बुद्धि बाहर की चीजें सिखाती हैं
कोठारी ने कहा हम शरीर-मन-बुद्धि के स्तर पर जी रहे हैं। बुद्धि बाहर की चीजें सिखाती है, मन भी बाहरी विषयों की ओर दौड़ता है। प्रज्ञा भीतर से निकलती है। आज जीवन की विडम्बना यह कि सभी भूत एवं भविष्य का चिंतन करते हुए जी रहे हैं जबकि वर्तमान में जीना चाहिए। स्वयं के भीतर ध्यान के माध्यम से देखना चाहिए। बाहरी ज्ञान भी आवश्यक है, इसमें भी मन का योग हो तब सफलता प्राप्त होती है। एकाकार हो जाना ही भक्ति है।
महिलाएं अधिक भावुक होती हैं
उनका कहना था कि कोई चीज अच्छी या बुरी नहीं होती, परिस्थितियों के अनुसार उसका निर्णय होता है। भावनाएं तो पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों में भी होती हैं। महिलाएं अधिक भावुक होती हैं, पुरुष ज्यादा तार्किक होते हैं। सौम्य स्वभाव के कारण भारत में महिला को सौम्या कहा जाता है। संवेदनशीलता व्यक्तिगत है जो हमें परिवार और पूर्वजों से प्राप्त होती है। बुद्धि भावनाओं को नियंत्रित रखती है अन्यथा व्यक्ति गलत रास्ता पकड़ लेता है। अन्दर देखना और बाहर कर्म करना चाहिए ताकि मन नियंत्रण में रह सके। बुद्धि चालक है जो सही दिशा में चलाती है।
बुद्धिमत्ता के लिए ज्ञान आवश्यक
आचार्य युजी याहिरो ने कहा, बुद्धिमत्ता के लिए ज्ञान आवश्यक है। इसके लिए शब्द को नहीं बल्कि उसमें समाहित भाव को समझना जरूरी है। क्योंकि व्यक्ति बोलता है तो हर सुनने वाला उसे अपने-अपने हिसाब से समझता है। वर्तमान में जीने से ही जीवन के उद्देश्य की प्राप्ति होती है। उनका कहना था कि ध्यान में उतरने के लिए सकारात्मक सोच पहली आवश्यकता है। योग आसन-प्राणायाम-प्रत्याहार आदि के अभ्यास से सधता है जिसके लिए किसी डिग्री की जरूरत नहीं। शिविर में योग प्रशिक्षकों को डॉ. प्रदीप भाटी ने प्रेक्षाध्यान, श्वास प्रेक्षा, कायोत्सर्ग, लरेचा ध्यान, अन्तर्यात्रा आदि का प्रशिक्षण दिया। लिब्रा यूनिवर्सिटी की अध्यक्ष लोरेना फुमेनी को विश्वविद्यालय की ओर से कृतज्ञता-पत्र भेंट किया। विजिटिंग प्रोफेसर भाटी को भी सम्मानित किया गया। ओकी-दो योगा शिविर के समापन सत्र के बाद योग प्रशिक्षकों और शिविरार्थियों के साथ पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी।