चंद पैसों के लालच में लिप्त मिलावटखोर यह भूल जाते हैं कि उनके इस अपराध का सबसे बड़ा असर गरीब और कमजोर तबकों पर पड़ता है जिनके पास बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं लेने की सामर्थ्य नहीं होती। मिलावटी खाद्य पदार्थों और नकली दवाओं का सेवन अनजाने में उन्हें गंभीर बीमारियों की ओर धकेल देता है। छोटे बच्चे, गर्भवती महिलाएं, बुजुर्ग और बीमार व्यक्ति इस खतरे के सबसे आसान शिकार बनते हैं।
दूध में डिटर्जेंट या यूरिया , मसालों में रंग और पाउडर, तेल में हानिकारक रसायन या बुखार की दवा के नाम पर केवल चीनी की गोली देना यह सब केवल उपभोक्ता को ठगने की बात नहीं है यह जानबूझकर जिंदगियों से खिलवाड़ है। विशेषकर नकली दवाएं तब और खतरनाक हो जाती हैं जब कोई मरीज उन्हें आखिरी उम्मीद के तौर पर लेता है। दवा असर न करने पर बीमारी और बढ़ जाती है और कई बार मरीज की जान भी चली जाती है।
यह केवल एक व्यापारिक अपराध नहीं बल्कि सामाजिक नैतिकता का पतन है। ऐसे लोग कानून के साथ-साथ मानवता के विरुद्ध भी अपराध कर रहे हैं। सरकार इस चुनौती को गंभीरता से ले रही है लेकिन केवल छापे और जुर्माने पर्याप्त नहीं हैं। ऐसे अपराधों के लिए कड़े कानून बनाए जाएं ताकि दोषियों को आसानी से जमानत न मिल सके और उन्हें कड़ी सजा दी जा सके।
सरकार को इस लड़ाई में जनसहयोग की आवश्यकता है। आम जनता को जागरूक करना होगा कि वे नकली दवाओं और मिलावटी चीजों की पहचान कैसे करें कहां शिकायत दर्ज कराएं और अपने अधिकारों के लिए आवाज कैसे उठाएं। ईमानदार व्यापारियों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ताकि एक स्वच्छ और भरोसेमंद व्यापारिक वातावरण बन सकें।
यह एक लंबी लड़ाई है जिसमें सरकार, मीडिया, समाज और आम नागरिकों को एकजुट होकर काम करना होगा। मिलावट और नकली दवाओं का कारोबार न केवल जीवन के अधिकार का हनन है बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के स्वास्थ्य और विश्वास पर सीधा हमला है। इसे रोकना हम सबकी साझा जिम्मेदारी है।