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फास्ट फैशन की असली कीमत चुका रही है हमारी धरती

डॉ. विवेक एस. अग्रवाल

जयपुरJul 19, 2025 / 07:36 pm

Neeru Yadav

आखिरकार फास्ट फैशन से हो रहे पर्यावरण पर नुकसान की समझ दुनिया में आने लगी है। इस दिशा में पहल करते हुए सबसे पहले फ्रांस ने फास्ट फैशन पर प्रतिबंध संबंधी कानून लागू किया है। यह न सिर्फ समूचे विश्व के लिए मिसाल होगा, बल्कि कपड़ों से हो रहे पर्यावरण पर घातक प्रभाव को रोकने में मददगार भी होगा। पर्यावरण के प्रति सरोकार में पहले भी फ्रांस ने अनुकरणीय कदम उठाए हैं जैसे खाद्य बर्बादी को रोकने के लिए कानून बनाने वाला पहला देश भी वही है। वैश्विक रूप से प्रदूषण के अहम कारक प्लास्टिक से हो रही जंग के चलते फास्ट फैशन ने अपना विकराल स्वरूप ले लिया। प्लास्टिक के पुन:चक्रण की कवायद तो हर ओर है, इसको बढ़ाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लक्ष्य भी निर्धारित किए जा रहे हैं। लेकिन यदि वस्त्र की बात की जाए तो कुल मिलाकर एक प्रतिशत से भी कम कपड़ा पुन:चक्रित हो रहा है। विडम्बना यह है कि हर वय का व्यक्ति आधुनिकता की इस दौड़ में कपड़ों से हो रहे पर्यावरणीय नुकसान के प्रति अब भी सावचेत नहीं है, क्योंकि उसे तो कचरे के जैसे देखा ही नहीं जाता। आमजन को तो संभवतया इस बात का अहसास भी नहीं है कि एक सूती (कॉटन) शर्ट के बनने में लगभग 2700 लीटर पानी का उपयोग होता है। कॉटन के अतिरिक्त अन्य सामग्री से बनने वाले कपड़े में तो पानी का उपयोग अपेक्षाकृत तौर पर कई गुना तक होता है। इसी प्रकार सबसे ज्यादा पहनी जाने वाली जींस को बनाने में साढ़े सात हजार लीटर से अधिक पानी खर्च होता है।
एक अध्ययन के अनुसार सन 2000 से 2015 के मध्य जहां कपड़ो का विक्रय दोगुने से भी अधिक हो गया, वहीं इसका औसत उपयोग लगभग 36त्न तक गिर गया, यानी खरीदे गए कपड़े की कूड़े में आने की गति बढ़ गई। तथ्य यह भी है की कपड़ों की प्रति व्यक्ति खरीद औसतन 60त्न से भी अधिक बढ़ गई है। कारण सुलभता, समय के साथ बदलाव की चाह और सस्ता होना है। वर्तमान युग में वस्त्र निर्माण में लिए जा रहे मटेरियल की गुणवत्ता तो विचारणीय बिंदु रहा ही नहीं।
बीते कुछ वर्षों में फास्ट फैशन की अंधाधुंध दौड़ के चलते हर ओर कपड़ों से उत्पन्न कचरे की भरमार हो रही है। इसकी विभीषिका का अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि नित नए बदलते फैशन की चलते विश्व में हर सेकंड एक ट्रक भार जितना कपड़ा अर्थात् वस्त्रनिर्माण की लगभग 90 प्रतिशत सामग्री कचरागाह में पहुंच रही है। गणना के अनुसार लगभग साढ़े नौ करोड़ टन कचरा मात्र कपड़ों के फैशन उद्योग के कारण है, जो इसे तेल खनन के बाद सर्वाधिक प्रदूषण पैदा करने वाले उद्योग की श्रेणी में ला खड़ा करता है। प्रदूषण का एक बड़ा पैमाना वातावरण में कार्बन उत्सर्जन रहता है, उसमें भी फैशन का योगदान 10 प्रतिशत से अधिक है। इसी क्रम में जीवन के लिए वायु के बाद सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पानी की बर्बादी में भी वस्त्र निर्माण उद्योग कुल बर्बादी के पांचवें हिस्से के लिए जिम्मेदार है। दुनिया की एक बड़ी चिंता महासागरों में बढ़ते माइक्रोप्लास्टिक को लेकर भी है। इस चिंता के पीछे समुद्री जीवों का जीवन प्रभावित होने के साथ समुद्री भोजन पर निर्भर बड़ी आबादी में माइक्रोप्लास्टिक के अप्रत्यक्ष रूप से पहुंचने को लेकर है। इसमें भी 35-40त्न का बड़ा हिस्सा वस्त्रों के बिना सोचे समझे क्रय और उपयोग के कारण है। बदलते फैशन में जहां रासायनिक रंगों आदि का बहुतायत से उपयोग होता है वहीं, पशुधन भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। अनेकानेक अध्ययनों के अनुसार फास्ट फैशन उद्योग में कार्यरत श्रमिकों का जीवन भी चुनौतीपूर्ण होता है, कम लागत उत्पाद के निर्माण करने की कवायद में उन्हें कम पारिश्रमिक और खतरनाक वातावरण में कार्य करना होता है।
अपनी भयावहता और भविष्य की गंभीरता के बावजूद पूरी दुनिया में फास्ट फैशन उद्योग अनियंत्रित तौर पर निरंतर बढ़ता चला जा रहा है। उपभोक्ताओं का प्रतिसाद मिलने और कानूनी नियंत्रण न होने से नित नए ब्रांड और उसके असीमित आउटलेट शहरी विकास के प्रतिबिम्ब बन गए हैं। शहरी आबादी की देखादेख और उनके जैसा दिखने की होड़ में ग्रामीण आबादी भी त्वरित फैशन की चपेट में आए बिना नहीं रह पाई है। इस पृष्ठभूमि में फ्रांस की पहल निश्चित रूप से स्वागतयोग्य है। इस नए कानून के तहत पर्यावरण के मानदंड के अनुरूप उत्पादन नहीं करने वाले ब्रांड्स के विज्ञापनों पर पूर्ण पाबंदी लगाई गई है। एक महत्त्वपूर्ण प्रावधान के तहत हर कपड़े पर इको स्कोर लेबल लगाना कानून रूप से जरूरी होगा ताकि खरीदनेवाले को इस वस्त्र के पर्यावरणीय प्रभाव की जानकारी हो सके और उचित सामग्री का क्रय कर सके। विभिन्न शोधों के अनुसार जानकारी होने पर, 70त्न से अधिक उपभोक्ता इको फ्रेंडली उत्पाद के लिए अधिक लागत देने की मंशा भी रखते है। कानून में पारदर्शिता को महत्त्व देते हुए वस्त्रों के निर्माण, परिवहन, विक्रय , विक्रय पश्चात पुन:चक्रण या उपयोग आदि स्तरों पर कार्बन उत्सर्जन की गणना को जाहिर करने के साथ भविष्य में उत्सर्जन को नेट जीरो लक्ष्य हासिल करने की रणनीति तय करने को आवश्यक किया है। कानून की अवहेलना करने वाली कंपनियों को इस वर्ष से प्रति आइटम 5 यूरो का दंड देना होगा जो पांच वर्ष बाद 10 यूरो प्रति आइटम हो जाएगा। आशा है, नए कानून के चलते कार्बन उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी आएगी और कम से कम यूरोपियन यूनियन द्वारा शीघ्र अनुसरण भी किया जाएगा। सांस्कृतिक तौर पर भारत के मूल में दिखावटीपन नहीं रहा, किंतु वैश्वीकरण के चलते सभी उस बहाव में बहने लग गए। यह समस्या यूरोप या विकसित राष्ट्रों तक सीमित न रहकर सर्वव्यापी हो गई है। इससे पहले की विकरालता मानवता के लिए संकट बने, भारत सरकार को ‘मिशन लाइफ’ में वस्त्र संबंधी कूड़े पर नियंत्रण के लिए प्रभावी रणनीति के साथ तत्संबंधी कानून लागू करना समय की मांग है।

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