लालू ने याचिका में की थी ये मांग
लालू यादव ने याचिका में सीबीआई द्वारा दर्ज FIR और चार्जशीट को रद्द करने की मांग की थी, यह तर्क देते हुए कि जांच एजेंसी ने उनके खिलाफ आवश्यक मंजूरी लिए बिना जांच शुरू की, जो भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17A का उल्लंघन है। हालांकि, सीबीआई ने दावा किया कि उन्होंने धारा 19 के तहत जरूरी अनुमति प्राप्त कर ली थी और यह मामला सरकारी पद के दुरुपयोग से जुड़ा है, जिसमें रेलवे में नौकरी के बदले जमीन ली गई थी।
लालू की तरफ से कपिल सिब्बल ने दी दलील
बता दें कि दिल्ली हाई कोर्ट में राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव की ओर से कपिल सिब्बल ने दलील दी थी। उन्होंने कहा कि सीबीआई ने बिना आवश्यक मंजूरी के ही जांच जारी रखा गया, जबकि कानून कहता है कि बिना पूर्व अनुमति के जांच शुरू नहीं की जा सकती है ,ये एक अनिवार्य शर्त है।
हम मामले पर बहस करेंगे- कपिल सिब्बल
कोर्ट में कपिल सिब्बल ने कहा कि अगर आरोप तय हो गया तो मैं क्या करूंगा? कृपया एक महीने तक इंतजार करें। हम मामले पर बहस करेंगे। 14 साल तक आपने (एफआईआर दर्ज करने के लिए) इंतजार किया है। यह केवल दुर्भावनापूर्ण है।
‘मंत्री अपने पद का दुरुपयोग कर रहे थे’
वहीं केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई की ओर से दलील देते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता डीपी सिंह ने कहा यह ऐसा मामला है, जिसमें मंत्री के करीबियों ने लोक सेवकों को ये चयन करने के लिए कहा और बदले में जमीन दी गई। इसलिए इसे नौकरी के लिए जमीन का मामला कहा जाता है। मंत्री अपने पद का दुरुपयोग कर रहे थे। क्या है पूरा मामला
यह मामला 2004-2009 के दौरान लालू यादव के रेल मंत्री रहते हुए रेलवे में ग्रुप-डी नियुक्तियों से संबंधित है, जहां आरोप है कि नौकरी के बदले उनके परिवार या करीबियों के नाम पर जमीनें हस्तांतरित की गईं। सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) इस मामले की जांच कर रहे हैं।