यह भी पढ़ें:
Theft in Deputy collector house: डिप्टी कलेक्टर के शासकीय आवास में चोरों का धावा, ज्वेलरी-कैश समेत अन्य सामान ले उड़े भारत सरकार की बहुप्रचारित जनमन प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण), जिसे गरीबों के लिए पक्के मकान उपलब्ध कराने हेतु शुरू किया गया था। उस योजना के तहत यहां के निवासियों को कागजों पर तो लाभ उल्लेखनीय व सराहनी रूप से मिल रहा है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है। यहां योजनाओं का लाभ
हितग्राहियों को स्थानीय बुद्धिजीवियों के बंदर बाट के सहारे मिल रहा है।
विकास खंड छुरा में जमीनी हकीकत यह है कि इस योजना में भ्रष्टाचार व शोषण की परतें लगातार सामने आ रही है। ग्रामवासियों ने बताया कि आवास स्वीकृति की प्रक्रिया में ‘जिओ ट्रैकिंग’ के नाम पर प्रति लाभार्थी 200 से 300 रुपये लिए जा रहे हैं। यही नहीं, चाय-पानी, दौड़-भाग जैसे बहाने बनाकर 2 से 3 हजार रुपए तक की अवैध वसूली की जाती है। कई हितग्राहियों को यह भी नहीं बताया गया कि सरकार द्वारा कितना पैसा दिया गया है, कब-कब किस्तें आई हैं और कितना काम बाकी है। इसके लिए वे किसी बुद्धिजीवी ठेकेदार पर निर्भर हैं।
आवास मित्र खिलेश्वर साहू ने स्वयं स्वीकार किया है कि उन्होंने जियो ट्रैकिंग के नाम पर पैसे लिए और अपने पेट्रोल खर्च के लिए भी राशि लिए हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी माना कि उनकी नियुक्ति से पहले ही वे यह कार्य कर रहे थे। एक बार पंचायत स्तर पर शिकायत हुई तो उसे ग्रामवासियों की बैठक में समझौते से निपटा दिया गया। ऐसे समझौते और मौन प्रशासनिक रवैये से सवाल यह उठता है कि क्या अति पिछड़ी जनजातियों की योजनाओं में पारदर्शिता नाम की कोई चीज बची है, और यदि नहीं, तो इस लूट व शोषण की जिम्मेदारी कौन लेगा।
ठेकेदार बना रहे मकान वैसे तो हितग्राही द्वारा बनाए जा रहे मकान में सरकारी इंजीनियर के मार्गदर्शन निर्देशन व हितग्राही के श्रम सहयोग से कार्य होना होता है, जिसमें मनरेगा के तहत भी उनको लाभ मिलता है। किन्हीं कारणों से यदि वे मकान बनाने में वह सक्षम नहीं है और ठेका दे दिए है, तो वह हितग्राही की अधिनस्थ कार्य करने को बाध्य होना चाहिए। मगर इनमें ठेकेदार-प्रशासन गठजोड़ की संज्ञा दी जा रही है, जिसका प्रशासनिक रूप से कोई निर्देश नहीं है। आरोपों की मानें तो कई ठेकेदार सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से हितग्राहियों के पैसों का बंदरबांट कर रहे हैं।
खिड़की-चौखट भी गायब योजना के तहत स्पष्ट दिशा-निर्देश है कि प्रत्येक आवास में कम से कम एक कमरा, एक हॉल, रसोई, रोशनदान व खिड़कियों की सुविधा होनी चाहिए। लेकिन धरमपुर में जिन मकानों का ठेकेदार द्वारा निर्माण हुआ है, उनमें से कई में केवल दो कमरों का ढांचा खड़ा कर दिया गया है, तो कहीं खिड़की नहीं है तो कही चौखट नहीं है ऐसे अधूरे ढांचों को लाभार्थियों द्वारा सरकारी मकान मान लेना इस बात का संकेत है कि उन्हें योजना की जानकारी न के बराबर है।
इस संबंध में यदि कोई भी शिकायत लिखित में आएगी या फिर समाचार पत्र के माध्यम से उन्हें जानकारी मिलती है, तो वे इसके लिए जांच टीम गठित कर जांच कराएंगे। गड़बड़ी मिली तो कार्रवाई के लिए जिला स्तर पर प्रेषित किया जाएगा।
सतीश चन्द्रवसी, जपं, मुख्य कार्यपालन अधिकारी