विधायकों दिल्ली पहुंचे हैं। एक विधायक ने अपने करीबी को फोन पर जानकारी दे दी थी कि वह दिल्ली में हैं। इसकी जानकारी कांग्रेस के पास पहुंचती हैं। जानकारी के तुरंत बाद ही कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, जीतू पटवारी और जयवर्धन सिंह एक्टिव मोड में आ जाते हैं।
जीतू पटवारी और जयवर्धन सिंह पहुंच जाते हैं होटल
2-3 मार्च की दरमियानी रात जीतू पटवारी और जयवर्धन सिंह मानसेर के आईटीसी ग्रैंड होटल पहुंच जाते हैं। यहां पर घंटों तक जमकर ड्रामेबाजी चलती हैं। हालांकि, रामबाई समेत तीन कांग्रेसी विधायकों को लेकर दोनों नेता कामयाब हो जाते हैं। मगर, हरदीप सिंह, बिसाहूलाल सिंह, राजेश शुक्ला, संजीव सिंह कुशवाह, रघुराज कंसाना और सुरेंद्र सिंह शेरा वापस नहीं लौटते और 4 मार्च को होटल से निकलकर भोपाल की जगह बेंगलुरु पहुंच जाते हैं। इन विधायकों को संभालने की जिम्मेदारी तत्कालीन मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा बेटे विजयेंद्र की थी। सभी विधायकों को प्रेस्टीज पालम मेडोज होटल में रखा गया।दिग्विजय ने अपनाई थी चाणक्य नीति
विधायकों की मानसेर में होने की खबर तेजी से मीडिया में फैल गई और पूरा मीडिया जगत का जमावड़ा होटल के बाहर लग गया था। होटल में बड़ी संख्या में पुलिस तैनात कर दी गई। दिग्विजय ने होटल जाने की बजाय चाणक्य नीति खेली और रामबाई की दिल्ली में पढ़ रही बेटी को होटल में भेजकर अपडेट ले लिया। उस रात तक तो कोई नेता बेंगलुरु नहीं गया था।6 मार्च को हुआ पहला इस्तीफा
विधायक हरदीप सिंह डंग मंत्री न बनाएं जाने से खफा थे। वह 6 मार्च को अचानक इस्तीफा देकर गायब हो गए। डंग का इस्तीफा होते कमलनाथ भी सक्रिय हो गए और सभी विधायकों को तत्काल प्रभाव से भोपाल बुलाया। कांग्रेस ने किसी तरह 6 विधायकों की भोपाल वापसी करा ली थी। मगर उसके बावजूद पांच विधायक गायब थे।प्लान A फ्लॉप हुआ तो प्लान B की पिक्चर में आए सिंधिया
जब आलाकमान में प्रदेश के हाथ से मामला छूटता देखा तो खुद ही एक्टिव हुआ और प्लान B पर काम शुरु कर दिया। इस पिक्चर में अहम किरदार निभाया भाजपा के वरिष्ठ नेता जफर इस्लाम ने, उन्होंने आलाकमान से सिंधिया की मुलाकात कराई। जिसके बाद से कमलनाथ की सरकार गिराने की पटकथा शुरु हुई।7 मार्च को कांग्रेस की हाईलेवल मीटिंग हुई
शुरुआत में ऑपरेशन लोटस को धराशाई करने के बाद कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और विवेक तन्खा की सोनिया गांधी से मुलाकात हुई। पार्टी हाईकमान ने निर्देश दिए कि सिंधिया को प्रदेशाध्यक्ष की कमान सौंप दी जाए। मगर, कमलनाथ के पार्टी हाईकमान को भरोसा दे रखा था कि सरकार नहीं गिरेगी। सिंधिया खेमा चाहता था कि सिंधिया को प्रदेशाध्यक्ष बनाया जाए।सिंधिया समर्थकों ने खोल दिया था मोर्चा
तत्कालीन मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया ने बयान दे दिया कि अगर कमलनाथ सरकार ने सिंधिया की उपेक्षा की, तो इस सरकार पर संकट आ जाएगा। दिग्विजय और कमलनाथ को सिंधिया की चुप्पी संकेत दे रही थी कि खेल बड़ा होने वाला है। दोनों नेता एक्टिव थे कि किसी तरह सरकार बच जाए, लेकिन मंत्री पद की जिम्मेदारी बिसाहूलाल नाराज होकर बेंगलुरु पहुंच गए। इंदौर से भोपाल लौटकर बिसाहूलाल ने कमलनाथ से बात तो की। मगर सीधा भाजपा में शामिल हो गए।सियासी ड्रामे के बीच गायब हुए सिंधिया
भाजपा का प्लान B भी 9 मार्च से शुरु हुआ। खबर आई कि ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने 22 के करीब विधायकों के साथ गायब हो गए। इसमें 6 मंत्री विधायक शामिल थे। कांग्रेस को भनक लगी की सभी नेताओं को बेंगलुरु ले जाया गया है। इसमें गोविंद सिंह राजपूत, प्रद्युम्न सिंह तोमर, इमरती देवी, तुलसी सिलावट, प्रभुराम चौधरी, महेंद्र सिंह सिसोदिया, हरदीप सिंह डंग, जसपाल सिंह जज्जी, राजवर्धन सिंह, ओपीएस भदौरिया, मुन्नालाल गोयल, रघुराज सिंह कंसाना, कमलेश जाटव, बृजेंद्र सिंह यादव, सुरेश धाकड़, गिर्राज दंडोतिया, रक्षा संतराम सिरौनिया, रणवीर जाटव, जसवंत जाटव, मनोज चौधरी, बिसाहूलाल सिंह, एंदल सिंह कंसाना शामिल थे।
पायलट और देवड़ा को मिली थी सिंधिया को मनाने की जिम्मेदारी
पार्टी से नाराज चल रहे सिंधिया और उनके समर्थकों की जिम्मेदारी सचिन पायलट और मिलिंद देवड़ा को सौंपी गई, लेकिन सिंधिया ने किसी से मुलाकात नहीं की। इधर, अचानक खबर आई कि सिंधिया ने गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात करने पहुंचे हैं। इस खबर के आते कांग्रेस खेमे में हड़कंप मच गया।
10 मार्च को सिंधिया ने पीएम मोदी से की मुलाकात
ड्रामेबाजी के बीच 10 मार्च की सुबह सिंधिया ने दिल्ली स्थित आवास से सीधे निकलकर गृह मंत्री अमित शाह से मिलने पहुंचे और फिर पीएम मोदी से मिलने पहुंचे। मुलाकात के कुछ देर बाद ही हुआ जिसका कांग्रेस आलाकमान को डर था। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया। सिंधिया के इस्तीफे के बाद एक के बाद एक 22 विधायकों इस्तीफे दे दिए। इसके चलते कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई।