बता दें कि पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने यशवंत वर्मा की उस याचिका को खारिज कर दी थी, जिसमें चीफ जस्टिस द्वारा नियुक्त जांच पैनल की रिपोर्ट को अमान्य करार करने का अनुरोध किया गया था। इस रिपोर्ट में वर्मा को कदाचार का दोषी माना गया था।
21 मार्च को, भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) ने जस्टिस वर्मा से इस सिलसिले में लिखित जवाब मांगा था। जिसके अगले दिन उन्होंने अपने जवाब में लिखा था कि उनके खिलाफ लगे आरोप पूरी तरह से बेबुनियाद हैं।
चीफ जस्टिस ने बनाया था पैनल
इसके बाद, चीफ जस्टिस ने तीन सदस्यों का एक पैनल बनाया, उन्हें केस की विस्तार से जांच करने का जिम्मा सौंपा। जांच टीम ने तमाम तहकीकात के बाद इंटरनल रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के हवाले कर दिया। इस रिपोर्ट के आधार पर पूर्व चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने वर्मा को पद से हटाने के लिए उनके खिलाफ केंद्र सरकार से महाभियोग चलाने की सिफारिश की थी।
सिफारिश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे जस्टिस वर्मा
यशवंत वर्मा इस सिफारिश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अब लोकसभा में इस बात पर संज्ञान लिया गया है और जांच के लिए तीन सदस्यों की कमिटी बनाई गई है। इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा काफी दिनों से विवाद में घिरे हैं। कुछ महीने पहले 14 मार्च को उनके सरकारी बंगले से 15 करोड़ रुपये बरामद हुए थे। इसके बाद देश भर में बवाल मच गया था।
जस्टिस वर्मा का परिचय
जस्टिस वर्मा का जन्म इलाहाबाद में हुआ था। हालांकि, उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के हंसराज कॉलेज से बीकॉम की डिग्री हासिल की थी। इसके बाद एमपी की रीवा यूनिवर्सिटी से वर्मा से LLB किया था। 1992 में जस्टिस वर्मा वकील बने। जस्टिस वर्मा को 13 अक्टूबर 2014 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के एडिशनल जज के रूप में नियुक्त किया गया था। इसके बाद साल 2016 में जस्टिस वर्मा को इलाहाबाद हाई कोर्ट का परमानेंट जज बनाया गया।
साल 2021 में जस्टिस वर्मा दिल्ली हाई कोर्ट के जज नियुक्त हुए थे। घर से कैश मिलने के बाद उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट में वापस भेज दिया गया है।