रिन्यूऐबल एनर्जी : भविष्य का नया ऊर्जा स्रोत होगी ग्रीन हाइड्रोजन
प्रो. मिलिंद कुमार शर्मा, एमबीएम विश्वविद्यालय, जोधपुर


भारत में ग्रीन हाइड्रोजन का भविष्य ऊर्जा के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर सिद्ध हो सकता है। देश का परंपरागत ऊर्जा स्त्रोतों जैसे कोयला और पेट्रोलियम पर निर्भरता पर्यावरण को गंभीर क्षति पहुंचा रही है। विशेषकर वर्तमान आर्थिक परिदृश्य में जब भारतीय मुद्रा डॉलर के अपेक्षा अन्तराष्ट्रीय बाज़ार में कमजोर पड़ रही है। ऐसे में ग्रीन हाइड्रोजन, जो कि पूरी तरह से स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा का स्रोत है, न मात्र पर्यावरण को स्वच्छ बनाए रखने में सहायक है अपितु भारत के उर्जा आयात को कम कर ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर भी बना सकता है। ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन में मात्र जल का उपयोग होता है और इसे नवीकरणीय ऊर्जा, जैसे कि सौर और पवन ऊर्जा के माध्यम से इलेक्ट्रोलिसिस प्रक्रिया द्वारा तैयार किया जाता है, जिससे किसी भी प्रकार का कार्बन उत्सर्जन नहीं होता है। यह अन्य ऊर्जा स्रोतों की अपेक्षा पर्यावरण के अधिक अनुकूल विकल्प है।
भारत सरकार ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चला रही है, जिनमें से सबसे उल्लेखनीय है राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन। इस मिशन का उद्देश्य वर्ष 2030 तक भारत को विश्व का सबसे बड़ा ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादक बनाना है। सरकार ने इस मिशन के अंतर्गत हाइड्रोजन के उत्पादन और इसके उपयोग को बढ़ावा देने के लिए 19,700 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं। इस मिशन का उद्देश्य वर्ष 2030 तक प्रतिवर्ष पांच मिलियन टन ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करना है। भारत में विशाल मात्रा में सौर और पवन ऊर्जा की उपलब्धता इसे संभव बनाती है। ग्रीन हाइड्रोजन न मात्र उद्योगों में अपितु परिवहन और ऊर्जा उत्पादन में भी प्रयोग किया जा सकता है।
चूंकि ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन में कार्बन उत्सर्जन नहीं होता, अतः यह पर्यावरण के लिए अत्यंत लाभकारी है। ग्रीन हाइड्रोजन के माध्यम से भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए आत्मनिर्भर बन सकता है और विदेशी ऊर्जा आयात पर निर्भरता घटा सकता है। यह भारी उद्योगों जैसे इस्पात, रसायन, और परिवहन क्षेत्रों के लिए यह एक श्रेयस्कर विकल्प है। इसके अतिरिक्त ग्रीन हाइड्रोजन क्षेत्र में शोध, उत्पादन, और विपणन से नए रोजगार के अवसर दिन प्रतिदिन बढ़ने की सम्भावना है।
यद्यपि ग्रीन हाइड्रोजन के भविष्य कि भारत में प्रचुर संभावनाएं हैं, साथ ही इसके समक्ष कुछ चुनौतियां भी हैं। ग्रीन हाइड्रोजन के लिए अत्याधुनिक तकनीक और भारी निवेश की आवश्यकता है, जो इसकी उत्पादन लागत बढ़ाती है। साथ ही इसके भंडारण और परिवहन में भी तकनीकी समस्याएं हैं। इसे बड़े स्तर पर अपनाने के लिए सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में जागरूकता और निवेश आवश्यक है।
भारत सरकार इन चुनौतियों का सामना करने के लिए अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहित कर रही है, जिससे ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन की लागत में कमी लाई जा सके और इसके भंडारण और परिवहन के लिए उचित नई तकनीकों का विकास किया जा सके।
यह उत्साहवर्धक है कि भारत ग्रीन हाइड्रोजन के उन्नयन के लिए देश-विदेश में कई समझौते कर रहा है, जिससे भविष्य में इसे सस्ती, सुलभ और कार्बन-मुक्त ऊर्जा के विकल्प के रूप में विकसित किया जा सके। ऊर्जा सुरक्षा और स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए भारत नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं में अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर बल दे रहा है। इस प्रयास में विदेशो से समझौते और निवेश एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
भारत ने सऊदी अरब के साथ हाइड्रोजन उत्पादन बढ़ाने के लिए एक महत्त्वपूर्ण समझौता किया है। सऊदी अरब के पास प्राकृतिक गैस और अन्य आवश्यक संसाधन हैं, जो भारत में ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन को सस्ता और कुशल बनाने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं।
भारत और जर्मनी ने ग्रीन हाइड्रोजन पर सहयोग बढ़ाने के लिए भी एक समझौता किया है, जिसमें परस्पर तकनीकी सहायता और अनुसंधान का प्रावधान है। जर्मनी के पास हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी में व्यापक अनुभव है, जो भारत के ग्रीन हाइड्रोजन मिशन को बढ़ावा देने में सहायक हो सकता है।
भारत ने ऑस्ट्रेलिया के साथ भी साझेदारी की है, जिसमें ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन और आपूर्ति को सुगम बनाने के लिए तकनीकी और आर्थिक सहयोग सम्मिलित है। ऑस्ट्रेलिया में भी सौर और पवन ऊर्जा की भरपूर उपलब्धता है, जो हाइड्रोजन के क्षेत्र में सहयोग के लिए अनुकूल है। इनके अतिरिक्त जापान और भारत के मध्य एक दीर्घकालिक हाइड्रोजन सहयोग समझौता हुआ है। जापान अपने हाइड्रोजन उत्पादन और उपयोग में अग्रणी देशों में से एक है, जो भारत को भी इसी दिशा में आगे बढ़ाने में सहायता कर सकता है। साथ ही ग्रीन हाइड्रोजन के क्षेत्र में निवेश आकर्षित करने के लिए भारत ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई कदम उठाए हैं। भारतीय उद्योग जैसे अडानी समूह और रिलायंस इंडस्ट्रीज़ ने ग्रीन हाइड्रोजन के क्षेत्र में अरबों डॉलर का निवेश करने की घोषणा की है। इनका उद्देश्य हाइड्रोजन उत्पादन, वितरण, और भंडारण को प्रोत्साहित करना है। इससे भारत में ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त हो सकेगी। भारत और फ्रांस के नेतृत्व में इंटरनेशनल सोलर अलायंस, हाइड्रोजन पर भी कार्य कर रहा है। इसके माध्यम से कई देशों ने हाइड्रोजन परियोजनाओं के लिए धन जुटाने की योजना बनाई है। भारत में ग्रीन हाइड्रोजन परियोजनाओं को बढ़ावा देने के लिए विश्व बैंक और एशियन डेवलपमेंट बैंक ने वित्तीय सहायता का आश्वासन दिया है। इन संगठनों के सहयोग से भारत में ग्रीन हाइड्रोजन परियोजनाओं के लिए धन जुटाने में सहायता मिल रही है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि ग्रीन हाइड्रोजन का भविष्य भारत के ऊर्जा क्षेत्र में एक नई क्रांति ला सकता है। यह न केवल एक स्वच्छ ऊर्जा का स्रोत है बल्कि भारत की ऊर्जा आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को भी पूरा कर सकता है। इसके विकास के लिए उद्योगों, वैज्ञानिकों, और सरकार को मिलकर समुचित प्रयास करने होंगे। ग्रीन हाइड्रोजन का भविष्य न मात्र भारत को ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाएगा अपितु वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखला में भी योगदान देगा। साथ ही ग्रीन हाइड्रोजन पर बल देकर, भारत एक स्वच्छ और टिकाऊ भविष्य की ओर तेज़ी से कदम बढ़ा सकता है।
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