मिग-21 का योगदान - शामिल होने की तारीख: 1964 में मिग-21 को भारतीय वायुसेना में शामिल किया गया। यह भारत का पहला सुपरसोनिक जेट था, जो ध्वनि की गति (2,230 किमी/घंटा) से तेज उड़ सकता था।
- प्रमुख युद्ध: मिग-21 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध, 1999 के कारगिल युद्ध और 2019 की बालाकोट एयर स्ट्राइक में शामिल रहा।
- पैंथर्स स्क्वाड्रन: इसका आखिरी बेड़ा 23वें स्क्वाड्रन (पैंथर्स) का हिस्सा है।
- विशेषताएं: हल्का डिजाइन, चपलता और छोटा आकार इसे हवाई युद्ध में प्रभावी बनाता था। भारत रूस और चीन के बाद मिग-21 का तीसरा सबसे बड़ा ऑपरेटर रहा।
- स्वदेशी उत्पादन: शुरुआती मिग-21 रूस से आए, लेकिन बाद में भारत ने इसकी असेंबलिंग और तकनीक हासिल कर ली।
रिटायरमेंट का कारण - पुरानी तकनीक: मिग-21 आधुनिक युद्ध की जरूरतों को पूरा करने में सफल नहीं है।
- हादसों का रिकॉर्ड: रक्षा मंत्रालय के अनुसार, छह दशकों में 400 से अधिक मिग-21 क्रैश हुए, जिनमें 200 से ज्यादा पायलट शहीद हुए। इस कारण इसे ‘उड़ता ताबूत’ और ‘विडो मेकर’ कहा जाने लगा।
- तकनीकी समस्याएं: बार-बार होने वाली खराबियां और रखरखाव की चुनौतियों ने इसे जोखिम भरा बना दिया।
- आधुनिक विकल्प: वायुसेना अब रफाल, तेजस और सुखोई जैसे आधुनिक और सुरक्षित विमानों पर ध्यान केंद्रित कर रही है।
अपाचे हेलिकॉप्टर की पहली खेप भारत पहुंची भारतीय सेना को अमरीका से बहुप्रतीक्षित अपाचे लड़ाकू हेलिकॉप्टरों की पहली खेप प्राप्त हुई है। अमेरिकी कंपनी बोइंग ने 22 जुलाई 2025 को तीन अपाचे हेलिकॉप्टर भारतीय वायुसेना को सौंपे। ये हेलिकॉप्टर हिंडन एयरफोर्स स्टेशन पर उतरे और जांच के बाद जोधपुर बेस पर तैनात किए जाएंगे।
अपाचे हेलिकॉप्टर की विशेषताएं - ‘हवाई टैंक’ के नाम से मशहूर।
- अत्याधुनिक तकनीक से लैस ये हेलिकॉप्टर भारतीय सेना की युद्धक क्षमताओं को मजबूत करेंगे।
- ये हेलिकॉप्टर आधुनिक युद्ध की जरूरतों को पूरा करने में सक्षम हैं और सेना की परिचालन क्षमता को बढ़ाएंगे।
भारत की आत्मनिर्भरता और भविष्य मिग-21 की जगह तेजस जैसे स्वदेशी विमानों को शामिल करना और अपाचे जैसे अत्याधुनिक हेलिकॉप्टरों का बेड़े में शामिल होना भारतीय वायुसेना और सेना की ताकत को बढ़ाएगा। यह भारत की रक्षा आत्मनिर्भरता और आधुनिकीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।