‘भारत एक व्यक्ति की गलती की कीमत चुकाता रहता’
बीजेपी अध्यक्ष नड्डा ने सोमवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर पोस्ट कर कहा, ‘इतिहास को इसे वही कहना होगा जो यह था: नेहरू की हिमालयी भूल। एक ऐसा प्रधानमंत्री जिसने संसद की अवहेलना की, भारत की जीवनरेखा को दांव पर लगा दिया और पीढ़ियों तक भारत के हाथ बांध दिए। आज भी अगर प्रधानमंत्री मोदी का साहसिक नेतृत्व और ‘राष्ट्र प्रथम’ के प्रति उनकी प्रतिबद्धता न होती, तो भारत एक व्यक्ति की गलती की कीमत चुकाता रहता। सिंधु जल संधि को स्थगित करके, प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस द्वारा की गई एक और गंभीर ऐतिहासिक भूल को सुधारा है!’
नेहरू ने संसद की मंजूरी बिना किया था सिंधू समझौता
नड्डा ने आगे लिखा, ‘जब पंडित नेहरू आखिरकार उठे, तो उनके तर्क न केवल अविश्वसनीय थे, बल्कि राष्ट्रीय भावना से कोसों दूर थे। अपनी पार्टी के सहयोगियों के कड़े विरोध के बावजूद, उन्होंने सिंधु जल संधि को भारत के लिए लाभकारी बताते हुए उसका बचाव किया। इतना ही काफी नहीं था, तो उन्होंने यह पूछकर देश की पीड़ा को कम करके आंक दिया, किसका बँटवारा? एक बाल्टी पानी का? उन्होंने स्वीकार किया कि उन्होंने भारत के महत्वपूर्ण संसाधनों को सौंपने वाली अंतरराष्ट्रीय संधियों के मामले में संसदीय अनुमोदन की परवाह किए बिना ही यह निर्णय ले लिया था। चोट पर नमक छिड़कते हुए उन्होंने राष्ट्रीय हित की बात करने वाले साथी सांसदों की राय को बहुत संकीर्ण बताकर उनका उपहास किया।’
राष्ट्रीय हितों को हमेशा के लिए डाल दिया था खतरे में
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने अपने सोशल मीडिया पर लिखा कि 1960 की सिंधु जल संधि, पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सबसे बड़ी भूलों में से एक थी, जिसमें व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के आगे राष्ट्रीय हितों की बलि चढ़ा दी गई। देश को यह जानना चाहिए कि जब पूर्व पंडित नेहरू ने पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किए थे, तो उन्होंने एकतरफा तौर पर सिंधु बेसिन का 80 प्रतिशत पानी पाकिस्तान को सौंप दिया था। जिससे भारत के पास केवल 20 प्रतिशत हिस्सा रह गया था। यह एक ऐसा फैसला था जिसने भारत की जल सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों को हमेशा के लिए खतरे में डाल दिया था।