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वित्तीय सहायता देने के फैसलों की आइएमएफ समीक्षा भी करे

मिलिंद कुमार शर्मा, प्रोफेसर, एमबीएम यूनिवर्सिटी, जोधपुर

जयपुरMay 13, 2025 / 01:59 pm

Neeru Yadav

जहां एक और भारत आतंकवाद के विरुद्ध अपने पड़ोसी राष्ट्र पाकिस्तान से लडाई लड़ रहा है वहीं दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष(आइएमएफ) के कार्यकारी प्रबंधन ने गत सप्ताह अपनी समीक्षा बैठक में पाकिस्तान के लिए अपनी कुल 7 अरब डॉलर विस्तारित कोष सुविधा ‘एक्सटेंडेड फंड फैसिलिटी’ में से एक अरब डॉलर की तत्काल राशि स्वीकृत करने की अनुमति प्रदान की है। साथ ही इसी बैठक में पाकिस्तान के लिए 1.3 अरब डॉलर के नए ‘रेसिलिएंस एंड सस्टेनेबिलिटी फैसिलिटी’ ऋण की भी स्वीकृति हुई। इस पूरे प्रकरण में भारत ने इस निर्णय के विरुद्ध एक सक्रिय सदस्य देश के रूप में कड़ी आपत्ति जताई है। आइएमएफ के कार्यकारी प्रबंधन बोर्ड में 25 निदेशक होते हैं, जो सदस्य देशों या देशों के समूहों का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह ऋण स्वीकृति सहित दैनिक परिचालन प्रकरण देखकर समीक्षा करता है। संयुक्त राष्ट्र के विपरीत, जहां प्रत्येक देश के पास एक वोट होता है, अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की मतदान शक्ति प्रत्येक सदस्य के आर्थिक आकार को दर्शाती है। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमरीका जैसे देशों के पास असमान रूप से उच्च मतदान हिस्सेदारी है।
पाकिस्तान द्वारा इस सुविधा कोष का भारत के विरुद्ध ‘राज्य-प्रायोजित सीमा-पार आतंकवाद’ के लिए दुरुपयोग कर आइएमएफ के कार्यक्रम की प्रभावशीलता पर चिंता जताई। भारत का तर्क है कि पाकिस्तान पिछले कई दशकों से अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष पर निर्भर रहा है, परन्तु आर्थिक सुधारों को अपने यहां क्रियान्वित करने में अनवरत विफल रहा है, इसलिए इस बात की प्रबल संभावना है कि इस दिए गए अनुदान का पुन: आतंकवाद को बढ़ावा देने में दुरुपयोग हो सकता है। दूसरी ओर पाकिस्तान और उसके कुछ हितैषी राष्ट्र इसे आवश्यक राहत बताते हुए इस आर्थिक सहायता का समर्थन करते है। इस परिप्रेक्ष्य में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की नीतियों, पाकिस्तान की आर्थिक अराजक स्थिति, भारत की सुरक्षा चिंताओं और क्षेत्रीय भू-राजनीति का विश्लेषण करना महत्त्वपूर्ण है। यहां यह रेखांकित करना उचित होगा कि वर्ष 1958 से अब तक पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष(आइएमएफ) द्वारा स्वीकृत यह 24वीं ऋण सहायता और 1.3 अरब डॉलर की रेसिलिएंस और सस्टेनेबिलिटी फैसिलिटी ऋण की 25वीं स्वीकृति है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) का मूल उद्देश्य वैश्विक मौद्रिक सहयोग और आर्थिक स्थिरता है, न कि किसी देश की आंतरिक राजनीतिक या सुरक्षा नीति पर हस्तक्षेप करना। इसलिए इसकी ऋण-संरचनाएं अक्सर पूर्णत: आर्थिक और वित्तीय शर्तों पर आधारित होती हैं, यथा कराधान सुधार व सरलीकरण, ऊर्जा क्षेत्र में पुनर्गठन, सरकारी व्यय में कटौती आदि। ऐसी मान्यता है कि हिंसक गतिविधियों या आतंकवाद जैसे विषयों को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की औपचारिक शर्तों में सम्मिलित नहीं किया जाता। वर्तमान घटनाक्रम में भी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने स्पष्ट किया कि उसकी प्रतिक्रिया ‘प्रक्रियात्मक व तकनीकी औपचारिकताओ’ के दायरे में सीमित है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष बोर्ड में सदस्य देशों को प्रस्ताव के विरुद्ध ‘ना’ वोट देने की अनुमति नहीं है, ऐसे में भारत ने मतदान से दूर रहते हुए कड़ी आपत्ति दर्ज कराई है। भारत ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष को नैतिक मूल्यों का ध्यान रखने का सुझाव दिया, किन्तु दुर्भाग्यवश आइएमएफ ने अपनी वार्ता में मुख्य रूप से वित्तीय स्थिरता और आर्थिक सुधारों पर बल देते हुए पाकिस्तान कार्यक्रम का पुनरीक्षण जारी रखने का निश्चय किया। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पिछले कई दशकों से निरंतर संकटग्रस्त रही है। वर्तमान में राजनीतिक अराजकता के चलते व अनवरत मौद्रिक अवमूल्यन और महंगाई बढऩे से वहां आर्थिक तंगी और तेज हो गई है।
भारत का तर्क है कि पाकिस्तान की आर्थिक सहायता सीधे उसकी सुरक्षा चिंताओं से जुड़ी है। यह जग जाहिर कि पाकिस्तान ‘सीमा-पार आतंकवाद’ को प्रश्रय देता रहा है और इस बात की प्रबल सम्भावना है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की इस सहायता राशि का भी आतंकवादी गतिविधियों को समर्थन देने में दुरुपयोग हो सकता है, जो वैश्विक मूल्यों को कमजोर करने के साथ साथ अंतरराष्ट्रीय संस्थानों की प्रतिष्ठा पर भी प्रश्न उठाते हैं। इसके अतिरिक्त यह भी उल्लेखनीय है कि पिछले कई अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष कार्यक्रमों के अंतर्गत की गई वित्तीय सहायता के बाद भी पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था अनवरत अस्थिर बनी हुई है, जिससे संदेह है कि नवीन ऋण भी अप्रभावी रहेगा। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने पाकिस्तान को राहत देते समय मुख्यत: आर्थिक आधारों को ध्यान में रखा है, किन्तु उसे उसी गंभीरता से वित्तीय सहायता उपरांत सुधारों के क्रियान्वयन एवं उसके लिए आवश्यक अनुपालना पर भी ध्यान देना होगा।

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