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सत्ता की किस्मत लिखने वाला सीमांचल समेटे हैं अपने आंचल में पलायन का दर्द

बिहार में सियासी दल चुनाव से पहले अपनी-अपनी चुनावी बिसात बिछाने में जुटे हुए हैं। पढ़ें शादाब अहमद की रिपोर्ट…

पटनाSep 06, 2025 / 02:09 pm

Ashib Khan

बिहार में साल के अंत तक विधानसभा चुनाव होंगे (Photo-IANS)

बिहार की सियासत में सीमांचल को हमेशा सत्ता की कुंजी कहा जाता रहा है। 24 विधानसभा सीटों वाला यह इलाका किसी भी दल की किस्मत लिख देता है, लेकिन इसी सीमांचल के ‘आंचल’ में पलायन का दर्द है। रोजगार के साधन नहीं होने की त्रासदी के चलते लाखों लोग दिल्ली, मुंबई, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और खाड़ी देशों तक जाते हैं। वहीं सियासी दल चुनाव से पहले अपनी-अपनी चुनावी बिसात बिछाने में जुटे हुए हैं। मुख्य मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के बीच है, लेकिन इस बार भी एआइएमआइएम की यहां मौजूदगी फिर नजर आ रही है। जबकि प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी भी इस इलाके में ‘उदय’ होने के प्रयास में जुटी हुई है।
दरअसल, सीमांचल अररिया, कटिहार, किशनगंज और पूर्णिया जिलों में कुछ अच्छे हाइवे, हर घर नल से जल की टंकियां, गांवों में डामर सडक़ों और नेपाल की अंतरराष्ट्रीय सीमा के नजदीक रेलवे लाइन बिछाने को देखकर विकास का एहसास जरूर होता है। इसके बावजूद सीमांचल में रोजगार का साधनों का अभाव है। यहां कृषि और स्थानीय बाजार ही रोजगार के मुख्य साधन है, जिसके चलते बड़ी सïंख्या में लोगों का पलायन होता रहा है। शिक्षा की कमी के चलते मजदूरी ही यहां के लोगों के लिए विकल्प बना हुआ है। अररिया से ठाकुरगंज हाइवे से करीब दो किलोमीटर अंदर बग्दहरा गांव में टेलरिंग करने वाले एहसान आलम ने बताया कि गांव में रोजगार की कमी है। परिवार के नौ लोगों में से तीन लोग बाहर खिलौने और कपड़े की फैक्ट्री में काम करने गए हुए हैं। वहीं शेरोलंघा गांव में बुजुर्ग किशनलाल पासवान ने कहा कि हमारे बच्चे कब तक दिल्ली-मुंबई में मज़दूरी करेंगे? कब तक सीमांचल के गांवों के आंगन खाली रहेंगे? सरकार को यहां फैक्ट्रियां लगवाकर रोजगार देना चाहिए।

मुस्लिम बाहुल्य, औवसी-पीके का दाव

सीमांचल की सियासत जातीय और धार्मिक समीकरणों पर आधारित है। जहां मुस्लिम आबादी की हिस्सेदारी काफी ज्यादा है। ऐसे में असद्दुीन औवेसी की एआइएमआइएम फिर से दाव खेलने जा रही है। प्रशांत किशोर भी नए खिलाड़ी बनकर उभर रहे हैं। जहां वो बड़ी संख्या में कांग्रेस व राजद से दूर हो चुके मुस्लिम नेताओं को अपने साथ कर रहे हैं, जबकि पूर्णिया के पूर्व भाजपा सांसद उदय सिंह को जन सुराज पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर अगड़ी जाति के वोटों में सेंध लगाने की रणनीति खेल रहे हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि औवेसी व पीके को मिलने वाले वोटों से किसका खेल बिगड़ेगा?

एनडीए बनाम महागठबंधन: परंपरागत लड़ाई, नई बेचैनी

महागठबंधन सीमांचल को अपनी मज़बूत ज़मीन मानता रहा है, लेकिन पिछले चुनाव में एआइएमआइएम ने पांच सीटें हासिल करने के साथ कई अन्य सीटों पर नुकसान पहुंचाया। इसके चलते महागठबंधन सिर्फ 7 सीटों पर सिमट गया था। वहीं एनडीए को 12 सीटें मिली थी। इस बार एनडीए की नजर पासमंदा (पिछड़े) मुस्लिम मतदाताओं पर भी है। इसके चलते महागठबंधन में नई बेचैनी देखने को मिल रही है।

7 लाख मतदाताओं के नाम हटे

चुनाव आयोग ने विशेष गहन पुनरीक्षण से चारों जिलों से करीब 7 लाख से अधिक मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से हटाए हैं। इसका असर भी चुनावों में देखने को मिल सकता है।

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