शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे ने गुरुवार को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात की। यह मुलाकात विधान परिषद के सभापति राम शिंदे के कार्यालय में हुई। उनकी मुलाकात लगभग 20 मिनट तक चली। हालांकि बैठक की वजह ठाकरे द्वारा सीएम फडणवीस को मराठी पुस्तक ‘हिंदी क्यों नहीं थोपी जानी चाहिए‘ सौंपना था। यह पुस्तक महाराष्ट्र के विभिन्न संपादकों द्वारा लिखे गए लेखों का संकलन है। इस बैठक में उद्धव ठाकरे के साथ उनके बेटे और शिवसेना (UBT) नेता आदित्य ठाकरे भी मौजूद थे।
जानकारी के मुताबिक, इस बैठक में राज्य की प्रस्तावित तीन-भाषा नीति, खासतौर से प्राथमिक कक्षा से हिंदी को अनिवार्य किए जाने की योजना पर चर्चा हुई। ठाकरे गुट ने मुख्यमंत्री से अनुरोध किया कि हिंदी को राज्य की प्राथमिक शिक्षा में अनिवार्य करना सही नहीं है।
मुख्यमंत्री फडणवीस ने पुस्तक को स्वीकार किया और सुझाव दिया कि इसकी प्रति नरेंद्र जाधव को सौंपी जानी चाहिए, क्योंकि वे ही इस तीन-भाषा नीति की समीक्षा के लिए गठित समिति के प्रमुख हैं।
यह मुलाकात ऐसे समय में हुई है जब बुधवार को विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष अंबादास दानवे के विदाई समारोह के दौरान मुख्यमंत्री फडणवीस ने उद्धव ठाकरे से मजाकिया अंदाज में कहा था, “उद्धव जी, 2029 तक तो हम विपक्ष में नहीं जा रहे… अगर आप हमारे साथ आना चाहें, तो सोचिए… फैसला आपका है।” इस टिप्पणी के बाद राज्य की राजनीति में गठबंधन को लेकर अटकलों का बाजार गर्म हो गया है।
इससे पहले 5 जुलाई को मुंबई के वर्ली में आयोजित ‘आवाज मराठीचा’ कार्यक्रम में उद्धव ठाकरे और उनके चचेरे भाई राज ठाकरे करीब दो दशक बाद एक साथ मंच पर नजर आए थे, जिसके बाद से मनसे और शिवसेना (उबाठा) के संभावित गठबंधन की चर्चाएं तेज हो गई थीं। हालांकि उद्धव मनसे से गठबंधन के लिए तैयार नजर आ रहे है, लेकिन मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले है। ऐसे में भले ही ठाकरे की फडणवीस से मुलाकात तीन भाषा नीति के मुद्दे पर थी, लेकिन लगातार हो रही मुलाकातों ने इस सवाल को बल जरूर दिया है कि क्या आने वाले दिनों में महाराष्ट्र की राजनीति कोई नया मोड़ लेगी?
शिवसेना और भाजपा हिंदुत्व और विकास के मुद्दे पर दो दशकों से अधिक समय तक गठबंधन में थे, लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर विवाद के बाद 2019 के चुनाव के बाद दोनों दलों ने अलग-अलग रास्ते अपना लिए, जिसके ढाई साल बाद शिवसेना के अलग होने के बाद उद्धव ठाकरे और भाजपा के बीच संबंध और तनावपूर्ण हो गए।