scriptपाठ्यक्रम में विचारधारा नहीं, विवेचन की जरूरत है | Patrika News
ओपिनियन

पाठ्यक्रम में विचारधारा नहीं, विवेचन की जरूरत है

डॉ.विनोद यादव ,
शिक्षाविद् एवं इतिहासकार

जयपुरJul 19, 2025 / 03:16 pm

Shaily Sharma

विद्यार्थी हित को सर्वोपरि रखा जाए

प्रत्येक राष्ट्र को समृद्ध, सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने में शिक्षा की प्रमुख भूमिका मानी जाती है। दुनिया तेजी से बदल रही है और शिक्षा-प्रणाली को भी इससे तालमेल बिठाने की जरूरत है। लेकिन राजनीतिक लाभ एवं तमाम तरह के पूर्वाग्रहों व अवधारणाओं से मुक्त होकर पाठ्यक्रम को अपडेटेड करना विद्यार्थियों के लिए उपयोगी होता है।
मुख्य रूप से जूनियर कक्षाओं की इतिहास की किताबों से मुगल साम्राज्य और दिल्ली सल्तनत से संबंधित अध्यायों को हटाने और प्राचीन भारतीय राजवंशों पर ध्यान केंद्रित करने के फैसले पर बहस हो रही है। कुछ अध्येताओं का मानना है कि यह बदलाव इतिहास को विस्तृत करता है, जबकि अन्य का कहना है कि यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2023 के अनुरूप है। एनसीईआरटी के नीति-निर्धारक कह रहे हैं कि मुगलों के इतिहास को हटाया नहीं गया है, बल्कि विद्यार्थियों से पाठ्यक्रम के बोझ को कम कर कुछ हिस्सों को हटाया गया है।
एनसीईआरटी के अधिकारियों की राय है कि कोविड महामारी की वजह से विद्यार्थियों का बहुत नुकसान हुआ है, देश के लगभग 24 करोड़ बच्चे लगभग 16-17 महीनों तक स्कूली कक्षाओं से वंचित रहे।

छात्रों पर सिलेबस का दबाव और बोझ कम करने के लिए विशेषज्ञों की सलाह पर ये बदलाव किए गए हैं। भारतीय परंपरा के जिन सन्दर्भों को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है, उनकी संस्तुति राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 तथा राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा द्वारा की गई है।
एनसीईआरटी समय-समय पर पाठ्य-पुस्तकों के सिलेबस में बदलाव करता रहा है। इसकी कोशिश रहती है कि सिलेबस ऐसा हो जो स्टूडेंट्स को भरपूर फायदा पहुंचाए, प्रासंगिक होने के अलावा कुछ नया सीखने के लिए प्रोत्साहित करे। हालांकि कुछ शिक्षाविदों और इतिहासकारों का मानना है कि इन बदलावों से इतिहास की मौलिकता से छेड़छाड़ की जा रही है, ऐतिहासिक तथ्यों को मिटाने की चेष्टा की जा रही है।
पाठ्यक्रमों का चयन राजनीतिक आग्रह-दुराग्रह से दूर रहना चाहिए। शिक्षा व्यवस्था से जुड़ी समस्याएं चाहे जितनी जटिल हों, उनका पुख्ता समाधान शिक्षक, अभिभावक और सरकार के आपसी विश्वास और दीर्घकालीन प्रयत्नों से ही संभव है।
इस दौर में हमें दुनिया के साथ कदम मिलाकर चलना होगा। इसके लिए शिक्षा के मूलभूत संसाधन, पाठ्य-पुस्तकों की विषय-वस्तु, शिक्षण-पद्धति आदि में संशोधन करना प्रासंगिक है। फिजिक्स, केमिस्ट्री, बायोलॉजी, कंप्यूटर, इंफोर्मेशन टेक्नोलॉजी, वाणिज्य, अर्थशास्त्र, भूगोल एवं पर्यावरण जैसे विषय आधुनिक न किए जाने की स्थिति में अप्रासंगिक हो जाते हैं। इन्हें आधुनिक बनाए रखने के लिए इनसे संबंधित नवीन शोध एवं अनुसंधान के निष्कर्षों को पाठ्य-पुस्तकों में सम्मिलित करना जरूरी है। इतिहास को पराजय नहीं बल्कि जय एवं संघर्ष की गाथा के रूप में पढ़ाए जाने पर विद्यार्थियों में आत्मगौरव का संचार होगा। शिक्षक का कर्तव्य है कि वह अपने विद्यार्थियों को रटंत पद्धति से हटाकर प्रॉब्लम सॉल्विंग व क्रिटिकल थिंकिंग के संदर्भ में शिक्षित करें।

Hindi News / Opinion / पाठ्यक्रम में विचारधारा नहीं, विवेचन की जरूरत है

ट्रेंडिंग वीडियो