क्यों चर्चा में है कुटुंबा विधानसभा
औरंगाबाद जिले का कुटुंबा विधानसभा सीट कल तक राजनीतिक चर्चाओं में ‘अनजान’ था। लेकिन राजेश राम के कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद यह सीट खास हो गया है। इस सीट पर अब एनडीए की भी नजर है। दरअसल, कुटुंबा सीट वर्ष 2008-09 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई। इससे पहले यह सीट 1977 से देव विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा हुआ करता था। 2010 में यहां हुए पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार हुई। कांग्रेस प्रत्याशी तीसरे नंबर रहे।
जीतन राम मांझी के बेटे हराकर पहली बार जीते थे राजेश राम
जदयू के ललन राम ने आरजेडी के सुरेश पासवान को हराकर यह जीत अपने नाम कर लिया था। लेकिन, 2015 के विधानसभा चुनाव में यह सीट महागठबंधन के कोटे में आया। कांग्रेस ने एक बार फिर इस सीट पर राजेश राम को ही अपना प्रत्याशी बनाया। महागठबंधन के प्रत्याशी के रूप में 2015 में राजेश राम ने पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के बेटे डॉ संतोष सुमन को इस सीट पर पराजीत कर पहली जीत दर्ज किया था। राजेश राम ने 10 हजार वोटों से डॉ संतोष सुमन को पराजित किया था। इसके बाद राजेश राम ने वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में ये सीट अपने नाम कर लिया।
राजेश राम के सामने हैट्रिक लगाने की चुनौती
कुटुंबा जब देव विधानसभा का हिस्सा था, तब इस सीट पर राजेश राम के पिता दिलकेश्वर राम का कब्जा हुआ करता था। दिलकेश्वर राम देव विधानसभा से वर्ष 1980 और 1985 में जीत हासिल किया था। उस दौरान प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। कांग्रेस सरकार में वे स्वास्थ्य मंत्री थे। दिलकेश्वर राम अपने समय में बिहार कांग्रेस के बड़े नेता हुआ करते थे। इसके साथ ही वे कांग्रेस में एक बड़ा दलित चेहरा भी हुआ करते थे। उनके बाद राजेश राम इस सीट पर जीत का सिलसिला जारी रखे हुए हैं। लेकिन, 2025 के विधानसभा चुनाव में उनके सामने अपनी सीट को बचाने की एक बड़ी चुनौती है।
कुटुंबा में तीन लाख वोटर
कुटुंबा में कुल मतदाताओं की संख्या 2,87,310 है। इनमें पुरुष वोटर 151,111 और महिला 1,36,196 हैं। 18 से 19 साल के युवा मतदाताओं की संख्या 3761 है। कुटुंबा विधानसभा क्षेत्र (सु.) विधानसभा है। इसमें तीन प्रखंडों की 34 पंचायतें शामिल हैं। इनमें कुटुंबा प्रखंड की 20, नवीनगर प्रखंड की 10 और देव प्रखंड की 4 पंचायतें हैं।