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आपकी बात…सोशल मीडिया पर व्यस्तता पारिवारिक संबंधों में किस तरह दूरियां बढ़ा रही है?

पाठकों ने इस पर विभिन्न प्रतिक्रियाएं दी हैं। प्रस्तुत हैं पाठकों की कुछ प्रतिक्रियाएं…

जयपुरJun 15, 2025 / 01:20 pm

विकास माथुर

अपनों के बीच बढ़ रही हैं दूरियां
सोशल मीडिया की आभासी दुनिया हमारे अपनों के बीच दूरियां बढ़ा रही हैं। हम साथ रहते हुए भी साथ नहीं रहते, एक दूसरे से बात नहीं करते, आवश्यक काम टलते जाते हैं, जिसका ख़ामियाज़ा भी हमें ही भुगतना पड़ता है। सैंकड़ों फ्रैंड्स और फॉलोअर्स के बावज़ूद लोगों को अकेलेपन का एहसास होता है। आपसी संबंधों में कटुता आ रही है। युवा जोड़ों में तलाक़ तक की नौबत आने लगी है. सोशल मीडिया का बुद्धिमत्ता से उपयोग करना नितान्त आवश्यक है.
— ईश्वर जैन “कौस्तुभ”, उदयपुर
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संबंधों में भावनात्मक जुड़ाव घटा है
सोशल मीडिया पर अधिक व्यस्त होने से परिवार के साथ बैठना और भावनात्मक जुड़ाव घट गया है। रिश्तों में दूरी बढ़ गई है । आज संवाद के लिए भी सोशल मीडिया का सहारा लिया जा रहा हैं जिससे परिवार का महत्व कम होगया है। डिजिटल जुड़ाव के साथ पारिवारिक जुड़ाव भी ज़रूरी है।
— रचना मालिक, गोहाना( हरियाणा)
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पारिवारिक रिश्तों में बढ़ी खामोशी
सोशल मीडिया ने हमें वैश्विक मंच दिया, पर पारिवारिक रिश्तों में खामोशी ला दी। जीवन की भागदौड़ में, सोशल मीडिया के माध्यम से स्क्रीन पर बिताया वक्त परिवार से बातचीत, अपनापन, आत्मीयता धीरे-धीरे समाप्त कर रहा है। बच्चे माता-पिता के साथ हंसी-मजाक की जगह ऑनलाइन दुनिया चुन रहे हैं। दादा-दादी की कहानियां अब स्टेटस अपडेट्स में खो रही हैं। लाइक्स और शेयर की चमक में, अपनों की मुस्कान फीकी पड़ रही है। घर में एक साथ बैठकर चाय की चुस्कियां के साथ गपशप अब सपना-सा लगता है। सवाल यह है कि क्या हम सोशल मीडिया छोड़कर परिवार की डोर को फिर से मजबूत कर सकते हैं?
इशिता पाण्डेय, कोटा
संवादहीनता और अलगाव की भावना हो रही विकसित
सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग से परिवार में आमने सामने की बातचीत कम हो गई है। इससे संवादहीनता और अलगाव की भावना पैदा हो रही है। आपस में नाराजगी और अलगाव पैदा होने से सदस्यों के बीच भ्रम व अविश्वास हो रहा है। सोशलमीडिया पर ऐसी अनेक बातें होती हैं जिसे देखकर ईष्र्या और मन में हीनभावना आ रही है। पति पत्नी के रिश्तों में भी खटास आ रही है वजह एक दूसरे को समय नहीं देना।
— ओमवीरसिंह राठौड़, बैठवास, जोधपुर
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जीवन का अमूल्य समय हो रहा बर्बाद
सोशल मीडिया के जीवन में प्रवेश से जीवन का अमूल्य समय व्यर्थ हो रहा है। इससे रिश्तो में रूखापन, संवाद हीनता और मन में अवसाद बढ़ रहा है। परिवार बिखर रहे हैं। अपने मन की बात कहने, दुख सुख में एक दूसरे की मदद करने की भावना जाती रही है। प्रसन्नता के भाव रिश्ते को और आनंददायक बनाते हैं परंतु सोशल मीडिया में अनावश्यक व्यस्तता के कारण पारिवारिक संबंधों में एक बड़ी और घातक दरार पैदा हो रही है।
— सतीश उपाध्याय, मनेंद्रगढ़, जिला एमसीबी, छत्तीसगढ़
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परिवार में धैर्य व समर्पण का हो रहा अभाव
इससे परिवार के सदस्यों में आपसी प्रेम, सौहार्द और विश्वास की कमी होती जा रही है। वे आपस में एक दूसरे को शक की नजरों से देखने लगते हैं । संवाद की कमी से यह शक और गहरा होता जाता है । परिवार में धैर्य व समर्पण का अभाव होता जा रहा है। घर के सभी सदस्य प्रतिदिन एक निश्चित समय पर सोशल मीडिया से दूरी रखकर आपस में संवाद करें तो इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है।
— गोकुल चंद यादव, विलेज गांधीनगर पोस्ट श्योपुर तहसील मुंडावर जिला खैरथल— तिजारा
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परिवार के बीच हो रही संवाद की कमी
वर्चुअल कनेक्शन के बावजूद लोग अकेलापन महसूस करते हैं। सोशल मीडिया असली रिश्तों की जगह नहीं ले सकता। यह परिवार के बीच संवाद की कमी को और बढ़ाता है। लोग सोशल मीडिया पर इतना समय बिताते हैं कि परिवार के साथ गुणवत्तापूर्ण समय कम हो जाता है। स्क्रॉलिंग, चैटिंग या वीडियो देखने में व्यस्त रहने से आमने-सामने की बातचीत कम होती है। ऑनलाइन बातचीत में भावनाओं की गहराई अक्सर नहीं होती। सोशल मीडिया एक उपयोगी उपकरण हो सकता है, लेकिन इसका संतुलित उपयोग पारिवारिक संबंधों को मजबूत रखने के लिए जरूरी है।
  • सुखपाल सिंह थिंद – डबली राठान (हनुमानगढ़)
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सोशल मीडिया से भावनात्मक दूरी व रिश्तों में तल्खी
कभी महान् राजनैतिक विचारक ने कहा था कि ‘मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है’ यह बात समय के साथ धुंधला गई है या यूं कहें कि अमान्य हो गई है। सोशल मीडिया ने चौपालों, उद्यान, गली—मोहल्ले के मुहाने पान की गुमटी अलावा तापते लोग परिचर्चा के स्थल हुआ करते थे । मुठ्ठी का मोबाइल और मोबाइल में पसरे सोशल मीडिया ने भावनात्मक दूरी व रिश्तों में तल्खी ला दी है। ऐसे में लोगों को मूक-बधिरता से बाहर लाना आसान नहीं है।
— हुकुम सिंह पंवार, टोड़ी इन्दौर
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दूसरोंं से तुलना करने पर अंसतोष की भावना
लोग सोशल मीडिया पर अधिक समय बिताने लगे हैं। जिससे वे अपने परिवार और मित्रों के साथ कम समय बिताते हैं। लोग सोशल मीडिया पर दूसरों की जिंदगी से अपनी तुलना करने लगते हैं, जिससे ईर्ष्या और असंतोष की भावना पैदा हो सकती है।
— प्रवेश भूतड़ा, सूरत
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संवाद की जगह चुप्पी व जुड़ाव के बजाय अकेलापन
आज के डिजिटल युग में सोशल मीडिया हमारी दिनचर्या का अभिन्न हिस्सा बन गया है, लेकिन इसकी अति हमारे पारिवारिक संबंधों में दूरी उत्पन्न कर रही है। लोग आभासी दुनिया में इतने अधिक उलझ गए हैं कि अपने परिवार के साथ समय बिताना कम हो गया है। भोजन के समय, छुट्टियों में या पारिवारिक आयोजनों में भी मोबाइल स्क्रीन पर नजरें टिकी रहती हैं। संवाद की जगह चुप्पी और भावनात्मक जुड़ाव की जगह अकेलापन पनप रहा है। इससे आपसी समझ, स्नेह और भरोसे में कमी आ रही है, जो पारिवारिक संबंधों को धीरे-धीरे कमजोर बना रही है।
— मनीष भारद्वाज, संदीपनि विद्यालय भानपुरा, मंदसौर
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तकनीक में पारंगत नहीं बुजुर्ग अकेलेपन का शिकार
इससे रिश्तों में संवाद की कमी हो गई है। पारिवारिक सदस्य मोबाइल स्क्रीन में खोए रहते हैं। भोजन का समय, संवाद का समय, हंसी मजाक की बातचीतें कहीं बीते जमाने की बातें हो गई हैं। जो बुजुर्ग तकनीक में पारंगत नहीं हैं, वे अलग—थलग महसूस करते हैं। वे अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं। परिवार केवल साथ रहने से नहीं बनता, बल्कि आपसी संवाद, समझ और समय बिताने से मजबूत होता है। जब हर कोई सोशल मीडिया की दुनिया में व्यस्त हो जाए, तो घर के अंदर एक अजीब-सी चुप्पी भर जाती है। इसके लिए मोबाइल का संतुलित उपयोग करना चाहिए।
— स्वाति सोमानी, उदयपुर

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