नागौर की आधी से ज्यादा ग्राम पंचायतें रोडवेज बस से वंचित हैं। वहां के ग्रामीणों को नागौर जिला मुख्यालय सहित दूसरे जिलों में जाने के लिए या तो निजी बसों में सफर करना पड़ता है या निजी वाहन से आना-जाना पड़ता है।
नागौर जिले के इस कस्बे और 30 गांवों को आज भी रोड़वेज बस का इंतजार
हालांकि, राज्य सरकार ने परिवर्तित बजट 2024-25 में प्रदेश में पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम के माध्यम से आमजन को सस्ती, सुरक्षित एवं आधुनिकतम यातायात सुविधा सुलभ कराने के लिए प्रदेश के दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों के लिए लोक परिवहन सेवा प्रारंभ करने की घोषणा की थी, लेकिन यह घोषणा धरातल पर नहीं उतर पाई है। वहीं, भरतपुर जिले में सबसे अधिक 83 फीसदी ग्राम पंचायतों में रोडवेज बसों का संचालन नहीं होता।
पूर्व में चल रही ग्रामीण बस सेवा भी बंद
निगम ने पूर्व में ग्रामीण परिवहन सेवा शुरू की थी, जिसे तत्कालीन राज्य सरकार ने वीजीएफ के पुनर्भरण पर रोक लगाते हुए 31 मार्च 2017 से बंद कर दिया था। कुछ लोगों ने बताया कि निजी बस संचालक वंचित गांवों में रोडवेज की बसें शुरू नहीं होने देते। ग्रामीणों की मांग पर कभी रोडवेज शुरू होती है तो उसे घाटे में बताकर बंद करवा दिया जाता है।
इन गांवों को आज भी रोडवेज बस का इंतजार
रेल परिवहन के लिहाज से नागौर का मेड़ता रोड जंक्शन की अलग पहचान है। जबकि राजस्थान पथ परिवहन निगम की बस सेवा नजर तक नहीं आती। मेड़ता रोड सहित आसपास के गांवों के ग्रामीण मेड़ता रोड से संचालित ट्रेनों और निजी बसों में सफर करते हैं। नागौर, अजमेर, जोधपुर, जैतारण, बुटाटी, खींवसर, डेगाना और सीकर सहित अन्य स्थानों पर प्रतिदिन निजी बसों का आवागमन होता है। लेकिन रोडवेज बस सेवा की कमी खलती है।
कस्बे से सीधे अजमेर, बीकानेर, नागौर, जयपुर, हरिद्वार तक बस संचालन हो सकता है। लेकिन रोडवेज प्रबंधन की शिथिलता से आजादी के 78 साल बाद भी रोड़वेज सेवा से नागौर जिला मुख्यालय को नहीं जोड़ा गया है। हर केन्द्रीय व राज्य मंत्री, प्रतिनिधि से रोडवेज बस संचालन की मांग की गई, किसी ने गंभीरता नहीं दिखाई।