जदयू का वोटर लोजपा की तरफ
बिहार की राजनीति में अब यह चर्चा आम हो गई है कि जदयू का पारंपरिक वोटर धीरे-धीरे लोजपा (रामविलास) की तरफ शिफ्ट हो रहा है। नीतीश कुमार के नेतृत्व को लेकर मतदाताओं के भीतर बढ़ रही असंतुष्टि और चिराग की पैन बिहार अपील ने एलजेपीआर को एक वैकल्पिक शक्ति बना दिया है। खासकर शहरी और युवा वोटर्स के बीच चिराग तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। सी-वोटर के एक सर्वे के अनुसार, मई 2025 तक चिराग की लोकप्रियता 10.6 फीसदी तक पहुंच गई है, जबकि जदयू नेता और उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी की लोकप्रियता घटकर 6.6 फीसदी रह गई।
33 सीटों की दावेदारी और ‘चिराग फॉर सीएम’ पोस्टर
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले चिराग पासवान की पार्टी ने 33 सीटों पर दावा ठोक दिया है। इसी के साथ राज्य में जगह-जगह ‘चिराग फॉर सीएम’ के पोस्टर नजर आने लगे हैं। हालांकि, चिराग ने सार्वजनिक रूप से नीतीश कुमार को सीएम फेस मानने की बात दोहराई है, लेकिन कार्यकर्ताओं में बढ़ते उत्साह से साफ है कि पार्टी अब खुद को सिर्फ समर्थन तक सीमित नहीं रखना चाहती। 2020 के चुनाव में जेडीयू को भारी नुकसान
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में एलजेपीआर ने अकेले 137 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। एलजेपी खुद तो सिर्फ एक सीट जीत पाई, लेकिन जेडीयू को बड़ा नुकसान पहुंचाया। पार्टी के 73 उम्मीदवार ऐसे थे जिन्होंने जीत-हार के अंतर से ज्यादा वोट हासिल किए और इनमें से 33 सीटों पर जेडीयू की हार का कारण बने। जेडीयू 2015 में 71 सीटों से घटकर 2020 में सिर्फ 43 पर सिमट गई। नीतीश कुमार ने खुद इस गिरावट के लिए चिराग को जिम्मेदार ठहराया था।
2024 लोकसभा में पांच में पांच सीटें जीतकर मजबूत
2020 की विधानसभा में मिली हार के बावजूद चिराग पासवान ने 2024 के लोकसभा चुनाव में जबरदस्त वापसी की। एलजेपीआर ने एनडीए के तहत पांच सीटों पर चुनाव लड़ा और सभी पर जीत दर्ज की। यह प्रदर्शन न सिर्फ उनके नेतृत्व को वैधता देता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि एलजेपी अब सिर्फ ‘पासवान वोट’ की पार्टी नहीं रही, बल्कि वह एक पैन एससी और संभावित पैन बिहार दल के रूप में उभर रही है।
एलजेपी की बदलती छवि और आगे की राह
2020 के चुनावों में ‘वोटकटवा’ कही जाने वाली चिराग पासवान की पार्टी अब एनडीए की सबसे भरोसेमंद घटक बनकर उभरी है। उनकी रणनीति साफ है- पारंपरिक पासवान वोटबैंक को मजबूत आधार बनाकर गैर-दलित और युवा वोटरों तक पहुंच बनाना। पार्टी ने चिराग को सामान्य सीट से चुनाव लड़ने का प्रस्ताव भी पारित किया है, जिससे यह संकेत मिलता है कि अब वे खुद को दलित नेता की सीमाओं से बाहर ले जाकर राज्यव्यापी नेतृत्व की ओर बढ़ रहे हैं। चिराग पासवान की इस नई राजनीतिक पारी ने न केवल लोजपा की छवि को बदला है, बल्कि जदयू जैसी पुराने दल की भूमिका पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। एनडीए के भीतर लोजपा (रामविलास) का बढ़ता कद बिहार की आगामी राजनीति में कई नए समीकरण गढ़ सकता है।