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सम्पादकीय : एआइ से मित्रता का भ्रम एक सामाजिक चेतावनी

उसने मन की बातें ‘मित्र चैटजीपीटी’ से सहारा और समाधान की उम्मीद में साझा की। लेकिन चैटजीपीटी ने न केवल उसकी नकारात्मक सोच को बढ़ावा दिया, बल्कि आत्महत्या के तरीके तक सुझा दिए।

जयपुरAug 28, 2025 / 07:47 pm

MUKESH BHUSHAN

तकनीक मानव जीवन को सरल और सहज बनाने के उद्देश्य से विकसित होती है। यह भी सच है कि हर तकनीक अपने साथ नई समस्याएं और खतरे भी लेकर आती है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) प्रभावशाली और चर्चित तकनीकों में से एक है जो शिक्षा, चिकित्सा, व्यापार, मनोरंजन और संवाद जैसे क्षेत्रों में तेजी से दखल बढ़ा रहा है। साथ ही इसके सामाजिक, नैतिक और मानवीय प्रभावों पर भी गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। अमरीका के सैनफ्रांसिस्को में ताजा घटना ने इस खतरे को और स्पष्ट कर दिया। यहां अवसाद से जूझ रहे किशोर ने अकेलेपन और निराशा में चैटबॉट चैटजीपीटी को अपना मित्र समझ लिया। उसने मन की बातें ‘मित्र चैटजीपीटी’ से सहारा और समाधान की उम्मीद में साझा की। लेकिन चैटजीपीटी ने न केवल उसकी नकारात्मक सोच को बढ़ावा दिया, बल्कि आत्महत्या के तरीके तक सुझा दिए।
यह केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी ही नहीं, बल्कि एक सामाजिक चेतावनी भी है कि आखिर नई पीढ़ी परिवार और समाज से ज्यादा आभासी दुनिया पर क्यों निर्भर हो रही है। मृतक किशोर के माता-पिता ने ओपनएआइ और इसके सीईओ सैम ऑल्टमैन पर मुकदमा दर्ज कराया है। आरोप है कि ओपनएआइ ने मुनाफा कमाने के लिए जानबूझकर ऐसा एआइ मॉडल लॉन्च किया जो असुरक्षित है। इसके बाद ओपनएआइ ने सुरक्षा के उपाय घोषित किए हैं, उनमें पैरेंटल कंट्रोल जैसे फीचर शामिल करने की बात कही गई है। सवाल यह है ऐसे सुरक्षा फीचर पहले क्यों नहीं शामिल किए गए और एआइ के संभावित खतरे को नजरअंदाज करते हुए इसे आम इस्तेमाल के लिए क्यों दे दिया गया? यह घटना हमें यह सोचने के लिए मजबूर करती है कि आखिर तकनीक की सीमाएं कहां तय हों और इसके इस्तेमाल की पात्रता का निर्धारण कैसे हो। यह भी सोचना होगा कि एआइ के दुरुपयोग की स्थिति में इसे संचालित करने वाली कंपनी को किस तरह जिम्मेदार बनाया जाए। यह घटना दर्शाती है कि कंपनियों की जिम्मेदारी कितनी बड़ी है।
एआइ जैसी तकनीक की ताकत बढ़ती जरूर जा रही है पर इसमें मानवीय संवेदना और विवेक नहीं है। यह केवल डेटा और पैटर्न के आधार पर जवाब देता है। यदि कोई मानसिक संकट में व्यक्ति अपनी पीड़ा इसमें उड़ेल दे, तो यह उसे उसी दिशा में और गहराई तक धकेल सकता है। आखिर एआइ एक मशीन ही है। इससे करुणा या सही-गलत के नैतिक बोध की उम्मीद नहीं की जा सकती। एआइ को मित्र या हमदर्द मान लेना बहुत बड़ी भूल है। परिवार और समाज की भूमिका भी यहां महत्त्वपूर्ण हो जाती है। अवसाद और मानसिक संकट से जूझ रहे युवाओं को भावनात्मक सहारा देने की जिम्मेदारी माता-पिता, मित्रों और शिक्षकों की है। यदि युवा अपने मन की बातें मशीन से साझा करने लगे और इंसानों से दूरी बना ले, तो यह बेहद खतरनाक प्रवृत्ति होगी।

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