हमारे लिए, हमारा संविधान और हमारा लोकतंत्र सर्वोपरि
उन्होंने दो टूक कहा, “हमारे लिए, हमारा संविधान और हमारा लोकतंत्र सर्वोपरि है।” यह बात उन्होंने दो बार दोहराई, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि भारत की राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था में लोकतंत्र की नींव सबसे महत्वपूर्ण है।
आजादी का दिवस, बलिदानों की याद दिलाने वाला दिन
राष्ट्रपति ने स्वतंत्रता दिवस को भारत की सामूहिक स्मृति से जुड़ा एक खास दिन बताया। उन्होंने कहा कि देशवासियों की कई पीढ़ियों ने यह सपना देखा था कि भारत एक दिन गुलामी की जंजीरें तोड़ेगा और स्वतंत्र राष्ट्र बनेगा।
भारत ने वह सपना साकार किया
उन्होंने कहा कि 15 अगस्त 1947 की तारीख को भारत ने वह सपना साकार किया। कल जब देशवासी तिरंगे को सलामी देंगे, तब वे उन सभी स्वतंत्रता सेनानियों को भी याद करेंगे, जिन्होंने देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया।
भारत : लोकतंत्र की जननी
राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में भारत की प्राचीन लोकतांत्रिक परंपराओं पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भारत की धरती विश्व के सबसे पुराने गणराज्यों की जननी रही है। उन्होंने कहा, “हमारे संविधान की नींव पर हमने लोकतंत्र का मजबूत भवन खड़ा किया है।” भारत ने आजादी के बाद लोकतांत्रिक संस्थाओं का गठन किया, जिन्होंने देश को स्थायित्व और दिशा दी।
विभाजन की पीड़ा और इतिहास से सबक
राष्ट्रपति ने 14 अगस्त को मनाए गए विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस का भी ज़िक्र किया। उन्होंने कहा कि यह दिन हमें उस समय की दर्दनाक घटनाओं की याद दिलाता है, जब लाखों लोग विस्थापित हुए और भीषण हिंसा का सामना करना पड़ा।
हमें इतिहास की इन गलतियों से सीख लेनी चाहिए
उन्होंने इन पीड़ितों को श्रद्धांजलि अर्पित की और कहा कि हमें इतिहास की इन गलतियों से सीख लेनी चाहिए, ताकि भविष्य में ऐसी त्रासदियाँ दोहराई न जाएं।
नया भारत, मजबूत भारत
राष्ट्रपति ने कहा कि स्वतंत्रता के 78 सालों के इस सफर में भारत ने अनेक चुनौतियों को पार करते हुए विकास की दिशा में कई उपलब्धियाँ हासिल की हैं। अब देश एक नए भारत की ओर अग्रसर है, जो आत्मनिर्भर, लोकतांत्रिक और वैश्विक मंच पर अग्रणी भूमिका निभाने के लिए तैयार है।
जनता और राजनीतिक हलकों में मिला सकारात्मक रिस्पॉन्स
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के लोकतंत्र और संविधान को सर्वोपरि बताने वाले बयान को देशभर में सराहना मिल रही है। कई राजनीतिक विश्लेषकों ने इसे मौजूदा समय में “एक स्थिर और सशक्त संदेश” बताया है।
भारतीय गणतंत्र की आत्मा को छूने वाला भाषण
सोशल मीडिया पर लोगों ने राष्ट्रपति के भाषण की तारीफ करते हुए कहा कि यह भाषण भारतीय गणतंत्र की आत्मा को छूने वाला है। संतुलित और प्रेरक संबोधन
शिक्षाविदों और इतिहासकारों ने भी भारत की लोकतांत्रिक परंपरा को रेखांकित करने वाले इस संबोधन को “संतुलित और प्रेरक” बताया है।
क्या यह संदेश आने वाले संसद सत्र की भूमिका तय करेगा ?
राजनीतिक विश्लेषक यह भी मान रहे हैं कि राष्ट्रपति का यह वक्तव्य संसद के आगामी शीतकालीन सत्र के लिए एक नैतिक फ्रेमवर्क की तरह काम कर सकता है।
संसद में भी संवाद और सहमति की प्रक्रिया
विपक्ष भी अब इस बात पर जोर दे सकता है कि जब राष्ट्रपति खुद संविधान और लोकतंत्र को सर्वोपरि मानती हैं, तो संसद में भी संवाद और सहमति की प्रक्रिया को प्राथमिकता दी जाए। यह भाषण सरकार के लिए भी एक जिम्मेदारी का संकेत है कि लोकतांत्रिक संस्थाओं की रक्षा की जाए।
आदिवासी महिला राष्ट्रपति का लोकतंत्र को लेकर दृढ़ संदेश
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का यह संबोधन खास इसलिए भी रहा क्योंकि एक आदिवासी महिला राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने भारत के लोकतंत्र और संविधान को सर्वोच्च बताया। यह संदेश भारत की समावेशी लोकतंत्र की ताकत दिखाता है। यह भी रेखांकित करता है कि देश अब सामाजिक विविधता से नेतृत्व की दिशा में आगे बढ़ चुका है।