जयललिता और टीएमसी नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप
तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री और एआईएडीएमके नेता जयललिता को 2014 में आय से अधिक संपत्ति के मामले में 21 दिन जेल में बिताने पड़े थे। इस मामले ने उनकी साफ-सुथरी छवि पर गहरा असर डाला। दूसरी ओर, पश्चिम बंगाल की टीएमसी सरकार के मंत्रियों पर भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के गंभीर आरोप लगे। सुब्रता मुखर्जी और फिरहाद हकीम को नारदा स्टिंग ऑपरेशन में रिश्वत लेने के आरोप में 11-11 दिन जेल में रहना पड़ा। ज्योति प्रिया मलिक को शिक्षक भर्ती घोटाले में 80 दिन और पार्थ चटर्जी को इसी मामले में 3 साल 27 दिन की सजा काटनी पड़ी। मदन मित्रा को सारदा चिट फंड घोटाले में ठगी के आरोप में 1 साल 9 महीने जेल में रहे। ये मामले पश्चिम बंगाल की राजनीति में भूचाल लाए और ममता बनर्जी की सरकार की छवि को नुकसान पहुंचाया।
आम आदमी पार्टी के नेताओं पर भी कसी शिकंजा
आम आदमी पार्टी (AAP) के चार मंत्रियों को भी जेल का सामना करना पड़ा। दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को शराब नीति घोटाले में भ्रष्टाचार के आरोप में 1 साल 5 महीने से अधिक समय जेल में बिताना पड़ा। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी इसी मामले में 6 महीने की जेल हुई। सत्येंद्र जैन पर मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप लगा और वे 2 साल 4 दिन से जेल में हैं। जितेंद्र तोमर को फर्जी डिग्री के मामले में 45 दिन की सजा काटनी पड़ी। AAP के नेताओं पर लगे इन आरोपों ने उनकी भ्रष्टाचार विरोधी छवि को धक्का पहुंचाया, जिसके चलते पार्टी को राजनीतिक नुकसान भी उठाना पड़ा।
डीएमके और एनसीपी के नेता भी लपेटे में
तमिलनाडु के डीएमके नेता वी. सेंथिल बालाजी को भ्रष्टाचार के आरोप में 1 साल 3 महीने जेल में रहना पड़ा। वे जेल में रहते हुए भी मंत्री पद पर बने रहे, जिस पर विपक्ष ने सवाल उठाए। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नवाब मलिक को मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में 1 साल 5 महीने की सजा काटनी पड़ी। इन मामलों में केंद्रीय जांच एजेंसियों, जैसे सीबीआई और ईडी, की सक्रियता ने विपक्षी दलों के नेताओं को निशाने पर लिया।
संविधान संशोधन बिल और राजनीतिक विवाद
गृह मंत्री अमित शाह द्वारा पेश किया गया संविधान संशोधन बिल गंभीर आपराधिक मामलों में 30 दिन से अधिक जेल में रहने वाले नेताओं को उनके पद से हटाने का प्रावधान करता है। सरकार का तर्क है कि यह बिल लोकतंत्र की छवि को साफ रखने और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए जरूरी है। हालांकि, विपक्षी नेता, जैसे असदुद्दीन ओवैसी और मनीष तिवारी, इसे ‘राजनीतिक हथियार’ बता रहे हैं। उनका आरोप है कि बीजेपी केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग कर विपक्षी नेताओं को निशाना बना रही है। अमित शाह ने पलटवार करते हुए कहा कि उन्होंने 2010 में नैतिकता के आधार पर खुद इस्तीफा दिया था, और यह बिल जवाबदेही के लिए है, न कि बदले की भावना से।
जेल से सरकार चलाने की परंपरा पर सवाल
पिछले कुछ वर्षों में कई नेता, जैसे अरविंद केजरीवाल और वी. सेंथिल बालाजी, जेल में रहते हुए भी अपने पद पर बने रहे, जिससे नैतिकता और सुशासन पर सवाल उठे। सुप्रीम कोर्ट ने भी कई मामलों में कहा है कि गंभीर अपराधों में आरोपी मंत्रियों को पद पर बने रहने का हक नहीं है। इस बिल के पास होने पर ऐसी परंपरा खत्म हो सकती है, लेकिन विपक्ष इसे लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला बता रहा है।
व्यक्तिगत छवि और पार्टी को भी नुकसान
इन गिरफ्तारियों ने न केवल नेताओं की व्यक्तिगत छवि को प्रभावित किया, बल्कि उनकी पार्टियों को भी राजनीतिक नुकसान पहुंचा। टीएमसी, AAP, डीएमके, और एनसीपी जैसी पार्टियों को अपने नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों का सामना करना पड़ा, जिससे उनकी साख पर सवाल उठे। खासकर, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल जैसे नेताओं की सादगी और भ्रष्टाचार विरोधी छवि पर इन घटनाओं ने गहरा असर डाला।