शेयरों में गिरावट के प्रमुख कारण
अमेरिकी जांच और रिश्वत के आरोपहाल ही में, अमेरिकी प्रतिभूति और विनिमय आयोग (SEC) और अमेरिकी न्याय विभाग (DOJ) ने अडानी ग्रुप पर गंभीर आरोप लगाए हैं। दावा किया गया है कि समूह ने 2020 से 2024 के बीच भारतीय अधिकारियों को 265 मिलियन डॉलर (लगभग 2200 करोड़ रुपये) की रिश्वत दी, जिसके जरिए 2 अरब डॉलर के सोलर पावर कॉन्ट्रैक्ट हासिल किए गए। इसके अलावा, अडानी ग्रीन एनर्जी पर अमेरिकी निवेशकों से जानकारी छिपाने का भी आरोप है, जो अमेरिकी सिक्योरिटीज एक्ट का उल्लंघन माना जा रहा है। इन आरोपों के बाद 3 जून 2025 को अडानी एंटरप्राइजेज के शेयरों में 2.63% और अडानी पोर्ट्स में 2.72% की गिरावट दर्ज की गई।
द वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट में दावा किया गया कि अडानी ग्रुप ने मुंद्रा पोर्ट के जरिए ईरान से लिक्विफाइड पेट्रोलियम गैस (LPG) का आयात किया, जो संभावित रूप से अमेरिकी प्रतिबंधों का उल्लंघन हो सकता है। हालांकि, अडानी एंटरप्राइजेज ने इन आरोपों को “निराधार और दुर्भावनापूर्ण” बताकर खारिज किया है, लेकिन इस खबर ने निवेशकों का भरोसा कमजोर किया है।
हाल के ईरान-इजरायल तनाव ने भी अडानी ग्रुप की मुश्किलें बढ़ाई हैं। समूह ने इजरायल के हैफा पोर्ट में भारी निवेश किया है, जो अब युद्ध क्षेत्र बन गया है। इस भू-राजनीतिक अनिश्चितता के कारण 13 जून 2025 को अडानी ग्रुप के शेयरों में 3% की गिरावट देखी गई।
केन्या सरकार ने हाल ही में अडानी ग्रुप के साथ एक प्रमुख कॉन्ट्रैक्ट रद्द कर दिया, जिसका उद्देश्य अफ्रीका में समूह की पहुंच बढ़ाना था। इस घटना ने निवेशकों के बीच चिंता को और बढ़ा दिया, जिससे शेयरों पर दबाव बढ़ा।
हिंडनबर्ग रिसर्च की 2023 की रिपोर्ट ने अडानी ग्रुप को “कॉरपोरेट इतिहास की सबसे बड़ी धोखाधड़ी” का आरोप लगाकर हिला दिया था। इस साल फिर से हिंडनबर्ग ने समूह से जुड़े ऑफशोर फंड्स और कथित अनियमितताओं के नए सबूत पेश किए, जिसने निवेशकों के बीच अविश्वास को और गहरा किया।
भारतीय शेयर बाजार को FY25 में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, जिसमें मैक्रोइकनॉमिक दबाव, शहरी खर्च में कमी, और वैश्विक राजनीतिक तनाव (विशेष रूप से ट्रम्प टैरिफ) शामिल हैं। इन कारकों ने अडानी ग्रुप सहित कई भारतीय कंपनियों के शेयरों को प्रभावित किया है।