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आजादी की लड़ाई को रफ्तार देने वाला वो स्वतंत्रता संग्राम सेनानी… जिसके आगे हिल गईं थी ब्रिटिश हुकूमत

उत्तर प्रदेश के बलिया में जन्मे भारत माता के सपूत मंगल पांडेय ने आजादी का बिगुल फूंका था। उन्होंने परेड ग्राउंड में ही अंग्रेज अफसर बॉव और सार्जेंट मेजर ह्यूसन को मौत के घाट उतार दिया था।

बलियाAug 01, 2025 / 08:35 pm

Avaneesh Kumar Mishra

स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में बलिया का नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। यह वही धरती है, जहां से क्रांति की पहली चिंगारी भड़की और अंग्रेजों को यह एहसास हुआ कि अब भारत माता के लाल जाग चुके हैं। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महानायक, शहीद मंगल पांडे की शहादत ने अंग्रेजी हुकूमत की जड़ों को हिला दिया था।
महान क्रांतिकारी मंगल पांडे का जन्म 30 जनवरी 1831 को बलिया जिले के नगवा गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। सेना में भर्ती होने के बाद भी उन्हें अपने धार्मिक नियमों का पालन करने की स्वतंत्रता थी। उस समय सैनिकों में ईसाई धर्म में परिवर्तित करने का कुचक्र चल रहा था।
पश्चिम बंगाल के बैरकपुर में कारतूस बनाने वाली एक फैक्ट्री थी, जिसके अधिकांश कर्मचारी दलित थे। एक दिन प्यास लगने पर एक दलित कर्मचारी मातादीन ने मंगल पांडे से पानी मांगा। मंगल पांडे ने उसे पानी देने से मना कर दिया। इस पर मातादीन ने कटाक्ष करते हुए कहा, ‘जिस कारतूस को आप दांतों से तोड़कर बंदूक में भरते हैं, उस पर तो गाय और सूअर की चर्बी लगी होती है। तब आपका धर्म कहां चला जाता है?’ इस बात ने मंगल पांडे की आंखें खोल दीं।

बैरकपुर से फूंका था बिगुल

29 मार्च 1857 को मंगल पांडे ने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया था। उन्होंने परेड ग्राउंड में ही अंग्रेज अफसर बॉव और सार्जेंट मेजर ह्यूसन को मौत के घाट उतार दिया। उन्होंने सभी सिपाहियों को चर्बी लगे कारतूसों की सच्चाई बताई और अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने का आह्वान किया।
मंगल पांडे ने फौजी अदालत में कहा, ‘मैंने जो कुछ भी किया, सोच-समझकर राष्ट्र और धर्म के लिए किया।’ इसके बाद उन्हें फांसी की सज़ा सुनाई गई। बैरकपुर छावनी के परेड मैदान में फांसी का मंच बनाया गया। 7 अप्रैल को सुबह फांसी दी जानी थी, लेकिन बैरकपुर के जल्लादों ने मंगल पांडे को फांसी देने से इनकार कर दिया। मजबूरन, कोलकाता से जल्लादों को बुलाया गया।
अंग्रेज अफसर जनरल हियर्सी ने 7 अप्रैल को निर्देश जारी किया कि 8 अप्रैल 1857 को सुबह 5:30 बजे, ब्रिगेड परेड के मैदान में 34वीं देसी पैदल सेना के 19वीं रेजीमेंट नेटिव इंफैंट्री की पांचवी कंपनी के 1446 नंबर के सिपाही मंगल पांडे को फांसी दी जाएगी। निर्धारित समय पर, 8 अप्रैल की सुबह 5:30 बजे उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया।

नगवा गांव को झेलनी पड़ी थी प्रताड़ना

मंगल पांडे के विद्रोह के बाद उनके गांव नगवा के लोगों को अंग्रेजों की क्रूरता का सामना करना पड़ा। गांव के बुजुर्गों और जानकारों का कहना है कि मंगल पांडे को फांसी दिए जाने के बाद गांववालों को परेशान किया जाने लगा। इस प्रताड़ना से तंग आकर कुछ लोग गांव छोड़कर पटखौली, शेर, सहतवार, खानपुर, डुमरिया, गोपाल पांडेय के टोला और गाजीपुर के गोंडउर जैसे गांवों में जाकर बस गए। आज भी, कश्यप गोत्री ब्राह्मण परिवार मंगल पांडे के वंशज हैं। ये लोग जहां भी बसे हैं, आदि ब्रह्म बाबा की पूजा के माध्यम से अपनी पुरातन पहचान बनाए हुए हैं।

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