झालावाड़ नहीं रहा बारिश का सरताज, कोटा ने मारी सबसे ज्यादा बारिश में बाजी, 1128 मिमी बारिश के साथ टॉप पर
Rajasthan Rainfall 2025: दिलचस्प बात यह है कि कोटा में पिछले साल इसी समय तक 830.20 मिमी ही बारिश हुई थी, जबकि इस साल लगभग 36% अधिक वर्षा दर्ज की गई है।
Rajasthan Monsoon Report: राजस्थान में बारिश के पैटर्न में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। जो झालावाड़ कभी प्रदेश का ‘चेरापूंजी’ कहलाता था, वह अब लगातार पिछड़ रहा है। इस साल कोटा और बांसवाड़ा जैसे जिले बारिश के मामले में आगे निकल चुके हैं। जल संसाधन विभाग के आंकड़ों के अनुसार 1 जून से 5 अगस्त 2025 तक झालावाड़ जिले में 910.14 मिमी बारिश दर्ज की गई है, जबकि पिछले साल इसी अवधि में यहां 1143 मिमी बारिश हो चुकी थी। इस बार जिले की बारिश सामान्य से करीब 20% कम रही है।
कोटा जिले ने इस बार बारिश के आंकड़ों में नया मुकाम हासिल किया है। 5 अगस्त 2025 तक कोटा में 1128.74 मिमी बारिश दर्ज की गई, जो पूरे प्रदेश में सबसे अधिक है। वहीं बांसवाड़ा में भी 1068 मिमी बारिश हो चुकी है। यह आंकड़े पिछले वर्षों की तुलना में काफी बेहतर हैं। दिलचस्प बात यह है कि कोटा में पिछले साल इसी समय तक 830.20 मिमी ही बारिश हुई थी, जबकि इस साल लगभग 36% अधिक वर्षा दर्ज की गई है।
मौसम परिवर्तन का असर, खेती और जल संसाधन पर प्रभाव
बारिश के इस बदले पैटर्न का सीधा असर कृषि और जल भंडारण पर भी दिखने लगा है। जहां एक ओर कोटा में नारायणा डेम जैसे जलाशय लबालब भर गए हैं, वहीं झालावाड़ के कई हिस्सों में सामान्य से कम वर्षा होने से किसानों में चिंता बनी हुई है। कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यही रुझान जारी रहा तो फसल चक्रों में बदलाव और जल प्रबंधन रणनीति पर दोबारा विचार करने की ज़रूरत पड़ेगी। मौसम विभाग के अनुसार प्रदेश में अब तक औसतन 632.98 मिमी बारिश हो चुकी है, जो सामान्य से अधिक है। हालांकि, क्षेत्रीय असमानता साफ दिख रही है—कुछ जिलों में औसत से बहुत अधिक बारिश हुई है, तो कुछ जगहें अब भी तरस रही हैं।
पुराने ट्रेंड्स को बदल रही मानसून की चाल
राजस्थान में मानसून की चाल अब पुराने ट्रेंड्स को बदल रही है। जहां कभी झालावाड़ सबसे अधिक बारिश वाला जिला हुआ करता था, वहीं अब कोटा और बांसवाड़ा जैसे जिले नए रिकॉर्ड बना रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन और मानसून ट्रफ की दिशा में बदलाव इसके प्रमुख कारण हैं। आने वाले समय में इस बदलते ट्रेंड को ध्यान में रखकर कृषि, जल प्रबंधन और आपदा नियंत्रण की नीतियों में बदलाव आवश्यक होगा।
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