शोधित पानी को और स्वच्छ बनाने के निर्देश
एनजीटी ने एसटीपी से शोधित पानी को और स्वच्छ बनाने के निर्देश दिए हैं। मौजूदा समय में एसटीपी से शोधित पानी में फीकल की मात्रा 230 मिलीग्राम प्रति लीटर के आसपास है। एनजीटी ने इसे और बेहतर करते हुए 100 से भी कम करने को कहा है। इसमें टीडीएस व बीओडी-सीओडी की मात्रा भी इतनी कम हो जाएगी, जितनी पेयजल की होती है।
फीकल की मात्रा 100 मिलीग्राम प्रति लीटर के आसपास होगी
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के सीईओ एनजी रवि कुमार ने एनजीटी के आदेश के क्रम में सीवर विभाग को यह तकनीक शीघ्र अपनाने के निर्देश दिए हैं। सीवर विभाग आईआईटी दिल्ली से इसकी डीपीआर बनवा रहा है। इस तकनीक के अंतर्गत एसटीपी पर एक अतिरिक्त फिल्टर लगाया जाएगा, जिससे पानी में फीकल की मात्रा 100 मिलीग्राम प्रति लीटर के आसपास हो जाएगी।
20 लाख रुपए प्रति एमएलडी लागत आने का अनुमान
प्राथमिक जानकारी के अनुसार, 20 लाख रुपए प्रति एमएलडी लागत आने का अनुमान है। तकनीकी अपग्रेडेशन के बाद एसटीपी ट्रेसरी ट्रीटमेंट प्लांट हो जाएंगे, यानी एसटीपी पर त्रिस्तरीय शोधन प्रणाली लागू हो जाएगी। इससे शोधित पानी का इस्तेमाल औद्योगिक उत्पादनों के लिए भी किया जा सकेगा। साथ ही जल प्रदूषण को रोकने में भी मदद मिलेगी। डीपीआर अगले सप्ताह मिल जाने की उम्मीद है। इसके आधार पर सीनियर अधिकारियों के निर्देशानुसार आगे की कार्रवाई की जाएगी। एसीईओ प्रेरणा सिंह ने बताया, “सभी एसटीपी को तकनीकी रूप से अपग्रेड करने की तैयारी है। आईआईटी दिल्ली से डीपीआर बनवाई जा रही है। प्राधिकरण की कोशिश है कि ट्रीटेड वाटर को स्वच्छ बनाया जा सके। इस पानी का इस्तेमाल औद्योगिक उत्पादनों के लिए भी किया जा सकेगा।”प्राधिकरण के आंकड़ों के मुताबिक, एसटीपी की क्षमता बादलपुर में 2 एमएलडी, कासना में 137 एमएलडी, ईकोटेक-2 में 15 एमएलडी, ईकोटेक-3 में 20 एमएलडी होगी।