अंग्रेजों की नीति ने बढ़ाई दूरी
रक्षा बंधन से जुड़ीं भारत में अनेकों ऐसी कहानियां हैं, जिन्हें कभी भूला नहीं जा सकता है। एक कहानी हिंदू-मुस्लिम धार्मिक एकता से भी जुड़ी है। बताया जाता है कि जब भारत में अग्रेजों का शासन था। तब वे देश पर राज करने के लिए अलग-अलग धर्मों और समुदायों को एक दूसरे से लड़ाया करते थे। इसी को तब डिवाइड एन्ड रूल नाम भी दिया गया था। जिसकी चर्चा आज भी हर जुबान पर होती है। उस समय देश पर राज करने के लिए अंग्रेजों ने हिन्दुओं और मुसलमान के बीच बड़े पैमाने पर दूरी पैदा कर दी थी।
हिंदू-मुसलमान की एकता बन गई मिसाल
एक समय तो ऐसा भी आया, जब दोनों एक दूसरे को देखना तक नहीं चाहते थे। इस बीच, रक्षाबंधन का त्योहार आया और उस दौरान कुछ ऐसा हुआ कि हिंदू-मुसलमान की एकता हेमशा के लिए एक मिसाल बन गई। बात साल 1905 की है। उस वक्त, बंगाल का क्षेत्रफल काफी बड़ा हुआ करता था। इसमें पश्चिम बंगाल के साथ बिहार, ओडिशा, असम और बांग्लादेश भी जुड़े थे। तब अंग्रेजी हुकूमत ने बंगाल को दो हिस्सों में विभाजित करने का फैसला किया था। ताकि उनका संचालन करने में आसानी हो।
अंग्रेजी हुकूमत के इस फरमान के खिलाफ खूब विरोध हुआ। हालांकि, तब भी लोग विभाजन को रोकने में नाकाम रहे। 16 अक्टूबर, 1905 को बंगाल का बंटवारा हो गया। उस दिन, रक्षाबंधन का त्योहार भी था।
हिंदू-मुस्लिम समुदाय से टैगोर ने की अपील
अब विभाजन के बाद गुरु रवींद्रनाथ टैगोर हिंदू-मुस्लिम एकता को किसी भी कीमत पर टूटने नहीं देना चाहते थे। इस वजह से, उन्होंने इसी दिन हिंदू और मुस्लिम को एक करने के लिए भव्य जुलूस निकाला था। सभी समुदाय के लोगों से एक दूसरे को राखी बांधने की अपील की थी। दोनों समुदाय ने इस जुलूस में बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। इसमें शामिल सभी भाइयों का महिलाएं ने भव्य तरीके से स्वागत किया था। तब महज राखी के एक धागे ने हिंदू-मुस्लिम को एकजुट करने का काम किया।
बंगाल में तमाम जगहों पर हिंदू धर्म के लोग मुस्लिम समाज के लोगों को राखी बांध रहे थे। वहीं, मुस्लिम धर्म के लोग भी इस दौरान देश में एकता का परिचय देने से पीछे नहीं हटे।
उन्होंने भी हिंदू भाइयों को राखी बांधी। हर तरह, खुशियों का माहौल था। रक्षाबंधन के त्योहार पर आज भी हिंदू-मुस्लिम की उस एकता का उदाहरण दिया जाता है।