देखा जाए तो यह संघर्ष न केवल क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा है, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था, कूटनीति और भारत जैसे देशों के लिए गंभीर चुनौतियां प्रस्तुत करता है। इजरायल और ईरान के बीच तनाव की बात कोई नई नहीं। दोनों देश दशकों से छदम्म युद्ध, साइबर हमलों और प्रॉक्सी संगठनों के जरिए एक-दूसरे को चुनौती देते रहे हैं।
शुक्रवार को इजरायल के ‘ऑपरेशन राइजिंग लायन’ ने इस टकराव को नई और खतरनाक ऊंचाई दी, जब उसने तेहरान और नतांज के परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया। खास बात है कि यमन, लेबनान और सीरिया जैसे देशों में ईरान समर्थित मिलिशिया, हिजबुल्लाह और हूती जैसे आतंकी समूह युद्ध को और भड़का सकते हैं। इस संघर्ष का सबसे तात्कालिक विपरीत असर वैश्विक तेल बाजार पर पड़ा है। ईरान द्वारा होर्मूज की खाड़ी को बंद करने की आशंका ने तेल की कीमतों को आसमान छूने पर मजबूर कर दिया। भारत अपनी तेल जरूरतों का 85 फीसदी सऊदी अरब, इराक और यूएई से आयात करता है।
तेल की बढ़ती कीमतें भारत में महंगाई को बढ़ा सकती हैं, जिसका असर परिवहन, विनिर्माण और रोजमर्रा की वस्तुओं पर पड़ेगा। भारतीय रुपए पर भी दबाव बढ़ेगा। हवाई यात्रा पर असर भी गंभीर है। इजरायल और ईरान ने अपने हवाई क्षेत्र बंद कर दिए, जिसके कारण एयर इंडिया समेत कई एयरलाइंस की उड़ानें प्रभावित हुईं। जॉर्डन ने भी अपना हवाई क्षेत्र बंद किया, जिससे मध्य पूर्व से गुजरने वाले वैश्विक हवाई मार्ग बाधित हुए। यह भारत जैसे देशों के लिए चुनौती है, जहां मध्य पूर्व में लाखों प्रवासी काम करते हैं। इन प्रवासियों की सुरक्षा की चिंता भी बढ़ रही है। अमरीका और रूस का रुख इस युद्ध में निर्णायक होगा।
अमरीका ने भले ही इजरायल के हमलों में प्रत्यक्ष भागीदारी से इनकार किया हो, लेकिन उसका इजरायल को समर्थन जगजाहिर है। दूसरी ओर, रूस जो ईरान का सैन्य सहयोगी है, इस संघर्ष में ईरान का साथ दे सकता है। यह स्थिति रूस-यूक्रेन युद्ध के साथ मिलकर वैश्विक धु्रवीकरण को और गहरा सकती है। भारत जो इजरायल, ईरान और सऊदी अरब जैसे देशों के साथ संतुलित संबंध रखता है, उसे भी कूटनीतिक तटस्थता बनाए रखने की चुनौती होगी। भारत ने दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील भी की है। इस युद्ध की विभीषिका को कम करने के लिए वैश्विक समुदाय को तत्काल कूटनीतिक हस्तक्षेप करना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र और अन्य मंचों पर युद्धविराम की मांग को बल देना होगा।