यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि यह लड़ाकू विमान लगभग 40 दिनों तक भारत में खड़ा रहा। यहां तक कि केरल पर्यटन विभाग को भी इसको लेकर तंज कसना पड़ा था। पर्यटन कार्यालय के एक्स अकाउंट ने मजाक में कहा कि केरल, एक ऐसी जगह जहां से आप कभी जाना नहीं चाहेंगे। हालांकि, इसपर नई दिल्ली स्थित ब्रिटेन के उच्चायोग और भारत के रक्षा मंत्रालय ने कोई टिप्पणी नहीं की।
कई तरह के कयास लगाए गए
दूसरी तरफ, लंबे समय तक केरल में लड़ाकू विमान के खड़े होने से कई तरह के कयास लगाए गए। कुछ जानकारों को जासूसी का भी संदेह हुआ। ऐसा इसलिए क्योंकि केरल में बहुत साल पहले सरकार को बर्खास्त कराने के लिए अमेरिका और ब्रिटेन ने बड़ी साजिश रची थी।
1957 में रची गई थी बड़ी साजिश
बात 1957 की है, जब केरल में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) ने भारी बहुमत से जीतकर सरकार बना ली थी। लोकतांत्रित देश में चुनाव के जरिए किसी कम्युनिस्ट पार्टी की प्रचंड जीत ने ब्रिटेन और अमेरिका को सदमे में डाल दिया था। अब अमेरिका इस जीत को कतई बर्दाश्त नहीं करने वाला था। कुछ इतिहासकारों की मानें तो 1957 में अमेरिका की केंद्रीय खुफिया एजेंसी (सीआईए) और ब्रिटेन की खुफिया एजेंसी (MI5) ने मिलकर बड़ी प्लानिंग की। हालांकि, स्पष्ट तौर पर हम इस बात की पुष्टि नहीं कर सकते, लेकिन कुछ किताबों में इस बात का जिक्र है।
अमेरिकी राष्ट्रपति ने सीआईए को दिया था आदेश
ऐसा कहा जाता है कि तब केंद्र में बैठी कांग्रेस सरकार के पास केरल में सीपीआई को सत्ता से हटाने की कोई इरादा नहीं था। इसके बाद भी, तब के अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वाइट डेविड ने अपनी खुफिया एजेंसी को केरल में कम्युनिस्ट शासन को समाप्त करने के लिए एक गुप्त अभियान शुरू करने का आदेश दिया। दूसरी तरफ, ब्रिटेन भी केरल में सीपीआई सरकार को हटाने के लिए बेचैन था। इसको लेकर, भारत सरकार को इस गुप्त अभियान का सपोर्ट करने के लिए जमकर फील्डिंग की गई। जिसपर बड़े लेवल से हरी झंडी भी मिल गई।
1957 और 1959 के बीच खूब मचाई गई उथल पुथल
बाद में खुफिया एजेंसियों ने 1957 और 1959 के बीच, कांग्रेस पार्टी के बड़े नेताओं और पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र के एस.के. पाटिल सहित कम्युनिस्ट विरोधी मजदूर नेताओं पर खूब पैसे खर्च किए। इसके जरिए केरल में तमाम मुद्दों को लेकर सीपीआई सरकार के खिलाफ अशांति पैदा कर दी। सीआईए ने पीछे से केरल में बड़े पैमाने पर राजनीतिक उथल-पुथल फैलाई।
1959 में सीपीआई सरकार बर्खास्त
जुलाई 1959 में, बढ़ती हिंसा और अव्यवस्था के बीच, भारत के राष्ट्रपति ने सीपीआई सरकार को बर्खास्त कर दिया गया। जब इस बात की सच्चाई सामने आई, तो देश में बवाल होने लगा। इसके बाद भारत में अमेरिकी दूतावास ने इस संबंध में सफाई भी दी। अमेरिकी दूतावास ने सीआईए के गुप्त अभियान को उचित ठहराया। इसके साथ कहा कि उनके दूतावास के पास इस बात के पुख्ता सबूत थे कि सोवियत संघ केरल में स्थानीय कम्युनिस्ट समूहों को धन मुहैया करा रहा था। बाद में कांग्रेस सरकार ने भी मामले को आगे नहीं बढ़ाया।