CG News: छत्तीसगढ़ में भोजली देकर दोस्ती अटूट रखने की परंपरा, जानें क्या है इसके पीछे की पूरी कहानी
CG News: भोजली रविवार को बड़े धूमधाम के साथ मनाया गया। शाम को भीमा तालाब व नहर में भोजली विसर्जन किया गया। तालाबों के साथ नदियों में भी भोजली विसर्जित की गई।
CG News: छत्तीसगढ़ की संस्कृति में भोजली एक महत्वपूर्ण लोक धार्मिक परंपरा है, जो विशेष रूप से भादो माह में मनाई जाती है। यह पूजा मुख्य रूप से कुंवारी लड़कियों और महिलाओं द्वारा की जाती है, जिसमें वे भोजली देवी के रूप में हरियाली (अंकुरित अनाज) की पूजा करती हैं। भोजली छत्तीसगढ़ की ग्रामीण संस्कृति, कृषि परंपरा और स्त्री शक्ति की आस्था का प्रतीक है।
छत्तीसगढ़ की संस्कृति से जुड़े भोजली महोत्सव के अवसर पर रविवार को ग्राम ढारा सलौनी में प्रधान स्तरीय भव्य भोजली उत्सव का आयोजन संपन्न हुआ। भोजली केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि बेटियों की श्रद्धा, किसानों की मेहनत और गांव की एकता का प्रतीक है। जब बेटियाँ भोजली बोती हैं, तो वे केवल बीज नहीं बोतीं, वे संस्कृति, आस्था और हरियाली का भविष्य बोती हैं। हमें इन परंपराओं को नई पीढ़ियों तक सौंपना होगा।
भोजली रविवार को बड़े धूमधाम के साथ मनाया गया। शाम को भीमा तालाब व नहर में भोजली विसर्जन किया गया। तालाबों के साथ नदियों में भी भोजली विसर्जित की गई। विसर्जन के बाद बचाए गए पौधे बड़े-बुजुर्गों को भेंट कर आशीर्वाद लिया गया। इन्हें एक-दूसरे को देकर मितान बनाने की परंपरा का भी निर्वहन किया गया। एक दूसरे के कान में भोजली के पौधे लगाकर दोस्ती को अटूट बनाने की कसम भी ली गई। दोस्तों ने अपने मितान को भोजली भेंट कर अगले साल फिर इसी दिन मिलने का वादा लिया।
छत्तीसगढ़ में भोजली का महत्व फेंडशिप डे की तरह है, इसलिए सभी दोस्त अपने-अपने मितान से मिलने तालाब किनारे पहुंचे थे। शहर सहित आसपास के गांवों से बच्चे, महिलाएं व युवतियां अपने सिर पर भोजली लिए तालाब के घाट पर पहुंचे और पारंपरिक मंगलगीत के साथ भोजली को विदाई दी। भोजली विसर्जन के मौके पर भीमा तालाब में खासा माहौल रहा। इसके अलावा शहर के आसपास के गांवों में भी भोजली विसर्जित की गई। भोजली गंगा लहर तुरंगा की स्वरलहरियों से अंचल गुंजायमान रहा। गांवों में इस त्योहार को लेकर विशेष उत्साह देखने को मिला। बाजे-गाजे के साथ भोजली विसर्जित की गई।
क्या है भोजली
भोजली वास्तव में गेहूं का पौधा है, जिसे सावन मास के दूसरे पक्ष की पंचमी से नवमी के बीच किसी पात्र में बोया जाता है। इस पौधे को सूर्य से बचाकर दीपक की रोशनी में रखा जाता है। हल्दी-पानी से सींचकर भोजली के पौधे की देखरेख रक्षाबंधन के दिन तक की जाती है। राखी के दूसरे दिन भोजली का विसर्जन पारंपरिक उल्लास के साथ किया जाता है। भोजली को छत्तीसगढ़ की सुख-समृद्धि व हरियाली का प्रतीक माना जाता है।
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