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हाई कोर्ट के 13 जजों ने किया विरोध तो सीजेआई को देना पड़ा दखल, सुप्रीम कोर्ट ने बदला अपना ही आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज प्राशांत कुमार को लेकर अपना आदेश बदला। पहले उन्हें आपराधिक मामलों से हटाने का निर्देश दिया गया था, लेकिन चीफ जस्टिस बीआर गवई के हस्तक्षेप के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में बदलाव किया और जज को फिर से आपराधिक मामलों की सुनवाई करने की अनुमति दी

भारतAug 09, 2025 / 09:49 am

Mukul Kumar

कोर्ट के लिए इस्तेमाल की गई प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो- IANS

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक आदेश दिया था कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक जज को उनकी सेवानिवृत्ति तक सुनवाई के लिए कोई आपराधिक मामला नहीं सौंपा जाना चाहिए। इस फैसले का हाई कोर्ट के 13 जजों ने विरोध किया। जिसके बाद इस मामले में चीफ जस्टिस को दखल देना पड़ा। अब सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश को बदल दिया है।

नए आदेश में क्या कहा गया?

सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने कहा कि 4 अगस्त के आदेश के बाद, उन्हें भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई का पत्र मिला है। जिसमें उनसे उनके आदेश के पैरा 25 और 26 में दिए गए निर्देशों पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया गया है।
पीठ ने आगे कहा कि वह मुख्य न्यायाधीश के अनुरोध का सम्मान करती है और इस मामले में संबंधित पैराग्राफ को हटा रही है। इसके साथ, अपने पुराने आदेश पर सफाई देते हुए पीठ ने कहा कि हमारा इरादा न्यायाधीश को शर्मिंदा करने या उन पर आक्षेप लगाने का नहीं था। हम ऐसा करने के बारे में सोच भी नहीं सकते।
पीठ ने आगे कहा कि जब मामला एक सीमा को पार कर जाता है और संस्था की गरिमा खतरे में पड़ जाती है, तो संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत अपने अपीलीय क्षेत्राधिकार के तहत कार्य करते हुए भी हस्तक्षेप करना इस न्यायालय की संवैधानिक जिम्मेदारी बन जाती है।

क्या था मामला?

दरअसल, 4 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज के काम करने के तरीके पर सवाल उठाए थे। उन्होंने एक आपराधिक मामले में आरोपी को जमानत दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने उनके बेल देने के तरीके पर सवाल किए थे। वहीं, एक दीवानी मामले में आपराधिक कार्रवाई के आदेश देने पर भी नाराजगी व्यक्त की थी। दो मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जज को घेरा था।
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से कहा कि संबंधित जज से सारे आपराधिक मामले वापस लिए जाएं। उनके रिटायर होने तक उन्हें कोई भी आपराधिक मामले न दिए जाएं।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि संबंधित जज को किसी भी मामले में वरिष्ठ न्यायधीशों की खंडपीठ के साथ बैठाया जाए। अगर कभी उन्हें अकेले पीठ में बैठना पड़े तो उन्हें आपराधिक मामले न दिए जाएं।
न्यायाधीश को किसी वरिष्ठ न्यायाधीश के साथ खंडपीठ में बैठाया जाए और यदि कभी उन्हें अकेले पीठ में भी बैठाया जाए तो भी आपराधिक मामले न सौंपे जाएं।

इसपर हाईकोर्ट के जजों ने आपत्ति जताई थी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर इस मामले में संज्ञान लेने का अनुरोध किया था।

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