गांधारी का श्राप और यदुवंश का विनाश
महाभारत के अनुसार, द्वारका के डूबने की कहानी यदुवंश के अंत से जुड़ी है। कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद, जब गांधारी को अपने पुत्रों की मृत्यु का दुख सता रहा था, उन्होंने श्रीकृष्ण को यदुवंश के विनाश के लिए जिम्मेदार ठहराया। क्रोध में आकर गांधारी ने श्रीकृष्ण को श्राप दिया कि जिस तरह कुरुवंश का नाश हुआ, उसी तरह यदुवंश भी नष्ट हो जाएगा। इस श्राप के प्रभाव से यदुवंशी आपस में कलह करने लगे। एक दिन, प्रभास क्षेत्र में यदुवंशियों के बीच नशे में झगड़ा हुआ, और वे एक-दूसरे को मारने लगे। इस घटना में यदुवंश का लगभग पूरा वंश नष्ट हो गया। श्रीकृष्ण, जो स्वयं इस घटना के साक्षी थे, ने इसे नियति का हिस्सा माना। इसके बाद, उन्होंने अपने पार्थिव शरीर को त्याग दिया।
समुद्र में विलय हुआ द्वारका
पुराणों के अनुसार, श्रीकृष्ण के देहत्याग के बाद, द्वारका पर समुद्र का प्रकोप बढ़ गया। भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण के जाने के बाद, उनकी नगरी को बचाने का कोई उद्देश्य नहीं बचा। कहा जाता है कि श्रीकृष्ण के निर्देश पर ही समुद्र ने द्वारका को अपने आगोश में ले लिया। यह भी माना जाता है कि द्वारका का डूबना यदुवंश के कर्मों का परिणाम था, जो नैतिक पतन और आपसी कलह के कारण हुआ।
क्या कहता है विज्ञान?
आधुनिक पुरातत्व और समुद्री खोजों ने द्वारका के रहस्य को और गहरा किया है। 1980 के दशक में, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) और अन्य शोधकर्ताओं ने गुजरात के तट पर समुद्र के अंदर प्राचीन संरचनाओं के अवशेष खोजे। ये अवशेष, जिनमें दीवारें, स्तंभ, और अन्य निर्माण शामिल हैं, लगभग 3,000-3,500 साल पुराने माने जाते हैं। ये खोजें महाभारत में वर्णित द्वारका से मेल खाती हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि समुद्र के जलस्तर में वृद्धि या भूकंप जैसे प्राकृतिक आपदाओं के कारण द्वारका डूब गई। कुछ वैज्ञानिक इसे जलवायु परिवर्तन और समुद्री गतिविधियों से भी जोड़ते हैं।
प्राकृतिक आपदा का बड़ा उदाहरण
द्वारका का समुद्र में डूबना पौराणिक, ऐतिहासिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से एक अनोखा रहस्य है। गांधारी के श्राप, यदुवंश के पतन, और प्राकृतिक आपदाओं ने मिलकर यह नगरी को समुद्र की गोद में समा गई। आज भी, द्वारका के अवशेष हमें श्रीकृष्ण के युग की याद दिलाते हैं और यह सिखाते हैं कि समय और प्रकृति के सामने कोई अडिग नहीं रह सकता।