जनता को बेवकूफ बना रहे नेता- आजमी
सपा विधायक अबू आजमी ने विपक्षी दलों से अलग रुख अपनाते हुए हिंदी के पक्ष में खुलकर बयान दिया। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में मराठी तो पहली भाषा है ही। लेकिन लोग अंग्रेजी के पीछे भागते हैं क्योंकि वे मानसिक रूप से अंग्रेजी के गुलाम बन चुके हैं, इसलिए वह दूसरी भाषा बन गई है। लेकिन तीसरी भाषा हिंदी होनी चाहिए। अबू आजमी ने कहा कि संसद की एक समिति देशभर में हिंदी को बढ़ावा देने का काम कर रही है और केंद्र सरकार के ज्यादातर कामकाज भी हिंदी में ही होते हैं। लेकिन कुछ लोग अपने सियासी फायदे के लिए इसका विरोध कर रहे है और जनता को बेवकूफ बना रहे है।
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए सपा नेता ने यह भी कहा कि देश में एक ऐसी भाषा होनी चाहिए जो कश्मीर से कन्याकुमारी तक हर जगह बोली और समझी जा सके, और वह भाषा केवल हिंदी हो सकती है। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि अगर उन्हें असम जाना पड़े तो क्या वे असमिया सीखें? इस दौरान उन्होंने मांग कि की हिंदी को 100 प्रतिशत राष्ट्रभाषा घोषित किया जाना चाहिए।
‘महाराष्ट्र में केवल मराठी अनिवार्य, हिंदी नहीं’
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने मराठी-हिंदी विवाद के बीच स्पष्ट किया कि त्रिभाषा फॉर्मूला को लेकर अंतिम निर्णय सभी संबंधित पक्षों से चर्चा के बाद लिया जाएगा। वहीं, बीजेपी नेता व महाराष्ट्र के सांस्कृतिक मामलों के मंत्री आशीष शेलार ने सोमवार को कहा कि राज्य में केवल मराठी अनिवार्य है, हिंदी नहीं। उन्होंने कहा कि स्कूलों में तीसरी भाषा पढ़ाने को लेकर जारी विवाद अनुचित और अतार्किक है। वहीँ, हिंदी को थोपने को लेकर उठे विवाद के बीच एनसीपी (शरद पवार) नेता जितेंद्र आव्हाड ने कहा कि महाराष्ट्र की पहचान मराठी से है और लोगों को कोई भी सीखने के लिए बाध्य करना इसका समाधान नहीं है।
शरद गुट के राष्ट्रीय महासचिव और विधायक दल के नेता आव्हाड ने कहा कि यह विवाद वास्तविक मुद्दों से जानबूझकर ध्यान भटकाने की कोशिश है। उन्होंने कहा, ‘‘महाराष्ट्र की पहचान इसकी मराठी में है। कोई भी किसी को कोई भी सीखने से नहीं रोकता, लेकिन बाध्यता इसका जवाब नहीं है। जब गुजरात, तमिलनाडु या पश्चिम बंगाल में हिंदी को अनिवार्य नहीं बनाया गया है, तो महाराष्ट्र में ऐसा क्यों किया जा रहा।’’
गौरतलब हो कि स्थानीय और नगर निकाय चुनाव से पहले महाराष्ट्र में यह मुद्दा राजनीतिक रंग ले चुका है। एक ओर विपक्ष के नेता इसे मराठी अस्मिता से जोड़ रहे हैं, तो दूसरी ओर अबू आजमी हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की बात कर रहे हैं। ऐसे में आने वाले दिनों में यह बहस और भी तीखी हो सकती है।